Farmers Protest: देश के कई राज्यों के किसानों ने अपनी मांग लेकर ‘दिल्ली चलो’ अभियान की शुरुआत की थी। कई किसानों को बॉर्डर पर रोक लिया गया है। किसानों के आंदोलन का आज (18 फरवरी 2024) छठा दिन है। वहीं किसान नेताओं और केंद्र सरकार के मंत्रियों के बीच चंडीगढ़ में कई दौर की मीटिंग हो चुकी है। आज फिर से चौथे दौर की मीटिंग होना है। इस मीटिंग में किसान नेता मौजूद रहेंगे। वहीं केंद्र सरकार की ओर से केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, केंद्रीय वाणिज्य और उद्योग मंत्री पीयूष गोयल और केंद्रीय गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय मौजूद रहेंगे।
चौथे दौर की यह मीटिंग चंडीगढ़ स्थित पंजाब सरकार के महात्मा गांधी स्टेट इंस्टीट्यूट आफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन में शाम 6 बजे से शुरू होगी। मीटिंग में किसानों की तरफ किसान मजदूर संघर्ष कमेटी के महासचिव सरवन सिंह पंधेर, भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के जगजीत सिंह डल्लेवाल और जगजीत सिंह के अलावा कई और किसान नेता मौजूद रहेंगे।
जानिए क्य हैं किसानों की मांगें
किसानों की सबसे अहम मांग ये है कि उन्हें सभी फसलों की खरीद पर MSP की गारंटी मिले। इसके लिए कानून बनाया जाए। फसलों की कीमत डॉ. स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक तय होना चाहिए। किसानों को सभी फसलों के उत्पादन की औसत लागत से 50 फीसदी ज्यादा MSP मिले। किसान और खेत में काम करने वाले मजदूरों का कर्ज माफ हो और किसानों को प्रदूषण कानून से बाहर रखा जाए। सरकार 60 साल से ज्यादा उम्र के किसानों को 10,000 रुपये पेंशन देना चाहिए। भूमि अधिग्रहण अधिनियम 2013 फिर से लागू होना चाहिए। मनरेगा में हर साल 200 दिन का काम और 700 रुपये मजदूरी मिलना चाहिए। किसान आंदोलन में मृत किसानों के परिवारों को मुआवजा और सरकारी नौकरी दी जाए। इसके साथ ही किसानों ने मांग की है कि मिर्च, हल्दी और अन्य मसालों के लिए राष्ट्रीय आयोग का गठन किया जाए।
कहां फंस रहा है पेंच?
किसान नेताओं और केंद्र सरकार के बीच कई मामलों में सहमति बन चुकी है। लेकिन तीन मांगों पर पेंच फंसा हुआ है। कहा जा रहा है कि किसान नेता MSP यानी न्यूनतम समर्थन मूल्य गारंटी कानून, किसानों की कर्ज माफी और 60 साल से अधिक उम्र के किसानों को पेंशन देने की मांग पर सहमति नहीं बन पाई है। वहीं किसान नेता अब केंद्र सरकार से एमएसपी पर अध्यादेश लाने पर अड़े हुए हैं।
वहीं आज की मीटिंग के नतीजे किसान आंदोलन के भविष्य की रूप रेखा तय करेंगें। अगर दोनों पक्षों के बीच कोई सहमति नहीं बन पाती है, तो यह आंदोलन लंबा खिंच सकता है।