उद्योग/व्यापार

Bharat Ratna 2024: दो पूर्व प्रधानमंत्री और एक कृषि वैज्ञानिक को भारत रत्न दिए जाने के पीछे क्या है PM मोदी का मैसेज?

Bharat Ratna 2024: जैसे ही पूर्व प्रधान मंत्री चौधरी चरण सिंह (Chaudhary Charan Singh), पीवी नरसिम्हा राव (PV Narsimha Rao) और प्रसिद्ध कृषि वैज्ञानिक एमएस स्वामीनाथन (MS Swaminathan) को मरणोपरांत भारत रत्न (Bharat Ratna) दिए जाने की घोषणा की गई, मेरे एक साथी ने मुझे मैसेज कर कहा- “मोदी से विपक्ष को अभी बहुत कुछ सीखने की जरूरत है…बंदा राजनीति का चाणक्य है।” हालांकि, उन्होंने अपनी इस टिप्पणी के पीछे का कारण, तो नहीं बताया, लेकिन उनकी इस बात ने मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि इन तीन बड़ी हस्तियों को भारत रत्न दिए जाने के पीछे क्या कारण हो सकते हैं और आने वाले लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Elections 2024) के नजरिए से देखा जाए, तो PM मोदी और बीजेपी ने आखिर कैसे इस फैसले के जरिए मतदाताओं को साधने की कोशिश की।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर अलग-अलग पोस्ट कर ये जानकारी दी कि ‘पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह, पूर्व प्रधान मंत्री, श्री पीवी नरसिम्हा राव गारू और डॉ. एमएस स्वामीनाथन जी को भारत रत्न से सम्मानित किया जाएगा।’ इसके साथ ही उन्होंने तीनों महान हस्तियों के बारे में अपने कुछ विचार भी लिखे।

बात को ज्यादा न खींचते हुए, इस फैसले के पीछे के उन तीन पहलुओं को जान लेते हैं, जो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाकई ‘राजनीति का चाणक्य’ कहने को मजबूर करते हैं। इसमें सबसे पहला फैक्टर है- किसान, दूसरा मोदी सरकार की स्टेट्समैनशिप यानि दलगत राजनीति से ऊपर उठकर ऐसे बड़े फैसले लेना और तीसरा और आखिरी है दक्षिण भारत को भी साधना। आइए अब एक-एक कर इन तीनों फैक्टर पर विस्तार से चर्चा करते हैं।

किसानों का सम्मान

ये फैसला कृषि क्षेत्र के प्रति मोदी सरकार की प्रतिबद्धता का सबसे बड़ा उदाहरण है। क्योंकि तीन पुरस्कार विजेताओं में से दो, चौधरी चरण सिंह और डॉ. एमएस स्वामीनाथन को भारत रत्न दिया जाना ये दिखलाता है कि मोदी सरकार किसानों को लेकर क्या सोचती है। ये तो जग जाहिर है कि चौधरी चरण सिंह और एमएस स्वामीनाथन ने कृषि के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।

एमएस स्वामीनाथन को भारत में हरित क्रांति का अगुआ माना जाता है। वह पहले ऐसे व्यक्ति हैं, जिन्होंने सबसे पहले गेहूं की एक बेहतरीन किस्म की पहचान की। इसके कारण भारत में गेहूं उत्पादन में भारी बढ़ोतरी हुई।

देश को अकाल से उबारने और किसानों को मजबूत बनाने वाली नीति बनाने में उन्होंने अहम योगदान निभाया था। उनकी अध्यक्षता में एक आयोग भी बनाया गया था, जिसने किसानों की जिंदगी को सुधारने के लिए कई अहम सिफारिशें की थीं।

इसे राष्ट्रीय किसान आयोग (NFC) या स्वामीनाथन आयोग के नाम से भी जाना जाता है। स्वामीनाथन ने देश में सदियों से चले आ रहे खेती के पुराने तरीकों को छोड़कर आधुनिक तकनीक अपनाने की वकालत की। उन्होंने देसी और विदेशी किस्म के अनाजों को मिलाकर नई संकर किस्में बनाईं।

स्वामीनाथन आयोग ने न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) औसत लागत से 50% ज्यादा रखने की सिफारिश की थी, ताकि छोटे किसानों को फसल का सही और अच्छा दाम मिल सके। समिति का कहना था कि किसानों की फसल के न्यूनतम सर्मथन मूल्य कुछ ही फसलों तक सीमित न रहें। गुणवत्ता वाले बीज किसानों को कम दामों पर मिलें। हालांकि, ये एक अलग बहस का मुद्दा है कि आयोग कि किस सरकार ने कितनी सिफारिशें लागू की या मानीं।

दलगत राजनीति से ऊपर

दूसरा अहम फैक्टर है, मोदी सरकार की स्टेट्समैनशिप यानि मोदी सरकार सम्मान और अवार्ड दिए जाने के मामले में दलगत राजनीति से ऊपर उठ कर सोचती है। इस फैसले में भी ये झलकता है।

इसे ऐसे समझिए, आज के इस फैसले में, भारत रत्न का सम्मान पाए जाने वाले दोनों दिग्गज नेता पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और चौधरी चरण सिंह, गैर-बीजेपी पृष्ठभूमि से आते हैं। जिससे ये साफ संदेश गया है कि प्रधानमंत्री मोदी और उनकी पार्टी राष्ट्रीय सम्मान देने में पक्ष-विपक्ष या विचारधारा जैसे पहलुओं पर ध्यान नहीं देती है।

इससे पहले भी मोदी सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और समाजवादी नेता कर्पूरी ठाकुर को भारत रत्न देने का ऐलान किया था। उससे पहले उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और दिवंगत समाजवादी नेता मुलायम सिंह यादव को भी मोदी सरकार ने मरणोपरांत पद्म विभूषण से सम्मानित किया था।

दक्षिण भारत से भी बड़ा संबंध

मोदी सरकार के आज के फैसला का दक्षिण भारत से भी एक बड़ा संबंध है। क्योंकि तीन पुरस्कार विजेताओं में से दो, पूर्व प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव और कृषि वैज्ञानिक डॉ. एमएस स्वामीनाथन, दक्षिण भारत से आते हैं, जो दर्शाता है कि प्रधानमंत्री देश के सभी कोनों से योगदान और विशेषज्ञता को महत्व देते हैं।

वहीं अगर राजनीतिक नजरिए से देखा जाए, तो दक्षिण के किसी राज्य में भी अब बीजेपी की सरकार नहीं है। आखिरी झटका उसे कर्नाटक में लगा था और इसी के साथ दक्षिण भारत में वो सत्ता से बाहर हो गई थी। अब आगामी लोकसभा चुनाव में बीजेपी की यही कोशिश है कि वो दक्षिण से ज्यादा से ज्यादा सीटें निकाल ले।

हाल ही में India Today के मूड ऑफ द नेशन सर्वे में आए आंकड़े भी बीजेपी के लिए चिंताजनक हैं, क्योंकि सर्वे में देश के इसी हिस्से में NDA, विपक्ष के I.N.D.I.A. गुट से पिछड़ता दिखाई दे रहा है।

सर्वे के मुताबिक, दक्षिण भारत राज्यों की 132 लोकसभा सीटों में से सिर्फ 27 सीटों पर ही NDA को जीत मिलती दिख रही है। जबकि विपक्ष के I.N.D.I.A. गुट 76 सीटों पर कब्जा करता नजर आ रहा है।

Source link

Most Popular

To Top