अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय में रजिस्ट्रार फ़िलिपे गोतिए का कहना है कि वैसे तो मुक़दमों की बढ़ती संख्या, दुनिया भर में टकरावों में वृद्धि का संकेत है, लेकिन जब भी कोई देश अपने विवाद को विश्व अदालत के समक्ष लाता है, तो इसमें कार्रवाई के लिए बहुपक्षवाद और एक ऐसी प्रणाली की प्रासंगिकता साबित होती है जो समाधान ढूँढने में कारगर साबित हो रही है.
ICJ में रजिस्ट्रार फ़िलिपे गोतिए ने यूएन न्यूज़ के साथ एक ख़ास बातचीत में कहा कि विश्व अदालत को, दुनिया भर में नज़र आ रहे विभाजनों और मतभेदों के बीच, अपनी स्वायत्तता और स्वतंत्रता क़ायम रखने की ज़रूरत है जिसमें संयुक्त राष्ट्र के इस प्रमुख न्यायिक अंग में, राजनैतिक परिदृश्य में किसी पक्ष के लिए कोई झुकाव नहीं हो.
रजिस्ट्रार फ़िलिपे गोतिए ने मंगलवार को सुरक्षा परिषद को सम्बोधित करने के अवसर पर कहा कि ICJ कोई राजनैतिक नहीं, बल्कि एक न्यायिक इकाई है, और इसलिए उसके पास देशों के बीच उपजे विवादों का समाधान करने के उपकरण तो हैं, मगर युद्ध ख़त्म करने के नहीं.
स्पष्टता के लिए इंटरव्यू को सम्पादित किया गया है.
यूएन न्यूज़: क्या आप हमें मध्य पूर्व से जुड़े उन मामलों पर नवीनतम जानकारी दे सकते हैं, जो फ़िलहाल न्यायालय में विचाराधीन हैं?
फ़िलिपे गोतिए: फ़िलहाल 23 मामलों विचाराधीन हैं, जोकि एक अभूतपूर्व संख्या है. अगर आप मध्य-पूर्व की बात करें, तो हम मोटे तौर पर कह सकते हैं कि कम से कम 8 मामले हैं. दो मामले ग़ाज़ा से सम्बन्धित हैं, जिसके केन्द्र में जनसंहार कन्वेशन है. फिर इसराइल के ख़िलाफ़ दक्षिण अफ़्रीका द्वारा दर्ज मामला, और जर्मनी के ख़िलाफ़ निकारागुआ द्वारा दर्ज मामला है. निकारागुआ का कहना है कि जर्मनी ने मुख्य रूप से इसराइल को हथियार उपलब्ध करवाकर, जनसंहार से जुड़ी कुछ सन्धियों व मानवीय क़ानून के सुरक्षात्मक पहलुओं का उल्लंघन किया है.
इसके अलावा, फ़लस्तीन और अमेरिका के बीच भी एक मामला चल रहा है, जो अमेरिकी दूतावास को येरूशेलम स्थानांतरित करने से जुड़ा है और ज़्यादातर कूटनीतिक क़ानून से जुड़ा है.
मतलब यह है कि मामलों की कमी नहीं है. अगर आप इन मामलों पर नज़र डालें तो, वैसे तो ये मुक़दमे किसी एक क्षेत्र से जुड़े हैं, लेकिन इसमें और बहुत सारे देश शामिल हैं. इस पर ज़ोर देना इसलिए भी ज़रूरी है क्योंकि जनसंहार कन्वेंशन जैसे औज़ारों से जुड़ा हर एक देश यह सुनिश्चित करना चाहेगा कि कन्वेंशन का पालन हो.
यूएन न्यूज़: क्या आप इसराइल के क़ब्ज़े वाले फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की नीतियों और कार्रवाई से उत्पन्न क़ानूनी नतीजों पर जुलाई में दी गई राय की जानकारी दे सकते हैं?
