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UNICEF: 40 सर्वाधिक धनी देशों में, 20% बच्चे जी रहे हैं निर्धनता में

UNICEF: 40 सर्वाधिक धनी देशों में, 20% बच्चे जी रहे हैं निर्धनता में

यूनीसेफ़ की अनुसन्धान शाखा का यह नया निष्कर्ष, आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) और यूरोपीय संघ के सदस्य देशों पर केन्द्रित है.

रिपोर्ट में, विकसित अर्थव्यवस्थाओं के समूह के बीच, बाल सहायता नीतियों का विश्लेषण करते हुए, पाया गया है कि सात साल की अवधि में, ग़रीबी में लगभग आठ प्रतिशत की कुल कमी के बावजूद, अब भी 6.9 करोड़ से अधिक बच्चे, ऐसे घरों में रह रहे हैं जिनकी आय, औसत राष्ट्रीय आय से 60 प्रतिशत से कम है.

रिपोर्ट के अनुसार, बाल निर्धनता से निपटने में सबसे अच्छा प्रदर्शन करने वाले देशों में पोलैंड और स्लोवीनेया हैं, इसके बाद लातविया और कोरिया गणराज्य का नम्बर है. इसके विपरीत, रिपोर्ट कहा गया है कि कुछ सबसे धनी देश पिछड़ रहे हैं.

इनोसेंटी के निदेशक, बो विक्टर नाइलुंड ने कहा, “बच्चों पर निर्धनता का प्रभाव निरन्तर और हानिकारक दोनों है.”

उन्होंने कहा कि अधिकांश बच्चों के लिए इसका मतलब यह है कि वे पर्याप्त पौष्टिक भोजन, कपड़े, स्कूल वस्तुओं की आपूर्ति या घर जैसी जगह के बिना ही बड़े हो सकते हैं. यह स्थिति, अधिकारों की पूर्ति को रोकती है और ख़राब शारीरिक व मानसिक स्वास्थ्य का कारण बन सकती है.”

प्रभावों की जीवन अवधि

रिपोर्ट के लेखकों ने चेतावनी दी है कि ग़रीबी के परिणाम जीवन भर रह सकते हैं.

जो बच्चे ग़रीबी का अनुभव करते हैं उनके स्कूली शिक्षा पूरा करने की सम्भावना कम होती है और इसलिए वयस्क होने पर उन्हें कम वेतन मिलता है. 

रिपोर्ट से मालूम होता है कि कुछ देशों में, एक वंचित क्षेत्र में पैदा हुआ व्यक्ति, एक धनी क्षेत्र में पैदा हुए व्यक्ति की तुलना में, आठ से नौ साल कम जीवित रह सकता है.

यह स्थिति भारी असमानताओं को भी उजागर करती है. उपलब्ध आँकड़ों के अनुसार 38 देशों में, एकल माता-पिता वाले परिवार में रहने वाले बच्चों के, ग़रीबी में रहने की सम्भावना अन्य बच्चों की तुलना में तीन गुना अधिक है. विकलांग या अल्पसंख्यक जातीय व नस्लीय पृष्ठभूमि वाले बच्चे भी औसत से अधिक जोखिम में हैं.

निष्कर्षों के अनुसार, 2012 से 2019 तक सर्वेक्षण किए गए देशों में, बड़े पैमाने पर स्थिर आर्थिक विकास देखा गया, जिससे 2008-10 की मन्दी के प्रभावों से उबरने का अवसर मिला.

आश्चर्यजनक अन्तर

रिपोर्ट में कहा गया है कि किसी देश की सम्पत्ति कितनी भी हो, बच्चों के रहन-सहन की स्थिति में सुधार किया जा सकता है. 

उदाहरण के लिए, पोलैंड, स्लोवेनिया, लातविया और लिथुआनिया ने बाल निर्धनता में महत्वपूर्ण कमी हासिल की है: पोलैंड में 38 प्रतिशत की कमी और अन्य देशों में 31 प्रतिशत की कमी दर्ज की गई. हालाँकि ये धनी OECD और यूरोपीय संघ के देशों में से नहीं हैं.

इस बीच, पाँच उच्च आय वाले देशों – ब्रिटेन (+20 प्रतिशत) और फ्रांस, आइसलैंड, नॉर्वे और स्विट्जरलैंड (लगभग +10 प्रतिशत) – में वित्तीय कठिनाई का सामना करने वाले घरों में रहने वाले बच्चों की संख्या में, वर्ष 2014 के बाद से सबसे बड़ी वृद्धि देखी गई.

नक़द लाभ के दूरगामी लाभ

बाल निर्धनता को ख़त्म करने के लिए, रिपोर्ट के लेखक बताते हैं कि सरकारों और हितधारकों को तत्काल, बच्चों के लिए सामाजिक सुरक्षा का विस्तार करना चाहिए, जिसमें परिवारों की घरेलू आय के पूरक के लिए बाल और पारिवारिक लाभ भी शामिल हैं.

यह सुनिश्चित करने की भी आवश्यकता है कि सभी बच्चों को बाल देखभाल और निशुल्क शिक्षा जैसी गुणवत्तापूर्ण बुनियादी सेवाओं तक पहुँच प्राप्त हो; पर्याप्त वेतन और परिवार-अनुकूल नीतियों के साथ रोज़गार के अवसर पैदा किए जाएँ और अल्पसंख्यक समूहों व एकल-प्रमुख परिवारों की विशिष्ट आवश्यकताओं के लिए उपाय अपनाए जाएँ.

“नक़द लाभ का निर्धनता उन्मूलन में तत्काल प्रभाव पड़ता है. निर्णयकर्ता बच्चों और पारिवारिक लाभों पर व्यय को प्राथमिकता देकर और उनमें वृद्धि करके, परिवारों को सहारा दे सकते हैं.”

बो विक्टर नाइलुंड ने देशों की सरकारों को, उन नीतियों की परख करने के लिए आमंत्रित किया, जो समय के साथ सफल साबित हुई हैं.

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