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Kolkata Book Fair में दिखी एक आदमी की दीवानगी, खरीदीं 3.36 लाख रुपए की किताबें

Kolkata Book Fair में दिखी एक आदमी की दीवानगी, खरीदीं 3.36 लाख रुपए की किताबें

किताबों की दुनिया सबसे अलग है। जिने इस दुनिया में गोते खाए हैं वही इसकी अहमियत समझ सकता है। किताबों के शौकीन या तो लाइब्रेरी में मिलते हैं या किसी बंद कमरे में अपनी किताब में गुम। किताबों की कलेक्शन में मस्त इन इंसानों को भूख तो लगती है लेकिन नई किताबों को पढ़ने की। हाल ही में कोलकाता बुक फेयर में एक ऐसे प्रोफेसर ने सबका ध्यान अपनी ओर खींच जिसने लाखों किताबें खरीदने में खर्च कर दिए। पश्चिम बंगाल के चकदा के रहने वाले इस प्रोफेसर ने 3.36 लाख रुपए किताबें खरीदने में खर्च कर दिए।

देबराता चट्टोपाध्याय ने कलकत्ता टाइम्स को बताया कि इस साल मैं बुक फेयर में आठ बार गया। मैं अपने स्टूडेंट्स के गया था और सही में बताऊं मुझे ये भी अंदाजा नहीं है कि मैंने कितनी किताबें खरीदी हैं। इंग्लिश लिटरेचर के प्रोफेसर के पास किताबों की कमाल की कलेक्शन है। ट्रैवल करते हुए किताबें खरीदना उनकी फेवरेट हॉबी है। कॉलेज स्ट्रीट में वो काफी पॉपुलर हैं। ये वो एरिया है जहां लोग किताबें खरीदते और बेचते हैं।

चट्टोपाध्याय का कहना है कि कॉलेज स्ट्रीट में घंटों बिताकर किताबें खरीदना मेरा सबसे फेवरेट काम है। कोलकाता, दिल्ली और मुंबई के अलावा कई मेट्रो सिटीज के पब्लिशर्स मेरे दोस्त हैं वो मुझे नई और सबसे मुश्किल से मिलने वाली खास किताबें दिलवाने में मदद करते हैं और इसके साथ ही नए लेखकों को खोजने में भी सहयोग करते हैं। ऐसे में बात आती है कि हर वक्त किताबों की दुनिया में रहने वाले इस शख्स के पास आखिर कुल कितनी किताबें हैं?

चट्टोपाध्याय ने बताया कि उनके चकदा और राणाघाट वाले घर में कुल 14000 किताबे हैं जिनका मूल्य लगभग 1 करोड़ रुपए है। मेरे पास किताबों से भरा एक कमरा है जहां आकर लोग किताबें पढ़ सकते हैं और नोट भी लिख सकते हैं। उन्हें सिर्फ साहित्य ही नहीं बल्कि साइंस, फिलोसॉफी, म्यूजिक, हिस्ट्री, पॉलिटिक्स और स्पिरिचुअल किताबों के अलावा सेल्फ इंप्रूवमेंट के लिए भी किताबें पढ़ना पसंद है। वो हर तरह की किताबें पढ़ना और खरीदना पसंद करते हैं। वो हाल ही में चकदा में एक प्रॉपर्टी में इनवेस्ट कर रहे हैं ताकि लाइब्रेरी खोल सकें। वो आज की युवा पीढ़ी में किताबें पढ़ने की आदत को विकसित करना चाहते हैं जो इन दिनों बच्चों में काफी कम देखने को मिलती है।

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