फ़िलिपे गोतिए: महत्वपूर्ण यह है कि फ़लस्तीनी क्षेत्र पर लम्बे समय से इसराइल के क़ब्ज़े और नीतियों व कारर्वाई ने फ़लस्तीनियों को आत्मनिर्णय के अधिकार से वंचित कर दिया, जिससे क़ब्ज़े की क़ानूनी स्थिति पर प्रश्नचिह्न लगा. निष्कर्ष यह निकला कि इन परिस्थितियों के आधार पर फ़लस्तीनी क्षेत्र में इसराइल की उपस्थिति ग़ैरक़ानूनी है.
विभिन्न पक्षों की ज़िम्मेदारियों पर ध्यान देने वाली राय का एक हिस्सा यह था कि इसराइल को क़ब्ज़ा जल्द से ज़ल्द समाप्त करना चाहिए, फ़लस्तीनी इलाक़ों में यहूदी बस्तियों का निर्माण रोकना चाहिए और इससे हुए नुक़सान की पूर्ण भरपाई करनी चाहिए.
इस बात पर बल देना भी ज़रूरी है कि इस परामर्श-मत का उद्देश्य क़ानूनी स्पष्टीकरण देना और उन लोगों को मार्गदर्शन देना है, जिन्होंने इसकी माँग की है. साथ ही, यह सुनिश्चित करना आवश्यक है कि संयुक्त राष्ट्र के अंगों ने मुद्दे की पूरी जाँच कर ली है.
यूएन न्यूज़: इस तरह के परामर्श-मत और दक्षिण अफ़्रीका द्वारा इसराइल के ख़िलाफ़ अदालत में लाए गए विवादास्पद मामले के बीच मुख्य अन्तर क्या है?
फ़िलिपे गोतिए: कोई बड़ा अन्तर नहीं है. परामर्श-मत, किसी एक देश पर निर्भर नहीं होता. महासभा में मतदान के ज़रिए परामर्श-मत के लिए किए गए अनुरोध पर निर्णय लिया जाता है. मौजूदा क़ानूनी प्रश्न पर प्रतिक्रिया देना न्यायालय पर निर्भर होता है. हालाँकि यह आधिकारिक स्तर पर महत्वपूर्ण है और इसे नज़रअन्दाज़ नहीं किया जा सकता, लेकिन यह बाध्यकारी नहीं है.
वहीं, दो देशों के बीच उपजे विवाद में विवादास्पद कार्यवाही होती है. और आमतौर पर एक या दो देश, एक बाध्यकारी निर्णय के तहत, विवाद निपटाने के लिए मामले को अदालत में लाने का निर्णय लेते हैं. यह निर्णय अनिवार्य होता है.
विवादास्पद मामलों में सुनहरा नियम यह है कि विवाद को अदालत में लाने के लिए, आपको दोनों पक्षों की सहमति की आवश्यकता होती है, और यह हासिल कर पाना कठिन होता है.
यूएन न्यूज़: ग़ाज़ा में चल रहे युद्ध के सम्बन्ध में इस वर्ष न्यायालय और उसकी शक्तियों पर जो चर्चा हुई है, उसके बारे में आप क्या बता सकते हैं?
फ़िलिपे गोतिए: मैं कहूँगा कि इसके लिए अदालत को स्वायत्त और स्वतंत्र तरीक़े से काम करने की आवश्यकता है. इसके लिए समुदाय को विभाजित करने वाले मुद्दों से ऊपर उठना बहुत महत्वपूर्ण है.
न्यायालय के लिए राजनैतिक क्षेत्र में निष्पक्ष कार्रवाई एवं क़ानूनी प्रतिक्रिया देना महत्वपूर्ण है. न्यायालय एक न्यायिक अंग है. यह विवादों को सुलझाने के लिए बाध्यकारी फ़ैसले दे सकता है, जिसका, आमतौर पर विवाद में शामिल पक्ष पालन करते हैं.
यह कोई राजनैतिक अंग नहीं है. इसका काम युद्ध या टकराव की निगरानी करना नहीं है. इसे समझना ज़रूरी है, वरना इससे बहुत ज़्यादा उम्मीदें हो सकती हैं.
