नई दिल्ली: उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने शनिवार को कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खरगे को संसद में व्यवधान और विपक्षी सांसदों के निलंबन के मुद्दे पर बातचीत के लिए 25 दिसंबर को अपने आवास पर आमंत्रित किया। धनखड़ ने अपने पत्र में यह भी लिखा कि उनके बार-बार आग्रह के बावजूद शीतकालीन सत्र के दौरान ऐसी बैठक नहीं हो सकी। उन्होंने कहा कि सदन में व्यवधान इरादातन था और रणनीति के तहत था। धनखड़ ने पत्र में कहा, ‘इस प्रकरण में मुख्य विपक्षी दल की पूर्वनियोजित भूमिका की ओर इंगित करके, मैं आपको लज्जित नहीं करना चाहता, लेकिन जब कभी भी मुझे आपसे बातचीत करने का अवसर लाभ मिलेगा, मैं आपसे वह साझा अवश्य करूंगा।’
‘आपसे बातचीत का मेरा हर प्रयास विफल रहा’
राज्यसभा में विपक्ष के नेता खरगे को एक ताजा पत्र में धनखड़ ने लिखा, ‘श्री मल्लिकार्जुन खरगे जी, मुझे संतोष होता यदि 22 दिसंबर 2023 के आपके पत्र में व्यक्त किया गया संकल्प कि “हम संवाद और बातचीत में दृढ़ता से यकीन रखते हैं”, वास्तव में चरितार्थ हो पाता। पूरे सत्र भर, कभी मैंने सदन के अंदर आग्रह किया तो कभी पत्र लिख कर आपसे संवाद और परामर्श करने का अनुरोध किया। आपसे बातचीत करने के लिए बार-बार किया गया मेरा हर प्रयास विफल रहा। सदन के अंदर भी विचार -विमर्श के लिए मेरे हर आग्रह को आपने सिरे से नकार दिया। सदन में मुझे इस पीड़ा को भी वहन करना पड़ा।’
‘सदन में इरादतन व्यवधान पैदा किया जा रहा था’
खरगे के 22 दिसंबर के पत्र का जवाब देते हुए राज्यसभा के सभापति ने कहा कि, ‘हमें आगे बढ़ने की जरूरत है’ और उन्हें 25 दिसंबर को ‘या उनकी सुविधानुसार किसी भी समय पर’ अपने आधिकारिक आवास पर बातचीत के लिए आमंत्रित किया। धनखड़ ने कहा कि खरगे के दृष्टिकोण के विपरीत, निलंबन का कारण सदन में की जा रही नारेबाजी, तख्ती लहराना, सदन के वेल में घुसने का प्रयास और आसन के सामने अशोभनीय व्यवहार कर, इरादतन पैदा किया जा रहा व्यवधान था। उपराष्ट्रपति ने कहा, ‘इस दुर्भाग्यपूर्ण कदम को उठाने से पहले, मेरे द्वारा सदन में व्यवस्था स्थापित करने के हर प्रयास, हर उपाय किए गए।’
‘मैंने कक्ष में भी बुलाकर बातचीत करने का प्रयास किया’
पत्र में धनखड़ ने लिखा, ‘थोड़ी-थोड़ी देर के लिए सदन को स्थगित कर, मैंने अपने कक्ष में बुला कर बातचीत करने का भी भरसक प्रयास किया। अगर विचार करें तो आप स्वयं स्वीकार करेंगे कि नेता, प्रतिपक्ष द्वारा इस प्रकार सभापति के साथ बातचीत और संवाद का तिरस्कार करना, सदन के अंदर भी ऐसे हर अनुरोध को नकार देना, ऐसा होना तो न सिर्फ अभूतपूर्व है बल्कि उस स्थापित संसदीय परिपाटी के भी विरुद्ध है, जिसमें आप जैसा वरिष्ठ सांसद निष्णात और निपुण है।’ धनखड़ ने पत्र में लिखा है कि राजनैतिक रणनीति के तहत व्यवधान को औजार बना लेना, लोकतंत्र के मंदिर को अपवित्र करने से कम पाप नहीं है।
राज्यसभा से कुल 46 सांसद हुए थे सस्पेंड
इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष खरगे ने शुक्रवार को धनखड़ को पत्र लिखकर कहा था कि इतने बड़े पैमाने पर सांसदों का निलंबन भारत के संसदीय लोकतंत्र के मूल सिद्धांतों के लिए हानिकारक है। उन्होंने धनखड़ को लिखे पत्र में कहा कि वह इतने अधिक सांसदों के निलंबन से दुखी एवं व्यथित हैं और हताश एवं निराश महसूस कर रहे हैं। इससे पहले उपराष्ट्रपति धनखड़ ने खरगे को लिखे एक पत्र में कहा था कि आसन से स्वीकार न की जा सकने वाली मांग करके सदन को पंगु बना देना दुर्भाग्यपूर्ण और जनहित के खिलाफ है। बता दें कि शीतकालीन सत्र के दौरान अनुचित व्यवहार और कदाचार के कारण 46 सांसदों को राज्यसभा से निलंबित कर दिया गया था।