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Lok Sabha Chunav 2024: महेंद्र नाथ पांडे के लिए मुश्किल हैं चंदौली की लड़ाई? सपा, बसपा ने त्रिकोणीय बना दी ये लड़ाई

लोकसभा क्षेत्र चंदौली। इस क्षेत्र में यह सवाल हर जगह पूछे जा रहे हैं कि क्या केंद्रीय मंत्री महेंद्र नाथ पांडे चुनाव में फंस गए हैं? क्या इस बार उनका चुनाव जीत पाना कठिन हो गया है? सवाल इसलिए पूछे जा रहे हैं, क्योंकि पिछले लोकसभा चुनाव में यानी 2019 में महेंद्र नाथ पांडे बामुश्किल सिर्फ 14,000 वोटों से जीते थे। इस बार परिणाम क्या आएगा। महेंद्र नाथ पांडे हारेंगे या चुनाव जीतेंगे? उनके समर्थक कहते हैं कि पिछली बार सारी स्थितियां महेंद्र नाथ पांडे के खिलाफ थी। इस अति पिछड़े जिले में जो बनारस से लगा हुआ है और बिहार से सटा हुआ है, उसमें तब सपा और बसपा गठबंधन बहुत प्रभावी था। यही नहीं समाजवादी पार्टी ने एक जनाधार वाले नेता संजय सिंह चौहान को टिकट दिया था।

संजय सिंह चौहान की अपनी पार्टी जनवादी पार्टी है, लेकिन वो तब सपा के सिंबल से चुनाव लड़े थे। यही नहीं ओमप्रकाश राजभर ने भी अपनी पार्टी के एक प्रत्याशी को चंदौली में उतार दिया था। उस समय वह योगी सरकार के खिलाफ बगावत कर चुके थे और राजभर कई लोकसभा क्षेत्र में अपने प्रत्याशियों को लड़ा रहे थे, लेकिन इस बार वो स्थितियां नहीं हैं, लेकिन इसके बावजूद वो लगातार 10 साल से सांसद हैं और इससे जो नाराजगी उपजी है, वो उनके खिलाफ है।

इसके कारण इस बार चंदौली लोकसभा सीट के समीकरण कितने उलझे हुए हैं लगता ही नहीं कि कौन से समीकरण कहां फिट बैठेंगे। समाजवादी पार्टी ने संजय सिंह चौहान का टिकट काटकर वीरेंद्र सिंह को मैदान में उतार दिया है। यही नहीं बहुजन समाज पार्टी से समाजवादी पार्टी का गठबंधन भी नहीं है। बसपा से सत्येंद्र मौर्य चुनाव लड़ रहे हैं। टिकट न मिलने के कारण संजय सिंह चौहान भारतीय जनता पार्टी के साथ खड़े हो गए हैं।

ओमप्रकाश राजभर भी महेंद्र नाथ पांडे के साथ हैं और उनके लिए पूरी ताकत लगाए हुए हैं। शिवपुर के देवेंद्र सिंह कहते हैं कि इस बार महेश पांडे इसलिए जीत जाएंगे, क्योंकि वोटों का जो नुकसान हो रहा है, वो सपा का हो रहा है। समाजवादी पार्टी ने वीरेंद्र सिंह को मैदान में उतार कर अतिपिछड़े मतदाताओं को दूर कर दिया है और इसका संदेश गलत गया है । वीरेंद्र सिंह भी इतने प्रभावी नहीं हैं कि वो अपने दम पर निर्णायक लड़ाई लड़ सकें।

वीरेंद्र सिंह पहले कांग्रेस में थे, फिर बसपा में आए। समाजवादी पार्टी को यादव मुस्लिम और कुछ क्षत्रियों के वोट, तो मिल रहे हैं, लेकिन इसके आगे वो बढ़ नहीं पा रहे हैं। दूसरी ओर महेंद्र नाथ पांडे को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नाम का लाभ मिल रहा है।

