देश भर में 11 मार्च से CAA कानून लागू हो गया। हालांकि CAA दिसंबर 2019 में ही संसद में पास हो गया था, राष्ट्रपति के दस्तखत भी हो गए थे लेकिन उसके बाद कोविड महामारी आ गई। इसलिए अब तक CAA के नियम अधिसूचित नहीं हो पाये थे। सोमवार शाम को सरकार ने CAA रूल्स को नोटीफाई कर दिया। चूंकि गृह मंत्री अमित शाह ने तीन महीने पहले बंगाल में कहा था कि चुनाव से पहले देश भर में CAA लागू होकर रहेगा, ममता बनर्जी, असदुद्दीन ओवैसी समेत तमाम नेताओं और मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध किया था। 2019 में भी CAA के खिलाफ देश भऱ में प्रोटेस्ट हुए थे, दिल्ली में शाहीन बाग का धरना तो कई महीनों तक चला था, इसलिए सोमवार को जैसे ही सरकार ने नोटिफिकेशन जारी किया, मुस्लिम संगठनों ने विरोध किया। ओवैसी ने इसे चुनावी पैंतरा बताया, अखिलेश यादव ने कहा, जब देश के नागरिक रोज़ी-रोटी के लिए बाहर जाने पर मजबूर हैं, तो दूसरों के लिए नागरिकता कानून लाने से क्या होगा? गृह मंत्री अमित शाह ने सोशल मीडिया पर 39 पन्नों का नोटिफ़िकेशन जारी कर दिया। नागरिकता हासिल करने के नियम क़ायदे तय कर दिए गए हैं। इस क़ानून के तहत, पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान में धर्म के आधार पर सताए गए लोग, भारत की नागरिकता ले सकेंगे। इन देशों के जो हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आ चुके हैं, उनको CAA के तहत नागरिकता मिल सकेगी। इन देशों के मुस्लिम नागरिकों को भारत की नागरिकता नहीं मिल सकेगी। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफ़ग़ानिस्तान के जो शरणार्थी भारत की नागरिकता लेना चाहेंगे, वो ऑनलाइन आवेदन कर सकेंगे। इन सभी शरणार्थियों को अपने आप भारत की नागरिकता नहीं मिलेगी। उन्हें ऑनलाइन एप्लीकेशन देनी होगी। हर जिले में एक empowered कमेटी बनेगी। ये कमेटी आवेदनों की जांच करेगी और हर ज़िले की कमेटी को दस्तेवाजों की जांच करने के बाद भारत की नागरिकता देने का हक होगा। पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिन्दू, सिख, ईसाई, बौद्ध, जैन और पारसी लोगों को दो बातों का ख्याल रखना है। एक तो ये साबित करने वाले दस्तावेज देने होंगे कि वो इन देशों के नागरिक थे और दूसरा, ये साबित करने वाले दस्तावेज देने होंगे कि वो 31 दिसंबर 2014 से पहले से भारत में रह रहे हैं।
नोटिफिकेशन के मुताबिक, नागरिकता के लिए अप्लाई करने वालों को अपने देश का पासपोर्ट, वहां की सरकार की तरफ से जारी कोई लाइसेंस, नागरिकता का प्रमाण पत्र, जन्म प्रमाणपत्र, जमीनों के कागजात या फिर अपने माता-पिता या दादा के पाकिस्तानी, बांग्लादेशी या अफ़ग़ानी नागरिक होने के सर्टिफिकेट भी जमा कर सकते हैं। इसके अलावा अगर वो 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए थे, तो वीजा की कॉपी, विदेश मंत्रालय की तरफ से जारी भारत में रहने का प्रमाण पत्र, स्कूल में एडमीशन का सर्टिफिकेट, बर्थ सर्फिकेट, आधार कार्ड, ड्राइविंग लाइसेंस जैसा कोई भी दस्तावेज जिससे ये साबित हो कि नागरिकता के लिए अप्लाई करने वाले 2014 से पहले से भारत में रह रहा है, ये सारे दस्तावेज आवेदन के साथ ऑनलाइन जमा करने होंगे। स्तरीय कमेटी उनकी जांच करेगी, फिर आवेदक को बुला सकती है और सब कुछ ठीक