भारत देश एक पुण्य भूमि है जहां ऐसे कई तीर्थ स्थान हैं जहां हर धर्म के लोग आस्था के साथ जाते हैं। ऐसा ही एक तीर्थ स्थान अजमेर शरीफ की दरगाह है। कहा जाता है कि अजमेर शरीफ की दरगाह में आप जो भी मन्नत मांगते हैं वो पूरी हो जाती है। ये दरगाह ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती की दरगाह है। सूफी संत ख्वाजा मोइनुद्दीन हसन चिश्ती ने अपनी पूरी जिंदगी मानव सेवा में गुजारी है। लोगों को उन्होंने मोहब्बत और भाईचारे का संदेश दिया है। गरीबों के दुख दर्द दूर करके उन्हें खुशी नवाजते थे। इसलिए लोग उन्हें ख्वाजा गरीब नवाज के नाम से भी जानते हैं। ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह में देश-दुनिया से विभिन्न मजहब के लोग आते हैं। अजमेर में ख्वाजा गरीब नवाज की दरगाह से अमन-चैन और भाइचारे का संदेश देश और दुनिया में जाता रहा है। आज हमारे स्पेशल शो में जु़ड़ रहे हैं अखिल भारतीय सूफी सज्जादानशीन परिषद के अध्यक्ष और अजमेर दरगाह के दीवान सैयद जुनैल आबेदीन के सक्सेसर सैयद नसीरुद्दीन चिश्ती साहब।
प्रश्न: आज के इंटरव्यू में सवाल जवाब का सिलसिला मैं अल्लामा इकबाल की उन पंत्तियों के साथ करूंगा जिसमें उन्होंने हिंदुस्तान का जिक्र करते हुए कहा था कि मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिन्दी हैं हम वतन है हिन्दोस्ताँ हमारा। ऐसे में भारतीय मुसलमान दुनिया भर के मुसलमानों से कैसे अलग है, क्या यह सांस्कृतिक प्रभाव है?
उत्तर: जी बिल्कुल आप सही कह रहे हैं कि भारतीय मुसलमान दुनिया के मुसलमानों से अलग है। ठीक है जो हमारी मजहबी रसूमात, मजहबी अराकीन का पालन करते हैं। लेकिन जो सभ्यता है। हमें हिंदुस्तान की संस्कृति-सभ्यता अपने जीवन में पूरी तरह से अपना रखी है। अपने कपड़ों पर इशारा करते हुए कहा कि आप इसकी मिसाल ऐसे में दे सकते हैं कि आम तौर पर मुसलमानों में ऐसी ड्रेस नहीं पहनी जाती है। लेकिन मैं आपके सामने ये ड्रेस पहनकर बैठा हूं, जिसे सैफरॉन कलर कहते हैं। हिंदुस्तान के अंदर इसे भगवा रंग कहा जाता है। इसी तरीके से और भी कई परंपराएं और रस्मों रिवाज, सांस्कृतिक चीजें हैं जो हम लोगों ने अपने जीवन में अपना रखी है। हिंदुस्तान का मुसलमान इन्हीं कारणों से दुनिया के मुसलमानों से अलग है।
प्रश्न: अपने देश से प्यार करना भी क्या इस्लाम का अभिन्न अंग है? क्या आप व्याख्या कर सकते हैं?
उत्तर: हुब्ब-उल-वतन मिनल-ईमान का एक हिस्सा है। आप जिस वतन में रह रहे हैं। आपको उससे मोहब्बत करनी है। जिस मुल्क में आप रह रहे हैं उस मुल्क की हुकूमत है उसके साथ आपको खड़े रहना है। ये इस्लाम का एक हिस्सा है। इस्लाम के अंदर बकायदा ये शुरू से बच्चों को सिखाया जाता है कि अपने वतन से मोहब्बत करें। अपने मुल्क से मोहब्बत करें। अपने मुल्क के लिए हमेशा उपलब्ध रहे।
प्रश्न: फिर वंदे मातरम् का विरोध क्यों?
उत्तर: दुनिया में अच्छे काम हो या बुरे काम विरोध करना तो एक आदत सी हो गई है। अपने-अपने हिसाब से इसकी व्याख्या करते हैं कि ये अच्छा काम है और ये बुरा काम है। इसका सीधा सा मकसद है कि किसी भी तरह से लाइमलाइट में आना है। मैं समझता नहीं कि ज्यादातर मुसलमान इस चीज का विरोध करते हैं। कुछ लोग होंगे जो करते होंगे। हम जिन स्कूलों में पढ़े हैं वहां पर तो ये शुरू से पढ़ाया जाता था और हम बोलते आए हैं। अब इससे कहना कि वंदे मातरम गाने से मजहब खतरे में पड़ जाएगा ये बहुत गलत बात है। मैं इस बात से सहमत नहीं हूं। इस्लाम इतना कमजोर नहीं है कि इससे वो खतरे में पड़ जाएगा। हम अपने वतन के लिए बोलते आए हैं। आज ये नई चीजें सुनने को मिल रही हैं कि ऐसा मत बोलो वैसा मत बोले। ये संकीर्ण सोच का एक नतीजा है। जिसे हमें सुधारने की जरूरत है।
प्रश्न: क्या कुरान धर्म की रक्षा के लिए हिंसा का आह्वान करता है? या क्या इसे राजनीतिक अनुकूलता के अनुरूप गलत समझा गया है?
उत्तर: राजनीतिक अनुकूलता के अनुरुप गलत नहीं समझा जा रहा है। ये लोग जो कह रहे हैं ना कि जिनको इस्लामोफोबिया हो गया है। ये उन लोगों की उपज है। कुरान सिर्फ मोहब्बत और अमन की बात करता है। हिंसा का जिक्र तो कहीं है ही नहीं। मजहब के लिए जहां बहुत मजबूरी हो जाती है। जहां हद से ज्यादा बात निकल जाती है वहां मजबूरी के अंदर काम करना पड़ता है। जो हर मजहब की किताबों में दर्ज है। जहां हद से ज्यादा बात निकल जाती है। वहां सिर्फ मजहब के लिए है खुद की जाति मफाद के लिए नहीं है। हिंसा का मतलब ये नहीं कि किसी बेगुनाह का कत्ल कर दिया जाए। व्याख्या सबसे महत्वपूर्ण है। लोगों तक सही बात पहुंचाई जाएगी। हर चीज के मायने अलग-अलग तरह के होते हैं। सही तरह से बताए जाने की जरूरत है। इस्लाम में ऐसा कुछ भी नहीं है। कुरान सिर्फ मोहब्बत और अमन की बात करता है। कुरान एक हिदायत है आलम-ए-इंसानियत के लिए।