यह लाभ इसलिए भी प्रभावी है, क्योंकि इस लोकसभा क्षेत्र की दो सीट अजगरा और शिवपुर बनारस जिले में आती हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का इन पर गहरा प्रभाव है। अजगरा के शिव शंकर यादव कहते हैं की वीरेंद्र सिंह चुनाव बहुत अच्छा लड़ रहे हैं। उनको समर्थन भी मिल रहा है, लेकिन अजगरा और शिवहर में वह कितना अच्छा लड़ पाएंगे यह देखना होगा। कहीं ऐसा ना हो कि यह दो विधानसभा ही उनके भाग्य का निर्णय कर दें।

चंदौली में बहुजन समाज पार्टी भी पूरी ताकत लगाए हुए है। बसपा ने सत्येंद्र मौर्य को खड़ा करके इस लड़ाई को और रोचक बना दिया है। बसपा की कोशिश है कि मौर्य और कुशवाहा उसके पाले में आ जाएं। बड़ी संख्या में बसपा के कार्यकर्ता सत्येंद्र मौर्य के प्रचार में लगे हुए हैं। चंदौली में ही एक चाय की दुकान पर पंचायत जुड़ी हुई है और वहां पर चुनावी बहस जारी है।

बहस में शामिल रामनरेश कहते हैं की इस बार बसपा बहुत अच्छा चुनाव लड़ रही है। वो दावा करते हैं कि संविधान बचाने की बात करने वाले संविधान बदलते रहे और बहन जी ही संविधान बचा सकती हैं। दिलचस्प तथ्य यह है कि इस सीट पर दलित वोटों खास कर जाटव वोटों में कहीं कोई बिखराव नहीं है और वो मजबूती से बसपा के साथ जा रहा है।

इसलिए यहां ये दावा बेमानी हो जाता है कि दलित संविधान बचाने के नाम पर किसी अन्य को वोट दे रहा है। अजगरा के ही जीवन राम कहते हैं कि बसपा की लड़ाई बहुत मजबूत है, लेकिन BSP के सामने वहीं मजबूरी है कि उसे मौर्य ओर बसपा का परंपरागत मतदाता का तो वोट मिल रहा है, लेकिन दूसरा कोई हासिल नहीं हो रहा है।

उधर समाजवादी पार्टी के वीरेंद्र सिंह को यादव मुस्लिम का पूरा भरोसा है, लेकिन उनके वोटों में कटौती भी हो रही है। अति पिछड़ा वोट उनके साथ ना जाकर भारतीय जनता पार्टी के साथ जा रहा है। संजय सिंह चौहान अपने समाज के सशक्त नेता हैं। वो पिछली बार सपा के टिकट पर चुनाव लड़े थे, लेकिन इस बार को वो सपा की खिलाफत कर रहे हैं।

भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी महेंद्र नाथ पांडे पर ये आरोप लग रहे हैं कि उन्होंने विकास के नाम पर कुछ नहीं किया। वास्तव में उनकी नैया मोदी के नाम पर ही पार हो सकती है और इसके लिए मोदी का नाम भी लेते हैं। यह अलग बात है कि इस बार समीकरण कुछ उनके पक्ष में दिख रहे हैं।

साल 2014 में महेंद्र नाथ पांडे 1 लाख 57 हजार वोटों से चुनाव जीते थे और तब उन्हें सपा ने नहीं बल्कि बसपा के प्रत्याशी अनिल कुमार मौर्य ने टक्कर दी थी। इस क्षेत्र में दलित मतदाता बड़ी संख्या में है और वो एकजुट है। 2019 में सपा बसपा गठबंधन के चलते महेंद्र नाथ पांडे मुश्किल में फंस गए थे।

इस बार महेंद्र नाथ पांडे के पक्ष में एक ही बात जाती है कि बसपा मजबूती से लड़ाई लड़ रही है और ये समाजवादी पार्टी को गहरा नुकसान पहुंचा रही है। फिलहाल यहां पर लड़ाई बहुत रोचक है और ये वही क्षेत्र है, जहां पर बीजेपी सपा और बसपा के बीच लड़ाई हो रही है। सैयद राजा के विकास मौर्य कहते हैं की लड़ाई भाजपा और बसपा के बीच है। लेकिन यह अपने-अपने दावे हैं । लड़ाई दिलचस्प है और बसपा का भी मजबूती से लड़ना महत्वपूर्ण है।

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