छाप तिलक सब छीनी रे मोसे नैना मिलाइके
प्रेम भटी का मदवा पिलाइके
मतवारी कर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके
गोरी गोरी बईयां, हरी हरी चूड़ियां
बईयां पकड़ धर लीन्ही रे मोसे नैना मिलाइके।
एटा आए और अमीर खुसरो याद ना आए यह कैसे हो सकता है। यह धरती अमीर खुसरो की जन्मस्थली है। ऐसा सूफी गायक जो आज भी लोगों के जुबान पर जिंदा है। कहते हैं एटा के सोरों में ही गोस्वामी तुलसीदास जी का जन्म हुआ था। वैसे इसको लेकर तमाम विवाद हैं। एटा अपने यज्ञशाला के लिए भी बहुत प्रसिद्ध है जो गुरुकुल विद्यालय में स्थित है। यज्ञशाला को दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा यज्ञशाला माना जाता है। लेकिन आज यहां लोकसभा चुनाव की चर्चा चल रही है क्योंकि तीसरे चरण में यहां भी 7 मई को मतदान है।
क्या कल्याण सिंह के इस मजबूत किले को उनके पुत्र राजवीर सिंह बचा पाएंगे या नहीं? अखिलेश यादव ने इस बार शाक्य प्रत्याशी उतार कर लड़ाई को रोचक बना दिया है और इसका परिणाम यह हुआ कि पिछले चुनाव में भारतीय जनता पार्टी से टक्कर लेने वाले देवेंद्र सिंह यादव पार्टी के छिटक कर भाजपा के पाले में चले गए। क्या होगा इस बार? क्या समाजवादी पार्टी की रणनीति कामयाब हो जाएगी या बीजेपी ही कामयाब रहेगी।
एटा के चुनाव की कहानी बहुत रोचक है। उत्तर प्रदेश की राजनीति से दिल्ली की राजनीति का रास्ता पकड़ने वाले कल्याण सिंह 2009 में इसी एटा लोकसभा चुनाव क्षेत्र से जीते थे। वास्तव में उन्होंने उस चुनाव में बीजेपी से बगावत की थी। कई बार पार्टी से बाहर जाने और वापस लौट के बाद कल्याण सिंह ने जन क्रांति पार्टी का गठन किया था और इसी पार्टी के बैनर तले वह एटा से उतरे थे। उस समय उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक ऐसी घटना हुई जिससे राजनीतिक पंडित चौक उठे। जो मुलायम और कल्याण एक दूसरे के राजनीतिक दुश्मन थे वे दोस्त हो गए थे। वह भी भाजपा को मिटाने के लिए। दोनों एक मंच पर आए थे।
कल्याण सिंह का समर्थन मुलायम सिंह यादव ने किया था और कल्याण चुनाव जीत गए। फिरोजाबाद लोकसभा उप चुनाव हारने के बाद मुलायम सिंह यादव को लगा कि कल्याण सिंह से उनकी दोस्ती को मुसलमानों ने पसंद नहीं किया और उन्होंने कल्याणसिंह से किनारा कर लिया। मुलायम के बयान के बाद कल्याण सिंह ने मुलायम सिंह यादव को विश्वासघाती करार दिया और दोस्ती टूट गई। कल्याण सिंह फिर भाजपा में लौटे और नरेंद्र मोदी के प्रधान मंत्री बनने के बाद वह राजस्थान के गवर्नर हो गए।
कल्याण सिंह के बाद उनके पुत्र राजवीर सिंह एटा से 2014 का चुनाव लड़े और चुनाव जीते भी। वर्ष 2019 का चुनाव राजवीर एक लाख 22 हजार वोटो से जीते। सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव को उम्मीद थी की 2019 में बसपा से गठबंधन के बाद समाजवादी पार्टी वहां कामयाब हो जाएगी लेकिन ऐसा हो नहीं सका। इसीलिए अखिलेश यादव ने यहां एक नया प्रयोग किया है और देवेश शाक्य को मैदान में उतार दिया है। समाजवादी पार्टी के जवाहर यादव कहते हैं कि इस बार सपा जीत जाएगी क्योंकि उसे शाक्य वोट भी मिल रहा है लेकिन भारतीय जनता पार्टी चौकन्नी हो चुकी है।
