पर्यावरण

भारत: जलवायु परिवर्तन से प्रेरित प्रवासन से निपटने हेतु, FAO और IOM की संयुक्त पहल

भारत के पूर्वी प्रदेश ओडिशा के गंजम ज़िले के न्यू बॉक्सिपल्ली (वेंकटरायपुर गाँव) के मछुआरा समुदायों में, लगभग आधी महिलाएँ हैं. क्षेत्र में मछलियों की संख्या तेज़ी से घट रही है, वहीं लम्बे समय तक समुद्र में रहने से, अधेड़ उम्र के मछुआरे स्वास्थ्य समस्यायों से जूझ रहे हैं, जिससे घर का बोझ महिलाओं के कन्धों पर आ पड़ा है. इन तटीय क्षेत्रों में ज़ल्दी-जल्दी चक्रवात आने के कारण, छोटी नावों में मछली पकड़ना जोखिम भरा होता जा रहा है.

कठिन परिस्थितियों में गाँव के युवा, पलायन का रास्ता अपना रहे हैं, जिससे मत्स्य पालन अर्थव्यवस्था कमज़ोर होती जा रही है. जहाँ माता-पिता दोनों रोज़गार के लिए दूसरे शहरों में पलायन करते हैं, वहीं इससे बच्चों के कल्याण पर असर पड़ता है – ख़ासतौर पर लड़कियों को अपने छोटे भाई-बहनों की देखभाल के लिए अक्सर स्कूल छोड़ना पड़ता है.

भारतीय कृषि अनुसन्धान परिषद (ICAR) के जलवायु सहनशीलता कृषि पर राष्ट्रीय नवाचार (NICRA) के तहत, देश के कुल 310 ज़िलों को, जलवायु संवेदनशीलता के लिए सर्वाधिक असुरक्षित श्रेणी में रखा गया है, जिनमें गंजम ‘अत्यधिक’ संवेदनशील क़रार दिया गया है. 

विदेशी प्रवासन

वहीं तेलंगाना के हैदराबाद शहर के विकाराबाद ज़िले का मेटलाकुंटा गाँव भी इससे लाभान्वित होगा, जिसकी कुल जनसंख्या लगभग 5 हज़ार है और यहाँ लगभग 1,500 परिवार रहते हैं. यहाँ के लगभग 90% परिवारों में कम से कम एक सदस्य प्रवासी रहा है, जिसने रोज़गार के लिए लगभग 50 वर्ष खाड़ी के देशों में बिताए है.

हालाँकि इससे प्रवासी परिवारों की सामाजिक और आर्थिक गतिशीलता में वृद्धि हुई है, और उनके द्वारा घर भेजे गए धन के ज़रिए तेलंगाना की अर्थव्यवस्था मज़बूत हुई है. उनमें से अधिकांश ने अपने घर या ज़मीन ख़रीद लिए हैं, और बच्चों को भी शिक्षा दे पा रहे हैं. लेकिन उनका कहना है कि अगर उनके गाँव या उसके आसपास रोज़गार के अधिक अवसर होते, तो उन्हें विदेश जाने की ज़रूरत नहीं पड़ती. 

विदेशों में काम करते हुए वो दो साल में केवल एक बार, दो महीने के लिए ही अपने देश आ पाते हैं. इसे उनके रिश्ते पीछे छूटते जा रहे हैं और घर की देखभाल के लिए महिलाओं पर ज़िम्मेदारी छोड़नी पड़ती है. वैश्विक वेतन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं होने के कारण बचत में कमी, प्रवासन प्रक्रिया के लिए एजेंट द्वारा मनमाना धन वसूलना और कोविड-19 महामारी के कारण गाँव में लोगों की वापसी हो रही है. यह लोग अब दैनिक मज़दूरी के लिए हैदराबाद जाते हैं, जहाँ शहर के ख़र्चों की वजह से कुछ भी बचत नहीं होती है. 

गाँव में खेती की जाती है लेकिन कुछ ही समय के लिए. कृषि उत्पादन की कुल लागत बढ़ती जा रही है. एक एकड़ भूमि पर धान उगाने का की लागत, लगभग 30 हज़ार रुपए है; लेकिन 6 महीने की मेहनत के बाद भी ख़ास मुनाफ़ा नहीं हो पाता. बेमौसम बारिश से अक्सर फ़सलें ख़राब हो जाती हैं और भंडारण सुविधाओं के अभाव में अनाज खुले में सूखने से नुक़सान होता है. 

भारत के पश्चिम बंगाल राज्य में, वर्षा की अनियमितता से निपटने के लिए किसान जूट जैसी फ़सलें उगा रहे हैं.

कार्यक्रम का उद्देश्य

बदलती जलवायु से, कृषि में अधिक जोखिम और अनिश्चितता उत्पन्न होती है. वर्षा के अनिश्चित रुझान, बाढ़ और सूखे से जूझने के कारण अक्सर  लोग जलवायु कारणों से प्रवासन के लिए मजबूर हो जाते हैं. 

