रूस से कच्चा तेल खरीदना भारत के लिए फिर महंगा पड़ सकता है। एक सरकारी अधिकारी ने बताया कि मास्को से भेजा जाने वाला माल अब लंबे रूट के जरिये भारत पहुंच रहा है, ताकि मालवाहक जहाजों को लाल सागर रूट पर हमलों से बचाया जा सके। अधिकारी ने बताया, ‘कच्चे तेल के इंपोर्ट पर कुछ असर पड़ा है, क्योंकि रूस का कच्चा तेल अब लंबे रूट के जरिये भारत आ रहा है, जिससे यह महंगा हो गया है।’
हूती विद्रोहियों के हमले के कारण भारतीय कंपनियों के लिए शिपिंग कॉस्ट बढ़ गई है और प्रमुख फ्रेट कंपनियां अफ्रीका के लंबे रूट का इस्तेमाल कर रही हैं या स्वेज नहर के जरिये सुरक्षित यात्रा के लिए आसपास के बंदरगाहों पर इंतजार कर रही हैं। रूस-यूक्रेन युद्ध शुरू होने के बाद भारत ने रूस से कच्चे तेल का इंपोर्ट बढ़ा लिया था, क्योंकि वहां पर कच्चे तेल की खरीद में बड़े पैमाने पर छूट मिल रही थी। सस्ते इंपोर्ट की वजह से भारत सबसे ज्यादा कच्चा तेल अब रूस से ही खरीद रहा है और इसके बाद ईराक और सऊदी अरब का नंबर है।
कच्चे तेल का गणित
रूसी कच्चे तेल को लेकर जी-7 देशों की पाबंदियों की वजह से भारत के लिए यह पहले ही कम आकर्षक विकल्प रह गया था। हालांकि, लाल सागर संकट के बाद इसकी कीमतें और बढ़ गई हैं, लिहाजा भारत को कच्चे तेल की जरूरतों के लिए फिर से पश्चिम एशिया के अपने पारंपरिक सहयोगियों पर ज्यादा निर्भर रहना पड़ सकता है।
जनवरी में लगातार दूसरे महीने रूस से कच्चे तेल के इंपोर्ट में गिरावट देखने को मिली और यह 12 महीने के निचले स्तर पर पहुंच गया। रूस ने जनवरी में भारत को रोजाना 12 लाख बैरल कच्चे तेल की सप्लाई की, जबकि नवंबर और दिसंबर में यह आंकड़ा 13.2 लाख और 16.2 लाख प्रति बैरल था। कच्चा तेल फिलहाल 80 डॉलर प्रति बैरल के आसपास कारोबार कर रहा है।