RBI ने दिसंबर की शुरुआत में आई मॉनेटरी पॉलिसी में इंटरेस्ट रेट्स में किसी तरह का बदलाव नहीं किया। केंद्रीय बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी (MPC) का मानना था कि रिटेल इनफ्लेशन के बढ़ने का खतरा अभी बना हुआ है। एमपीसी ने अपनी पॉलिसी के रुख में भी बदलाव नहीं किया। लेकिन, यह तय है कि इंडिया में इंटरेस्ट रेट्स अपने पीक पर पहुंच गए हैं। यह कहना है एमपीसी के सदस्य जयंत वर्मा का। उन्होंने मनीकंट्रोल से बातचीत में इंटरेस्ट रेट्स और रिटेल इनफ्लेश सहित इकोनॉमी से जुड़े कई मसलों पर चर्चा की। उन्होंने यह भी बताया कि अभी इकोनॉमी के लिए सबसे बड़ा चैलेंज क्या है।
उन्होंने कहा कि इंटरेस्ट रेट्स पीक पर होने के बावजूद जल्द इंटरेस्ट रेट में कमी के आसार नहीं हैं। इसकी वजह यह है कि एमपीसी रेट घटाने से पहले इनफ्लेशन में लगातार गिरावट के ठोस सबूत का इंतजार करना चाहेगा। उन्होंने कहा कि इकोनॉमिक ग्रोथ के लिए सबसे बड़े रिस्क ग्लोबल स्लोडाउन और जियोपॉलिटिकल अनिश्चितता है। ऐसे में मॉनेटरी पॉलिसी को रियल इंटरेस्ट रेट लंबे समय तक हाई बने रहने की इजाजत नहीं देनी चाहिए। इससे इकोनॉमी को लेकर रिस्क बढ़ सकता है।
वर्मा ने कहा कि एमपीसी की मीटिंग में कुछ खास मसलों पर इसके सदस्यों का उनसे सहमत नहीं होने का मतलब यह नहीं कि उन्हें गंभीरता से नहीं लेते। इंटरेस्ट रेट में कमी के बारे में पूछने पर उन्होंने कहा कि मैंने अपने स्टेटमेंट में यह साफ कर दिया है कि रियल इंटरेस्ट रेट में जरूरत से ज्यादा तेजी रोकने के लिए नॉमिनल रेट को जल्द घटाना होगा। इनफ्लेशन में भी गिरावट का ट्रेंड है। हालांकि, तीन साल तक इनफ्लेशन लेवल के बहुत हाई रहने के बाद इसके लगातार नीचे आने के ठोस सबूत के बगैर इंटरेस्ट रेट्स में कमी करना ठीक नहीं होगा।
एमपीसी के बैठक के नतीजों को कई बार आम आदमी के लिए समझना मुश्किल होता है। इस बारे में पूछने पर वर्मा ने कहा कि वह इस बारे में कह चुके हैं कि यह एक वैधानिक संस्था है, जिससे उसके बयान आसान भाषा में होने चाहिए, जिससे यह लोगों को आसानी से समझ में आ जाए। यह पर्याप्त नहीं है कि सिर्फ ज्यादा जानकार लोग एमपीसी के स्टेटमेंट का मतलब समझ सकें। यह भी ठीक नहीं है कि एमपीसी से जुड़े लोग अपनी बातचीत के लिए कोड लैंग्वेज का इस्तेमाल करें। एमपीसी की भाषा ऐसी होनी चाहिए कि यह आम व्यक्ति को समझ में आए। वह एमपीसी की बातों का मतलब निकाल सके। उन्होंने कहा कि मेरा मानना है कि एमपीसी इस परीक्षा में बार-बार फेल हुआ है।
उन्होंने कहा कि मॉनेटरी पॉलिसी की आजादी बनाए रखने के लिए मेरा मानना है कि एमपीसी को फिस्कल पॉलिसी पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए। यह सही है कि मॉनेटरी पॉलिसी तैयार करते वक्त उसे फिस्कल पॉलिसी को ध्यान में रखना चाहिए। कोविड की महमारी के बाद इंडिया फिस्कल कंसॉलिडेशन के रास्ते पर चलने की कोशिश कर रहा है। मॉनेटरी पॉलिसी के इफेक्टिव ट्रांसमिशन के बारे में उन्होंने कहा कि हालांकि इस प्रोसेस में थोड़ी देरी देखने को मिलती है। लेकिन, इंडिया में मॉनेटरी पॉलिसी का ट्रांसमिशन इफेक्टिव है।