भारतीय विदेश मंत्री ने शुक्रवार को यूएन महासभा को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज की दुनिया में, संवाद कठिन हो गया है, और सहमतियाँ तो उससे भी कठिन.
“यह बैठक बहुत कठिन दौर में हो रही है, यूक्रेन का युद्ध तीसरे वर्ष में चल रहा है और ग़ाज़ा युद्ध के भी व्यापक और भीषण नतीजे हो रहे हैं.”
उधर वैश्विक दक्षिण में, विकास योजनाएँ पटरी से उतर गई हैं और टिकाऊ विकास लक्ष्य पीछे की तरफ़ जा रहे हैं.
उन्होंने कहा, “पक्षपातपूर्ण व्यापार प्रथाओं ने रोज़गारों के लिए जोखिम उत्पन्न कर दिया, प्रोद्योगिकियों में उन्नति लम्बे समय से आशा की स्रोत रही है, मगर अब वो समान रूप से चिन्ता का एक कारक भी बन गई है.”
“जलवायु परिवर्तन की घटनाएँ अब कहीं अधिक सघनता और जल्दी-जल्दी हो रहे हैं. खाद्य सुरक्षा और स्वास्थ्य सुरक्षा भी विशाल चिन्ताओं के मुद्दे हैं.”
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र की स्थापना के समय विचार-विमर्श, विश्व शान्ति सुनिश्चित करने के इर्दगिर्द केन्द्रित थी, जो वैश्विक समृद्धि के लिए एक पूर्व आवश्यकता है. “आज हम शान्ति व समृद्धि दोनों को ही समान रूप से ख़तरे में पड़ा हुआ पाते हैं.”
“और ऐसा इसलिए हो रहा है क्योंकि भरोसा दरक गया है और प्रक्रियाएँ बिखर चुकी हैं. देशों ने, अन्तरराष्ट्रीय व्यवस्था को योगदान करने की तुलना में, कहीं अधिक उसका शोषण किया है, जिससे वो निर्बल हो गई है.”
उन्होंने कहा कि यह स्थिति आज हर एक चुनौती और हर एक संकट में नज़र आती है. “इसलिए बहुपक्षवाद में सुधार करना अनिवार्य हो गया है.”
भारत के उपाय
भारतीय विदेश मंत्री एस जयशंकर ने बताया कि भारत ने वैश्विक चुनौतियों का सामना करने के लिए, विभिन्न उपाय किए हैं, जिनमें निर्बल जन, महिलाओं, किसानों और युवजन के मुद्दों पर ध्यान दिया जाना प्रमुख है.
स्वास्थ्य, शिक्षा और कामकाज के स्थानों पर, लैंगिक खाई कम हो रही है, और देश के खाद्य उत्पादक, एक साल में तीन बार, एक बटन दबाने के साथ ही, वित्तीय सहायता प्राप्त करते हैं.
उन्होंने बताया कि रोज़गार और उद्यम के अवसर बढ़ाने के लिए, गत दशक के दौरान लघु उद्योगों को, 49.5 करोड़ मुद्रा ऋण दिए गए हैं, जिनमें 67 प्रतिशत महिलाएँ हैं.
भारत ने वैश्विक दक्षिण की आवाज़ को भी अपनी चिन्ताएँ साझा करने और एकजुटता की ख़ातिर अपनी आवाज़ बुलन्द करने के लिए प्रोत्साहित किया है. उसके भारत ने वैश्विक दक्षिण के सम्मेलन आयोजित किए हैं, और हाल में एक सम्मेलन अगस्त 2024 में भी आयोजित किया.
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि भारत ने एक तरफ़ तो चन्द्रमा पर क़दम रखा है, दूसरी तरफ़ 5G इंटरनैट शुरू किया है, दुनिया के अनेक देशों को कोविड-19 की वैक्सीन मुहैया कराई है, और बहुत से वैश्विक क्षमता केन्द्र बनाए हैं, और इन सबके ज़रिए एक ख़ास पैग़ाम जाता है, जो है – एक विकसित भारत.
आतंकवाद का मुद्दा
उन्होंने कहा कि आतंकवाद, उस सबको व्यर्थ बना देता है, जिसकी दुनिया हिमायत करती है. आतंकवाद के सभी रूपों का मज़बूती से मुक़ाबला किया जाना होगा.
सुब्रहमण्यम जयशंकर ने कहा कि कुछ देश तो ऐसी परिस्थितियों के कारण पीछे रह जाते हैं जो उनके नियंत्रण से बाहर होते हैं, मगर कुछ देश जानबूझकर ऐसे निर्णय लेते हैं जिन के विनाशकारी परिणाम होते हैं.
“एक प्रखर उदाहरण हमारे पड़ोसी देश पाकिस्तान का है. दुर्भाग्य की बात है कि उनके ग़लत कारनामे हम सभी को प्रभावित करते हैं, विशेष रूप से पड़ोस को.“
उन्होंने कहा कि जब इस तरह की नीति, अपने लोगों में कट्टरवाद को भरती है तो वहाँ के सकल घरेलू उत्पाद (GDP) को केवल अतिवाद और आतंकवाद के निर्यात के रूप में ही मापा जा सकता है.
उन्होंने यूएन महासभा में, शुक्रवार को पाकिस्तानी प्रधानमंत्री के सम्बोधन का सन्दर्भ देते हुए, भारत के रुख़ को स्पष्ट किया. “पाकिस्तान की सीमा पार आतंकवाद को समर्थन देने की नीति कभी भी सफल नहीं होगी. और ये नीति दंड से मुक्ति की अपेक्षा भी नहीं कर सकती है.”
“बल्कि इसके उलट, कार्रवाइयों के, निश्चित रूप से परिणाम होते हैं. अब सुलझाने के लिए मुद्दा केवल – पाकिस्तान द्वारा ग़ैर-क़ानूनी तरीक़े से क़ाबिज़ भारतीय क्षेत्र को ख़ाली किए जाने का है.”
उन्होंने कहा कि, साथ ही, आतंकवाद के साथ लम्बे समय से पाकिस्तान के सम्बन्ध को ख़त्म किए जाने का मुद्दा भी है.
टकरावों के समाधान निकाले जाने की ज़रूरत
भारतीय विदेश मंत्री ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र ने हमेशा यही कहा है कि शान्ति और विकास एक दूसरे के पूरक हैं. फिर भी जब इनमें से एक के लिए चुनौतियाँ उत्पन्न होती हैं तो दूसरे को सम्पूर्ण महत्व नहीं दिया गया है.
स्पष्ट है कि कमज़ोर और नाज़ुक परिस्थितियों वाले लोगों के लिए, इनके आर्थिक परिणामों को भी उजागर किए जाने की ज़रूरत है.
“मगर हमें यह मानना होगा कि टकरावों के समाधान निकाले ही जाने होंगे. दुनिया एक बड़े पैमाने पर हिंसा जारी रहने पर केवल भाग्य के सहारे नहीं बैठ सकती है.”
उन्होंने कहा कि चाहे यूक्रेन में युद्ध हो या ग़ाज़ा का युद्ध हो, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को तेज़ी के साथ समाधान तलाश करने होंगे.
“अगर हमें वैश्विक सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करनी है तो ये ज़रूरी है कि नेतृत्व के स्थानों पर बैठे जन को, सही उदाहरण स्थापित करने होंगे. हम अपने बुनियादी सिद्धान्तों के व्यापक उल्लंघन की अनुमति नहीं दे सकते.”
…जारी…