इन्हीं मुद्दों के हल के लिए एफ़एओ और आईओएम ने प्रवासन बहु-साझीदार न्यास निधि (MMPTF) के समर्थन से, ओडिशा व तेलंगाना प्रान्तों में तीन वर्षीय कार्यक्रम लागू किया है. इसके तहत, प्रवासन, कृषि, जलवायु परिवर्तन और ग्रामीण समुदायों में प्रवास करने वाले या वापस लौटने वाले व्यक्तियों के एकीकरण से जुड़े मुद्दों पर ध्यान दिया जाएगा. 

कार्यक्रम के तहत, ओडिशा व तेलंगाना में जलवायु-प्रेरित प्रवासन से प्रभावित ग्रामीण इलाक़ों के निवासियों के लिए, जलवायु-अनुकूल कृषि पद्धतियाँ अपनाने और सफल जलवायु-सहनसक्षम कृषि व्यवसाय स्थापित करने के लिए, क्षमता, कौशल, ज्ञान और वित्त तक पहुँच में वृद्धि; और कृषि के विस्तार के लिए सेवाओं तक बेहतर पहुँच बनाने के प्रयास किए जाएँगे.

इससे महिलाओं, युवजन, छोटे किसानों व सीमान्त किसानों के साथ-साथ, वापस लौटने वाले प्रवासियों की विशिष्ट ज़रूरतों का समर्थन किया जा सके, एवं उनकी आजीविका के स्रोतों को अधिक सहनसक्षम बनाया जा सके. 

लक्ष्य हासिल करने के लिए, अधिकारों के प्रति जागरूकता बढ़ाने, सेवाओं तक पहुँच व सुरक्षित प्रवासन की जानकारी देने; नीतियों में सुधार, राष्ट्रीय, प्रान्तीय एवं स्थानीय स्तर पर बेहतर सामंजस्य व सहयोग जैसे मुद्दों पर काम किया जा रहा है. जलवायु सहनसक्षमता के यह संयुक्त प्रयास, भविष्य में सहनसक्षम आजीविकाओं के निर्माण और लोगों की आय में वृद्धि का कारक बनेंगे. 

यदि लोग इसके बाद भी प्रवासन करना चाहें तो इसके लिए उन्हें सुरक्षित एवं प्रामाणिक रास्ते ही अपनाने के लिए पर्याप्त जानकारी उपलब्ध करवाई जाएगी, ताकि सुरक्षित प्रवासन से बेहतर परिणाम प्राप्त हों और पीछे छूट गए बच्चों व महिलाओं को आर्थिक लाभ हासिल हो. 

सकारात्मक प्रयास

एफ़एओ के उप-प्रतिनिधि, डॉक्टर कोन्डा चाव्वा ने छोटे किसानों के जीवन और आजीविका में इस संयुक्त पहल के सार्थक योगदान पर बल देते हुए कहा कि इससे, महिलाओं, युवाओं और हाशिए पर रहने वाले समूहों को सशक्त बनाने, और प्रवासी एवं कमज़ोर परिवारों की जलवायु सहनसक्षमता बढ़ाने में मदद मिलेगी. 

उन्होंने कहा, “एफ़एओ का मानना है कि प्रवासन, समाज के विकास और आर्थिक, सामाजिक व मानव विकास तथा परिवर्तन की प्रक्रिया का अहम हिस्सा है. एफ़एओ, प्रवासन की अवधि, दिशा या कारणों की परवाह किए बिना, ग्रामीण क्षेत्रों से व उनके बीच ग्रामीण प्रवास पर ध्यान केन्द्रित करेगा.” 

एफ़एओ का उद्देश्य, जलवायु-सहनसक्षम कृषि पर अपने काम को आगे बढ़ाने का होगा, जबकि आईओएम, प्रवासन सहायता सेवाओं में मदद देगा.

वहीं भारत में आईओएम के कार्यालय प्रमुख, संजय अवस्थी ने कहा, “आवश्यकता ऐसे हस्तक्षेप निर्मित करने की है जो समावेशी एवं व्यापक हों व प्रभावी जानकारी दे सकें, और अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन शासन तथा प्रबन्धन ढाँचे का समर्थन करते हों.” 

उन्होंने विश्वास व्यक्त किया कि यह संयुक्त कार्यक्रम “प्रवासन प्रबन्धन के दायरे का विस्तार करेगा.”

भारत में संयुक्त राष्ट्र के रैज़िडेंट कोऑर्डिनेटर शॉम्बी शार्प ने इन मुद्दों को, “प्रत्यक्ष रूप से तकनीकी लेकिन प्रवासन, कृषि और जलवायु परिवर्तन से स्वाभाविक रूप से जुड़े मुद्दे” बताया. 

उन्होंने, कार्यक्रम के बजट का 35% से अधिक हिस्सा, लैंगिक समानता और महिला सशक्तिकरण के लिए, आवंटित किए जाने की सराहना करते हुए, इस संयुक्त कार्यक्रम में “मानवाधिकार दृष्टिकोण अपनाए जाने” की सराहना की. 

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