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Loksabha Election: उत्तर प्रदेश की चुनावी चर्चा में सीटों को लेकर नहीं मिल रहा कोई स्पष्ट रुझान

लोकसभा चुनाव का मुकाबला आखिरी चरण में है। उत्तर प्रदेश में तमाम चुनावी चर्चा के बीच अक्सर यह वाक्य सुनने को मिल रहा है- सीट फंसी पड़ी है। राज्य की तकरीबन सभी सीटों पर अनिश्चितता की स्थिति है और इस चुनाव के नतीजों के बाद ही यह बादल छंटेगा। उत्तर प्रदेश में लोकसभा की 80 सीटें हैं और यह राज्य सभी राजनीतिक पार्टियों के लिए बेहद अहम है। चुनाव प्रचार के दौरान किसी तरह का स्पष्ट संकेत नहीं मिलने की वजह से इस बात को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि यह चुनाव किस दिशा में जा रहा है।

वरिष्ठ पत्रकार सुनीता अरुण का कहना है कि उत्तर प्रदेश में राजनीतिक हालात काफी अनिश्चित हैं। उन्होंने कहा, ‘आप किसी से भी पूछेंगे, तो वह कहेगा ‘सीट फंसी पड़ी है।’ लोग अपनी बात के लिए जातीण समीकरणों, उम्मीदवारों की प्रोफाइल और वोटरों के मोहभंग का हवाला देते हैं।’ वाराणसी, रायबरेली, कन्नौज और मैनपुरी जैसी कुछ सीटों को छोड़ दिया जाए, तो बाकी सभी जगहों पर कांटे की टक्कर देखने को मिल रही है। इलाहाबाद और कानपुर को कभी भी बीजेपी की सुरक्षित सीट माना जाता था और फिलहाल इसे फंसी पड़ी सीट के तौर पर देखा जा रहा है।

एक और वरिष्ठ पत्रकार हेमंत तिवारी ने बताया, ‘इस चुनाव में स्पष्ट तौर पर विजेता को लेकर भविष्यवाणी करना बड़ा मुश्किल है। लिहाजा, चुनाव की दिशा को लेकर सवाल उठ रहे हैं। इस अनिश्चितता की मुख्य वजह मतदान प्रतिशत में कमी है। छठे चरण के चुनावों तक मतदान प्रतिशत 2019 के चुनावों से थोड़ा कम है, जिससे चुनाव नतीजों को लेकर सवाल उठ रहे हैं। यहां तक कि वोटर भी मौन है।’

माहौल में सुस्ती का असर सिर्फ वोटरों तक सीमित नहीं है। मतदाताओं के साथ-साथ राजनीतिक पार्टियों के बीच भी उत्साह की कमी नजर आ रही है। चुनाव प्रचार अभियान भी सुस्त है। चुनावी रैलियों से भी उत्साह गायब है और चुनावी भाषण भी जोश बढ़ाने में नाकाम रहे हैं। बीजेपी के एक नेता का कहना था, ‘ उत्तर प्रदेश में सत्ताधारी बीजेपी उम्मीदवारों को बदलने में नाकाम रही। लोग 10 साल से एक ही चेहरे को देखकर थक गए हैं, लिहाजा वे कैंपेन में हिस्सा लेने को इच्छुक नहीं थे।’ वोटरों की सुस्ती से उत्साह में और कमी है।

बहरहाल, मोदी के खिलाफ कोई ठोस माहौल नहीं दिखता है। वोटरों का बेरोजगारी, महंगाई और अन्य स्थानीय चिंताओं को लेकर मोहभंग हो चुका है, लेकिन मोटे तौर पर वे सरकार से नाराज नहीं है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी लोकप्रिय और जनाधार वाले नेता बने हुए हैं। उनकी सभाओं में अब भी भीड़ जुट रही है, लेकिन पिछले चुनाव की तरह कैंपेन में उत्साह नजर नहीं आ रहा है। छठे चरण तक के चुनाव में वोटिंग का आंकड़ा 59% रहा है, जो 2019 के 60.12% से थोड़ा कम है।

वरिष्ठ पत्रकार मनोज भद्रा कहते हैं, ‘हर चुनाव के दौरान इस तरह के भ्रम की स्थिति रहती है। हालांकि, वोटरों के दिमाग में कोई भ्रम नहीं रहता है। वे एक मजबूत सरकार को चुनने के लिए वोट करते है। ऐसा पिछले कई चुनावों में हुआ है और इस बार भी ऐसा ही होगा।’

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