विदेश मंत्री बूहबीब ने गुरूवार को यूएन महासभा के 79वें सत्र को सम्बोधित करते हुए कहा कि आज हमें संयुक्त राष्ट्र द्वारा अपनी भूमिका निभाए जाने की ज़रूरत है – आक्रामकता के पीड़ित छोटे दशों को आश्रय देने के लिए, जिनमें मेरा देश लेबनान भी है.
उन्होंने इसराइल द्वारा किए जा रहे हमलों की निन्दा की और मौजूदा टकराव पर तुरन्त विराम लगाने की पुकार लगाई.
लेबनानी नेता ने कहा कि लेबनान में वर्तमान हालात की वजह, क़ब्ज़ा कर लिए जाने से उपजे संकट की बुनियादी वजहों का समाधान नहीं होना है.
“किसी और वजह का दावा करना, समय बर्बाद कर देने जैसा होगा…जितने लम्बे समय तक क़ब्ज़ा जारी रहता है, वहाँ अस्थिरता रहेगी और युद्ध होगा.”
विदेश मंत्री बूहबीब ने कहा कि लेबनान में अनवरत युद्ध और आक्रामकता को जारी रखा है, देश में सीमावर्ती क्षेत्रों में हमले किए जा रहे हैं. नागरिक दूरसंचार उपकरणों को बमों में तब्दील कर दिया गया है, जिनमें एक साथ विस्फोट हो रहे हैं और बड़ी संख्या में लोगों की ज़िन्दगियाँ ख़त्म हो रही हैं, और लोग अपंग हो रहे हैं.
उन्होंने बताया कि जब दुनिया ऐसी आक्रामकता से शिथिल दिखाई दे रही है, अमेरिका, फ़्राँस और अन्य मित्र देशों द्वारा की गई घोषणाएँ स्वागत योग्य हैं. इनमें सीमावर्ती इलाक़ों में दीर्घकालिक शान्ति व स्थिरता की सम्भावनाओं की तलाश करने और विस्थापितों की वापसी की बात कही गई है.
विदेश मंत्री ने कहा कि लेबनान ने लम्बे समय से संयुक्त राष्ट्र के जरिये इसराइल के साथ अपने सीमा विवाद को सुलझाने का प्रयास किया है, मगर इसराइल ने इसके प्रति बेपरवाही दिखाई है.
“हम अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के निर्णय के भीतर ही आश्रय की तलाश कर रहे हैं,” जिनमें मानवाधिकारों की सार्वभौम घोषणापत्र भी है, जिसे तैयार करने में लेबनान ने भी मदद की थी.
“वैसे तो संयुक्त राष्ट्र अभी तक हमारी इसराइली आक्रामकता से रक्षा कर पाने में असमर्थ रहा है, हम क़ब्ज़े, हिंसा व दमन के विरुद्ध अग्रिम मोर्चे पर रक्षा के तौर पर इस संगठन के लिए प्रतिबद्ध हैं.”
इस कटु वास्तविकता का सामना करने के बाद, लेबनान का यह मानना है कि युद्ध की बजाय, सम्वाद एक व्यावहारिक विकल्प है.
विदेश मंत्री बूहबीब ने कहा कि संकट के निपटारे के लिए उनके देश का संकल्प, अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से सहयोग व समर्थन की अहमियत को दर्शाता है ताकि उनके देश में शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा दिया जा सके.
उन्होंने कहा कि लेबनान, इसराइल के जाल में फँसने से बचने के लिए हर कोशिश कर रहा है और हर रास्ते की तलाश कर रहा है ताकि इस युद्ध को और लम्बा खिंचने से रोका जा सके.
“क्या इसराइल 1948 के बाद से अब तक युद्ध से थक नहीं चुका है? इसराइल कब शान्ति चाहेगा? वो कब क्रोध और संहार की भाषा के इस्तेमाल को रोकेगा?”