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UP Loksabha Election: कान्हा की नगरी मथुरा में कैसी होगी राजनीति की रासलीला? वोटर यात्रा में जानें मतदाताओं के मन की बात

UP Loksabha Election: कान्हा की नगरी मथुरा में कैसी होगी राजनीति की रासलीला? वोटर यात्रा में जानें मतदाताओं के मन की बात

“मानुष हौं तो वही रसखानि बसौ ब्रज गोकुल गांव के ग्वारन।

जो पसु हौं तो कहा बसु मेरा चरौं नित नंद की धेनु मंझारन।

पाहन हौं तो वही गिरि को जो धर्यौ कर छत्र पुरंदर कारन।

जो खग हौं तौ बसेरो करौं मिलि कालिंदी-कूल-कदंब की डारन॥

UP Loksabha Election 2024: इस श्लोक का मतलबा है कि अगले जन्म में मनुष्य बनूं, तो इसी ब्रज में पैदा हुऊं। अगर पशु बनू तो इसी ब्रज में, अगर पक्षी का जन्म हो तो यमुना तट के कदंब की डाल में बसेरा करूं। अगर पत्थर बनें तो इस गिरिराज जी का जिसे भगवान श्री कृष्ण ने अपनी उंगली पर उठा लिया था। इसी भाव में डूबा पूरा ब्रज क्षेत्र। भगवान श्री कृष्ण की जन्म भूमि और लीला स्थली मथुरा वृंदावन। मंदिरों की घंटियों और घड़ियालों से गुंजायमान ब्रज क्षेत्र आजकल चुनावी चर्चा में मशगूल है।

प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी (Hema Malini) वोट के लिए गलियों के चक्कर लगा रही हैं। सभी को राधे-राधे बोल रही हैं। संतों के आश्रमों में जाकर दंडवत कर रही हैं। मंदिरों में जाकर श्री कृष्ण से कृपा मांग रही हैं। इस सीट पर बहुजन समाज पार्टी ने एक दाव चल दिया है। BSP ने सुरेश सिंह को टिकट दिया है और वह जाट है।

सुरेश सिंह भारतीय जनता पार्टी से जुड़े रहे हैं और पिछले दो बार से विधानसभा का टिकट मांग रहे थे। जब नहीं मिला तो बहुजन समाज पार्टी का लोकसभा टिकट लेकर मैदान में उतर गए।

मथुरा में फंस गई कांग्रेस!

कांग्रेस ने पूरा जोर लगाया कि मथुरा सीट सपा उनके लिए छोड़ दे। सपा ने यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ भी दी, लेकिन अब यह समझ में आ रहा है कि कांग्रेस ने बिना तैयारी के इस सीट पर दावा ठोक दिया।

कांग्रेस ने यहां पर मुकेश धनगर को टिकट दिया है। कांग्रेस के कार्यकर्ता लक्ष्मी नारायण कहते हैं कि कांग्रेस यहां फस गई है। मुझे तो चिंता इस बात की हो रही है कि कहीं लड़ाई बीजेपी और बीएसपी के बीच ना सिमट जाए।

इस सीट पर जाट और दलित समुदाय के मतदाता बड़ी संख्या में हैं। सुरेश सिंह जाट हैं और बीएसपी ने इसी रणनीति के तहत उन्हें टिकट दिया है कि अगर जाट और दलित एक साथ हो जाएं, तो बसपा यहां चुनाव जीत सकती है, लेकिन बसपा की यह रणनीति सफल नहीं हो रही है।

हेमा मालिनी के साथ हैं जाट

दलित खासतौर से जाटव मतदाता पूरी तरह बसपा के साथ है। उसमें कोई विभाजन नहीं है, लेकिन जाट मतदाता हेमा मालिनी के साथ है । इसके कई कारण हैं। हेमा मालिनी के पति धर्मेंद्र खुद जाट हैं।

गोवर्धन के ही रामेश्वर सिंह कहते हैं कि हेमा मालिनी जाट है और वोट उन्हीं को देंगे। पर क्यों? इस पर वह कहते हैं कि वो मोदी के साथ हैं। फिर हेमा मालिनी जाट हैं और इस बार तो जयंत चौधरी भी बीजेपी के साथ आ गए हैं। इसलिए जाट वोटों में कोई बंटवारा नहीं है।

2009 में RLD के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने मथुरा सीट को इसीलिए चुना था, क्योंकि ये जाट बहुल सीट है और वो जीते भी थे। यह अलग बात है कि वो 2014 का चुनाव हार गए और हेमा मालिनी चुनाव जीत गईं। 2019 में भी हेमा मालिनी इसी सीट से जीती थीं।