इस चुनाव में एक बड़ा मुद्दा है माफियाओं खिलाफ चलाया गया अभियान। समाजवादी पार्टी से जुड़े नेताओं पूर्व विधायक जोगिंदर सिंह और रामेश्वर सिंह यादव दोनों इस समय जेल में बंद है। इन दोनों पर दर्जनों आपराधिक मामले हैं और वह भी छोटे-मोटे नहीं बल्कि बहुत संगीन। एक वह दौर था जब इन दोनों के खिलाफ कोई बोलता तक नहीं था। उनकी दबंगई के किस्से लोग दबी जवान से चर्चा करते थे। इन दोनों ने बड़ी संख्या में लोगों की जमीनों पर कब्जा किया और दबंगई की।
समाजवादी पार्टी के नेता इन दोनों अपराधियों को संरक्षण देते हैं और विधायक भी बनवाया। अब योगी सरकार ने उनकी संपत्ति पर बुलडोजर चलवा दिया है और इन दोनों द्वारा हथियाई गई जमीनों को कब्जे में ले लिया। यह मुद्दा भी चुनाव में बना हुआ है। वास्तव में समाजवादी पार्टी यह समझाने में लगी है की यादव समुदाय को दबा दिया गया है। इस लिए यादव एक होकर वोट दे दो। लेकिन इसका असर अन्य वर्ग पर भी पड़ रहा है और वह भाजपा के साथ हैं।
कासगंज की मनीराम कहते हैं कि योगी सरकार ने बहुत गरीबों की संपत्तियां बचा ली और इसका असर चुनाव में दिखेगा । फिलहाल यहां पर लड़ाई भाजपा,सपा बसपा के बीच दिख रही है। बहुजन समाज पार्टी ने इस सीट पर मोहम्मद इरफान को प्रत्याशी बनाया है मोहम्मद इरफान कांग्रेस से जुड़े रहे उन्हें उम्मीद थी की कांग्रेस उन्हें एटा सीट दे देगी लेकिन जब सपा और कांग्रेस के बीच गठबंधन हो गया तो मोहम्मद इरफान बसपा में शामिल हो गए और मायावती ने उन्हें टिकट भी दे दिया।
मोहम्मद इरफान दावा करते हैं कि वह एटा की तस्वीर बदल देंगे। उन्हें दलित वोट मिल रहा है और मुस्लिम वोट पाने के लिए वह जोर आजमाइश कर रहे हैं। एटा के ही मोहम्मद सुलेमान कहते हैं कि उनका वोट हाथी में जाएगा । बसपा के इरफान पढ़े लिखे और बड़े वकील भी हैं। समाजवादी पार्टी मुसलमान के हित की बात कहती है लेकिन हित नहीं करती है और ना उन्हें टिकट देती है। दूसरी ओर दलितों में बसपा का वैसे भी जोर है। बसपा दलित और मुस्लिम समीकरण के बल पर चुनाव जीत लेना चाहती है जबकि भारतीय जनता पार्टी को सवर्ण और अति दलित और अति पिछड़े वर्ग पर भरोसा है ।
यही नहीं इस वर्ग का वोट भाजपा के साथ जा रहा है। यहां पर सवर्ण मतदाताओं की संख्या बहुत है। एटा के ही श्रवण कुमार शर्मा कहते हैं कि वास्तव में कानून व्यवस्था की स्थिति में सुधार हुआ है और गुंडाराज खत्म हुआ है। वह दिन याद आता है जहां गुंडों की ही तूती बोलती थी। अब लोग कानून व्यवस्था के मुद्दे पर भी चर्चा करते हैं। वह कहते हैं कि चुनाव हुए कौन जीतेगा यह कहना कठिन है। फिलहाल उन्हें भाजपा भारी दिख रही है।
7 मई को लोकसभा चुनाव में कहां है फोकस
समाजवादी पार्टी के देवेश शाक्य मैदान में हैं वह ज्यादा से ज्यादा शाक्य वोट को अपने साथ ले जाना चाहते हैं और इसमें वह सफल भी दिखाई दे रहे हैं। लेकिन दलितों में सपा को कुछ भी नहीं नहीं मिल रहा है । कुल मिलाकर यहां लड़ाई तिकोनी हो रही है है। समाजवादी पार्टी किसी तरह अपने पुराने किले को फिर से कब्जा कर लेना चाहती है। एक समय यह कहा जाता था की एटा मैनपुरी इटावा सपा के गढ़ है लेकिन अब वह टूट चुके हैं और समाजवादी पार्टी मैनपुरी में सिमट गई है । इस बार सपा के सामने कठिन चुनौती है । वह कुछ बदल पाएगी या नहीं यह 4 जून का परिणाम ही बताएंगे।