नई दिल्ली: राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा ने इंडिया टीवी से खास बातचीत की है। इस दौरान उन्होंने राम मंदिर बनने की पूरी इनसाइड स्टोरी बताई है। उन्होंने बताया कि कैसे एक शिला जोड़ी गई, कैसे मंदिर का निर्माण संभव हुआ, कैसे श्रद्धालुओं को रामलला के दर्शन होंगे।
सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मेरी भूमिका तय हुई: नृपेन्द्र मिश्रा
राम मंदिर ट्रस्ट के अध्यक्ष नृपेन्द्र मिश्रा ने बताया कि 5 अगस्त 2020 को पीएम ने मंदिर निर्माण का शुभारंभ किया। सुप्रीम कोर्ट ने दुनिया को बताया कि जहां रामलला विराजमान हैं, वहीं मंदिर बनेगा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद मेरी भूमिका तय हुई। मैं 1990 से राम मंदिर के इतिहास से जुड़ा हूं। मंदिर आंदोलन के समय मैं तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह का प्रमुख सचिव था। किसी को यकीन नहीं था कि यहां राम मंदिर का निर्माण हो सकेगा।
2014 के बाद राम मंदिर निर्माण की आशा जगने लगी: नृपेन्द्र मिश्रा
नृपेन्द्र मिश्रा ने कहा कि 2014 के बाद राम मंदिर निर्माण की आशा जगने लगी। करोड़ो लोगों के विश्वास पर खरे उतरने की चिंता सताने लगी थी। हर घटना अपने आप होती चली गई। जिंदगी के इस मोड़ पर ऐसा काम मिला जो अतुलनीय है। मेरी हर आकांक्षाओं से बढ़कर ये काम संतोषजनक हुआ है। मैंने इस जिम्मेदारी के लिए अपनी रूचि दिखाई थी। मुझे गृहमंत्री अमित शाह ने फोन पर पूछा था। मुझसे बात होने के अगले ही दिन नाम तय हो गया।
कोरोना काल में मुश्किलें आईं: नृपेन्द्र मिश्रा
नृपेन्द्र मिश्रा ने कहा, ‘कोरोना काल में कई मुश्किलें सामने आईं। 1992 में सोमपुरा परिवार से अशोक सिंघल ने एग्रीमेंट किया था। एग्रीमेंट में मंदिर का नक्शा और भुगतान का जिक्र था। मंदिर ऐसा बनाने का लक्ष्य था जो 500 सालों से ज्यादा तक मजबूत रहे। शिखर की ऊंचाई, मंडप और परकोटा का अपना अलग महत्व है। परकोटा का मुख्य मकसद मंदिर की सुरक्षा है। 35 से 40 फीट परकोटा की दीवारों की ऊंचाई बनाई गई है। परकोटा में 6 मंदिर और सीता रसोई मौजूद हैं।’
23 जनवरी 2024 से श्रद्धालु ईस्टर्न गेट से प्रवेश करेंगे: नृपेन्द्र मिश्रा
नृपेन्द्र मिश्रा ने कहा, ‘नागर शैली में मंदिरों का स्थान तय किया गया। 23 जनवरी 2024 से श्रद्धालु ईस्टर्न गेट से प्रवेश करेंगे। श्रद्धालु पांच मंडपों को पार कर गर्भगृह पहुंचेंगे। दर्शन के बाद परकोटा की परिक्रमा करते हुए निकासी होगी। मंदिर की नींव का निर्माण सबसे चुनौती का काम था। सरयू तट होने की वजह से मजबूत नींव बनाना मुश्किल था।’
उन्होंने कहा, ‘सभी इंजीनियर्स की राय ध्यानपूर्वक सुनकर फैसला हुआ। 1000 साल की मजबूती वाला मंदिर बने, यही लक्ष्य था। IIT कानपुर ने मंदिर निर्माण को केस स्टडी बनाकर पढ़ाने का फैसला किया। कॉपर की क्लिप लगाकर पत्थरों को जोड़ा गया। लोहा और स्टील का इस्तेमाल बिल्कुल नहीं किया गया। बाढ़ और भूकंप के खतरों को ध्यान में रखकर निर्माण तकनीक बनी है।’
नेपाल भूकंप से 50 गुना ज्यादा तीव्रता सहने में मंदिर सक्षम: नृपेन्द्र मिश्रा
नृपेन्द्र मिश्रा ने कहा, ‘नेपाल भूकंप से 50 गुना ज्यादा तीव्रता सहने में मंदिर सक्षम है। राजस्थान के बंशी पहाड़पुर के स्टोन को रिसर्च में सबसे उपयोगी पाया गया। निर्माण का कोई काम अनैतिक नहीं हुआ। मंदिर निर्माण से जुड़ी हर चीजों का जीएसटी दिया गया है। 70 हजार क्यूबिक पत्थरों पर नक्काशी पहले से हो चुकी थी। 40 प्रतिशत पुराने तैयार पत्थरों को इस्तेमाल में लिया गया।’
नृपेन्द्र मिश्रा ने भगवान, मूर्ति समेत तमाम विषयों पर दी जानकारी
नृपेन्द्र मिश्रा ने कहा, ‘भगवान एक हैं, मूर्तियां अलग-अलग हैं। 21-22 जनवरी को वर्तमान मूर्ति गर्भगृह में लाई जाएगी। पुरानी मूर्ति बैठी मुद्रा में थी, नई मूर्ति खड़ी मुद्रा में है। 4-5 साल की उम्र के आधार पर रामलला की नई मूर्ति बनी है। रामलला की मूर्ति पर सूर्य की किरण पड़ेगी। रामलला की मूर्ति ग्राउंड लेवल से 71 इंच ऊंची है। सभी लैब टेस्टिंग के बाद मूर्ति निर्माण के लिए तीन पत्थर चुने गए हैं।’
उन्होंने कहा, ‘प्रतियोगिता के जरिये रामलला के स्वरूप का चयन हुआ था। 22 जनवरी 2024 तक सिर्फ फेज-1 का काम पूरा होगा। फेज-1 में ग्राउंड फ्लोर, गर्भगृह, मंडप, डोम और परकोटा का काम होगा। मंदिर का पूरा निर्माण दिसबंर 2024 तक पूरा होगा।’
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