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Lok Sabha Chunav 2024: रायबरेली की लड़ाई, भावनाओं से परे, जब गूंज उठे स्थानीय मुद्दे

Lok Sabha Chunav 2024: रायबरेली की लड़ाई, भावनाओं से परे, जब गूंज उठे स्थानीय मुद्दे

रायबरली में 20 मई को लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण का मतदान होगा। अब इससे दो दिन पहले यहां के लोगों को एक बेचैनी ने घेर लिया है। कांग्रेस-सपा गठबंधन और बीजेपी के राजनीतिक दिग्गज मतदाताओं को बड़े-बड़े चुनावी वादों के साथ लुभाने में जुटे हैं। समाजवादी पार्टी की लाल टोपी पहने और कांग्रेस का झंडा लहराते हुए युवाओं का एक समूह राहुल गांधी के भाषण के बाद, रोजमर्रा के जवीन, रोजगार के मौके और उज्जवल भविष्य के रास्ते जैसे सवालों के साथ, गोल चौराहे की ओर बढ़ रहा है। ये चौराहा रायबरेली का केंद्र है।

कभी रायबरेली की शान, अब अधर में है

श्रमिक संघ, भारतीय टेलीफोन उद्योग, रायबरेली के महासचिव आशीष सिंह, बदलते भाग्य पर दुख जताते हुए कहते हैं, “रायबरेली ITI के लिए जाना जाता था। इस सुविधा ने हजारों लोगों को रोजगार दिया और कई सहायक क्षेत्र इस पर निर्भर थे। लेकिन अब यह बंद होने की कगार पर है। प्रोडक्शन जीरो है, सैलरी भी 2009-2010 में UPA सरकार की ओर से दिए गए रिकवरी पैकेज से दी जाती है।”

इसी तरह एक गैरेज के मालिक आशीष मिश्रा ने कहा कि स्पिनिंग व्हील फैक्ट्री, दरियापुर चीनी मिल, सीना टेक्सटाइल्स, पूर्व प्रधान मंत्री इंदिरा गांधी की ओर से शुरू की गई सभी चीजें बंद हो गई हैं। मिश्रा ने पूछा, “उन्हें फिर से शुरू करने और लोगों को सार्थक रोजगार देने के लिए क्रमिक शासनों की ओर से कोई प्रयास क्यों नहीं किया गया?”

बड़े पैमाने पर जमीन हड़पने की प्रथा

शहर के नियंत्रण वाले क्षेत्र मुंशीगंज के कई बुजुर्गों के लगाए गए आरोप का अल्पसंख्यक समुदाय के कई सदस्यों के बीच जिक्र किया गया है। मोहम्मद शकील एक मजदूर हैं। स्थानीय बाहुबलियों के हाथों जमीन कब्जाने का मुद्दे उठाते हैं।

वो कहते हैं, “जमीन कब्जाने की इस गैरकानूनी प्रथा का खामियाजा रायबरेली को भुगतना पड़ रहा है। एक तरफ लखनऊ में शासन खूंखार अपराधियों पर सख्त कार्रवाई कर रहा है, और दूसरी तरफ, स्थानीय ताकतवर बड़े पैमाने पर जमीन कब्जाने में लगे हुए हैं।”

चुनाव से गायब महत्वपूर्ण मुद्दे

रायबरेली की रहने वाली सबरीना बेगम कहती हैं कि जब चुनाव का शोर खत्म हो जाएगा, तो हमें अपने सामान्य जीवन में वापस आना होगा। 23 साल की महिला ने पूछा, “गांधी परिवार ने रोजगार के कई रास्ते शुरू किए थे, लेकिन उनमें से ज्यादातर बर्बादी की स्थिति में हैं। हम अपने लिए बेहतर भविष्य कैसे देख सकते हैं?”

बेगम ने टिप्पणी की, “सोनिया गांधी की ओर से लगाए गए NIFT में रायबरेली के छात्रों के लिए कोई कोटा नहीं है। रायबरेली का आधार ग्रामीण है, बेहतर हायर एजुकेशन सुविधाओं के बिना NIFT जैसे संस्थान कोई मदद नहीं कर सकते।”

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