होने पर भारत की नागरिकता दे सकती है। जैसे ही CAA लागू होने की ख़बर आई, पश्चिम बंगाल में मतुआ समुदाय ने जश्न मनाना शुरू कर दिया। मतुआ समुदाय की महिलाओं ने ढोल बजाकर नया क़ानून लागू करने का स्वागत किया। मतुआ समुदाय के लोगों ने बांग्लादेश में सताए जाने के बाद भारत में पनाह ली थी लेकिन अभी तक उन्हें भारत की नागरिकता नहीं मिली थी। वो शरणार्थी की तरह रह रहे थे, उन्हें सरकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलता था। बीजेपी नेता शुभेंदु अधिकारी ने कहा कि CAA लागू होने से बंगाल में ढाई तीन करोड़ हिंदुओं में ख़ुशी की लहर है क्योंकि इससे उनको वेरिफिकेशन और नौकरियों के लिए जहां-तहां भागदौड़ नहीं करनी होगी। लेकिन ममता संभल कर बोलीं। उन्होंने कहा कि CAA तो बीजेपी का राजनीतिक पैंतरा है, वो पहले इस क़ानून के नियमों को पढ़ेंगी, फिर कुछ कहेंगी। CPM के नेता मुहम्मद सलीम ने कहा कि जब मोदी और ममता कोलकाता के राजभवन में मिले थे, तभी दोनों के बीच CAA पर डील हो गई थी। AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि CAA संविधान के ख़िलाफ़ है, इसलिए, मुसलमान इसका विरोध करते रहेंगे, फिर सड़कों पर उतरेंगे।
कांग्रेस के नेता दिग्विजय सिंह ने कहा कि कानून तो चार साल पहले बन गया था, इसे चुनाव से पहले नोटिफाई इसलिए किया गया ताकि मज़हबी भावनाओं को भड़काया जा सके।
CAA का कानून बनने के बाद सबसे बड़ा सवाल ये उठा है कि इस कानून को 4 साल बाद क्यों लागू किया गया? क्या इसका चुनाव से कोई संबंध है, तो मैं कहूंगा कि चुनाव से नाता तो है। ममता बनर्जी, अरविंद केजरीवाल और ओवैसी जैसे नेता जब CAA का विरोध करेंगे, तो बीजेपी को फायदा तो होगा। CAA को लेकर जब बयानबाजी होगी, मुस्लिम भाइयों को डराने भड़काने की कोशिश होगी, चुनाव में इसे मुद्दा बनाया जाएगा, तो जाहिर है बीजेपी को फायदा होगा। लेकिन मुझे लगता है चुनावी फायदे से हटकर इस कानून को और इसके rules को समझने की जररूत है। मुस्लिम भाई-बहनों को इसका हकीकत बताना जरूरी है।
पहली बात तो ये कि CAA का भारतीय नागरिकों से सरोकार नहीं हैं। इसमें किसी भी भारतीय की नागरिकता नहीं जाएगी। ये कानून सिर्फ पड़ोसी देशों में जुल्मों की शिकार अल्पसंख्यकों की मदद के लिए हैं। पाकिस्तान, अफगानिस्तान और बांग्लादेश से भागकर भारत आने वाले हिन्दू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध और पारसियों के लिए हैं। इन समुदायों के जो लोग 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हैं, उन्हें अब भारतीय नागरिकता मिल पाएगी। इससे हमारे देश के मुस्लिम या किसी और धर्म से जुड़े किसी भारतीय की नागरिकता पर कोई फर्क नहीं पड़ेगा, न उस पर सवाल उठेंगे, न उनसे कागज़ मांगे जाएंगे। ये सारी आशंकाएं, बेबुनियाद हैं, बे-सिरपैर की हैं। CAA सिर्फ नागरिकता देने का कानून है, लेने का नहीं। इसीलिए इस कानून से किसी को परेशान होने की जरूरत है। चूंकि चुनाव का माहौल है, इसलिए तमाम नेता और मौलाना राशन पानी लेकर मैदान में कूदेंगे, तरह तरह की बातें करेंगे, लेकिन किसी को panic में आने की जरूरत नहीं है। किसी को डरने की जरूरत नहीं है। बस, सबको सावधान रहने की ज़रूरत है। (रजत शर्मा)
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