अदालत विवाद निपटाने के लिए है, युद्ध ख़त्म करने के लिए नहीं. युद्ध के ख़ात्मे के लिए उसके पास कोई औज़ार नहीं है.
यूएन न्यूज़: आपने पिछले साल यूएन न्यूज़ के साथ एक साक्षात्कार में कहा था कि मुक़दमों की बढ़ती संख्या, सफल बहुपक्षवाद का संकेत है. क्या आपको अब भी यही लगता है?
फ़िलिपे गोतिए: बिल्कुल, वरना मैं यहाँ नहीं होता. जब भी कोई देश, किसी विवाद को न्यायालय में लाने का निर्णय लेते हैं, तो यह जीत की एक स्थिति होती है. इसका मतलब है कि अन्तरराष्ट्रीय बहुपक्षीय प्रणाली पर भरोसा बना हुआ है. पिछले साल अक्टूबर से पाँच नए मामले अदालत के सामने आए हैं और यह संख्या अब भी बढ़ रही है. निर्णय दिए जा रहे हैं, उन पर विचार किया जा रहा है और नए मामले आने जारी हैं.
मैं यह भी कहूँगा कि यह मामले बहुत आश्वस्त करने वाले हैं, क्योंकि वो दो देशों द्वारा संयुक्त रूप से लाए गए हैं, इसलिए कि वे अपने बीच का विवाद ख़त्म करना चाहते हैं. उदाहरण के लिए, गैबॉन और इक्वेटोरियल गिनी के बीच, संप्रभुता के मसले पर दो समझौते हुए हैं.
इस महीने के शुरू में एक और उदाहरण मीडिया में देखा गया, वो है चागोस द्वीप समूह के मुद्दे पर, मॉरीशस और ब्रिटेन के बीच समझौते से जुड़ी सकारात्मक ख़बर. 2019 में अदालत ने एक परामर्श-मत दिया था और उसके पाँच साल बाद, द्वीपों को संप्रभुता पाने में सफलता मिल गई है.
इससे पता चलता है कि प्रणाली काम कर रही है. अदालत अलग-थलग काम नहीं कर रही है, बल्कि, यह प्रणाली के एक अभिन्न हिस्से के रूप में कार्य कर रही है. इस सन्दर्भ में, सदस्य देशों को विवादों को न्यायालय में लाने के लिए मनाने हेतु, संयुक्त राष्ट्र के अन्य अंगों तथा महासचिव की भूमिका बहुत अहम है.
यूएन न्यूज़: क्या अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय की भूमिका पर दुष्प्रचार व ग़लत सूचना से आप चिन्तित हैं?
फ़िलिपे गोतिए: बिल्कुल. इस विषय को दरकिनार करना कठिन होगा. जब आप देखते हैं कि कृत्रिम बुद्धिमत्ता प्रौद्योगिकियों के ज़रिए क्या-कुछ किया जाना सम्भव है, तो हमें जागरूक होने और इस सम्बन्ध में कार्रवाई करना ज़रूरी हो जाता है. हमारे पास ऐसे मामलों से निपटने के लिए आईटी विभाग मौजूद है, लेकिन यह लोगों के साथ संवाद का महत्व भी दर्शाता है. न्यायालय का लक्ष्य भी यही है और हम इसमें सुधार करने के पूरे प्रयास कर रहे हैं.
साथ ही मैं यह कहना चाहूँगा कि यह समझना ज़रूरी है कि अन्तरराष्ट्रीय न्याय की स्थिति काफ़ी जटिल होती है. कोई भी फ़ैसला एक संक्षिप्त ट्वीट में नहीं समा सकता. यह उससे कहीं अधिक जटिल होता है और जनता को यह समझाना महत्वपूर्ण है.
उपकरण मौजूद हैं, लेकिन इस समस्या का कोई वैश्विक समाधान नहीं है. लोगों को जटिल जानकारी पचाने के लिए सक्षम होने और चीजों को केवल काले या सफ़ेद जामे में न रखकर, राय को सूक्ष्मता से समझने के लिए विस्तार से पढ़ना बेहद आवश्यक है.