पिछले दिनों श्रीनगर के लाल चौक पर अंतरराष्ट्रीय फेरन दिवस के मौके पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के आदमकद ‘कट-आउट’ को फेरन से सजाया गया था। ऐसे में इसको लेकर लगातार चर्चा है कि आखिर यह क्या है? फेरन एक कश्मीरी पारंपरिक पोशाक है। कश्मीर के गिरते तापमान के साथ, उनकी अद्वितीय गर्मी और आराम का जश्न मनाते हुए, फेरन की मांग बढ़ गई। मजबूत, ऊनी कपड़े से निर्मित, फेरन सर्दियों की कड़कड़ाती ठंड के खिलाफ एक महत्वपूर्ण ढाल के रूप में कार्य करता है। यह ढीली-ढाली, लंबी बाजू वाली पोशाक, पुरुषों, महिलाओं और बच्चों के वार्डरोब में एक मौलिक वस्तु के रूप में स्थिर है।
यह लोगों के लिए भी उपयुक्त है क्योंकि वे कांगड़ी को फेरन के अंदर ले जा सकते हैं क्योंकि शरीर की गर्मी उन्हें कठोर ठंड से बचाने के लिए अपर्याप्त हो जाती है। ये परिधान जटिल कढ़ाई और जीवंत पैटर्न के लिए कैनवस में बदल जाते हैं, जो स्टाइल के साथ उपयोगिता को सहजता से जोड़ते हैं। मौजूदा समकालीन फैशन रुझानों के सामने, फेरन ने अपना कालातीत आकर्षण बरकरार रखा है और गर्व से कश्मीरी पहचान के एक प्रिय प्रतीक के रूप में खड़ा है।
आपको बता दें कि चिल्लई-कलां शुरू हो गया है और अगले 40 दिनों तक बहुत से कश्मीरियों की जिंदगी 10-12 फीट लंबे-चौड़े कमरों में सिमट जाएगी। चिल्लई-कलां शुरू होने से पहले ही कश्मीरी लोग कांगडियों के लिए कोयला, सूखी सब्जियां, दालें व शुष्क फल स्टोर कर लेते हैं। इन 40 दिनों तक कश्मीरी लोग चिल्लई-कलां की खून जमा देने वाली ठंड का मुकाबला करते हैं। इस दौरान कश्मीरी लोगों के शरीर में एक पोशाक दिखती है। जिसे फेरन कहा जाता है।