मोदी का ही हल्ला है

बसपा इसी जगह से मात खा रही है, लेकिन सीही पालसो गांव के रमन लाल कहते हैं कि उनका वोट ‘बहन जी’ को जाएगा। सबको देख लिया इस बार बहन जी को वोट देंगे। पिछले बार किसको दिया था, तो रमन लाल बोले कि हाथी को।

गोवर्धन का दान घाटी मंदिर के बाहर से गिरिराज जी की परिक्रमा शुरू होती है। गिरिराज महाराज की जय के नारों से यह इलाका गूंजता रहता है। परिक्रमा मार्ग के बगल में ही एक चबूतरे में बैठे तीन लोग चुनावी चर्चा में तल्लीन हैं। क्या हो रहा है चुनाव में? सुनील, मनीष शर्मा और कलुआ पंडित कहते हैं कि मोदी का हल्ला सुन रहे हैं। लोग उन्हीं का नाम ले रहे हैं। लोग मोदी के साथ हैं। इसीलिए हेमा मालिनी चुनाव जीत रही हैं।

क्या हेमा मालिनी को अपने नाम पर वोट नहीं मिल रहा है ? कलुआ पंडित कहते हैं की वो ज्यादा आती-जाती नहीं हैं, इसलिए उनके नाम पर वोट कम पड़ रहा है। पास में ही एक ठेलिया में श्रद्धालुओ का इंतजार करते राम नारायण कहते हैं कि इस बार फिर चांस मोदी का है। मोदी ने लोगों की मदद की है। लोगों को अनाज मिल रहा है, लेकिन बच्चे बिगड़ रहे हैं।

पंजा कमजोर हो रहा है?

मथुरा से कोई नशीला पदार्थ ला कर लोग बेच रहे हैं। इसलिए योगी और मोदी को उस पर रोक लगानी चाहिए। चाय की दुकान में बैठे हाकिम सिंह कहते हैं कि यहां पर चुनाव बहुजन समाज पार्टी से हैं। कांग्रेस बहुत कमजोर लग रही है। छटीकरा के सज्जन सिंह कहते हैं कि उनका वोट हाथी पर जाएगा, यहां पर तो हाथी जीत रहा है।

कांग्रेस का क्या होगा तो कहते हैं, पंजा कमजोर हो रहा। क्यों? सज्जन सिंह बताते हैं कि कांग्रेस का ज्यादा नाम नहीं चल रहा। जो नाम चल रहा है, कमल और हाथी का चल रहा है। अब पंजा आगे मजबूत हो जाए पता नहीं। लेकिन फिलहाल लड़ाई BSP और BJP के बीच ही है।

मथुरा में नहीं हुआ विकास

गुच्चन कहते हैं कि यहां की स्थिति खराब है। विकास नहीं हुआ है। सड़के देख लीजिए। हेमा मालिनी कभी दर्शन नहीं देतीं, लेकिन मोदी के चेहरे पर वोट दे देंगे और कहां जाएं? कोई विकल्प भी तो नहीं है। छटीकरा के रहने वाले सनेही कहते हैं कि बहुजन समाज पार्टी को दलित वोट मिल रहा है, लेकिन और कोई वोट उन्हें मिलेगा या नहीं मिलेगा यह बड़ा सवाल है। देखो क्या होता है।

मुसलमान मतदाता तो कांग्रेस के साथ है, लेकिन मुसलमान मतदाता अकेले दम पर न किसी को हरा सकता है न ही जिता सकता है। मथुरा के रामेंद्र चतुर्वेदी कहते हैं कि सपा और कांग्रेस जयंत चौधरी को अपने साथ नहीं रख पाई और उसका परिणाम यहां दिख रहा है। जाट वोट जो यहां सर्वाधिक है। वह सब कमल पर जा रहा है। इसलिए ज्यादा अन्य किसी के लिए उम्मीद नहीं है।

असल में यह तथ्य हैरान करता है कि आखिर किसके बल पर कांग्रेस ने मथुरा सीट अपने लिए मांग ली। न उनके पास मजबूत प्रत्याशी था न तैयारी थी और मथुरा सीट पाने के लिए पूरा जोर लगा दिया। अब कांग्रेस के पास कार्यकर्ताओं का भी अभाव है और मतदाता भी बहुत ज्यादा जुड़ा नहीं है। कांग्रेस ने यहां पर बहुत काम भी नहीं किया, जबकि BSP का अपना कैडर है और वो मजबूती से उसके साथ खड़ा हुआ है। अपने प्रत्याशी के लिए लड़ाई भी लड़ रहा है। BJP अपने कार्यकर्ताओं के बल पर मैदान में है और उसके पक्ष में हवा भी दिख रही है।

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