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ग़ाज़ा: इसराइली सेना के तौर-तरीक़ों, फ़लस्तीनी आबादी के अमानवीयकरण की निन्दा

ग़ाज़ा: इसराइली सेना के तौर-तरीक़ों, फ़लस्तीनी आबादी के अमानवीयकरण की निन्दा

यूएन मानवतावादी कार्यालय (OCHA) ने बताया है कि पिछले दो दिनों में, उत्तरी ग़ाज़ा तक मदद पहुँचाने के छह प्रयासों को अवरुद्ध कर दिया गया.

मंगलवार व बुधवार को यूएन मिशन के ज़रिये जबालिया, बेइत हनून और बेइत लाहिया में आम फ़लस्तीनियों तक भोजन व जल पहुँचाने की कोशिश की गई थी. साथ ही, पिछले 13 महीनों से हिंसा व बमबारी के कारण सदमे का शिकार बच्चों के लिए मनोसामाजिक समर्थन की व्यवस्था की गई थी.

फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) में आपात मामलों के लिए वरिष्ठ अधिकारी लुईस वॉटरिज ने बताया कि आम लोग रिहायशी इमारतों में फँसे हुए हैं, वे सैन्य कार्रवाई की चपेट में आने से बचना चाहते हैं और उनके पास भोजन ख़त्म होता जा रहा है.

यूएन एजेंसी के अनुसार, ग़ाज़ा पट्टी का क़रीब 79 फ़ीसदी हिस्सा में फ़लस्तीनियों को जगह खाली करने के आदेश जारी किए गए हैं. उन्हें दक्षिणी ग़ाज़ा में अल मवासी इलाक़े में भेजा जा रहा है जहाँ बुनियादी ढाँचे व अति-आवश्यक सेवाओं की क़िल्लत है.

7 अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हमास व अन्य फ़लस्तीनी हथियारबन्द गुटों हमले किए थे, जिसमें 1,200 लोग मारे गए थे और 250 से अधिक को बन्धक बना लिया गया था.

इसके बाद, इसराइली सेना की कार्रवाई में अब तक 43 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों की जान गई है और एक लाख से ज़्यादा घायल हुए हैं. पिछले 24 घंटों में 24 फ़लस्तीनियों की मौत हुई है और 112 घायल हैं.

युद्धक तौर-तरीक़ों की निन्दा

इस बीच, संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा नियुक्त एक पैनल ने अपनी रिपोर्ट में ने ग़ाज़ा में युद्ध भड़कने के बाद, इसराइली सेना द्वारा अपनाए गए तौर-तरीक़ों की निन्दा की है.

संयुक्त राष्ट्र महासभा ने वर्ष 1968 में इस पैनल की स्थापना की थी, जिसका दायित्व क़ाबिज़ सीरियाई गोलान, ग़ाज़ा पट्टी और पूर्वी येरूशलम समेत पश्चिमी तट में मानवाधिकारों की स्थिति की समीक्षा करना है.

रिपोर्ट में अक्टूबर 2023 से इस वर्ष जुलाई तक की स्थिति का आकलन किया गया है, जिसके अनुसार ग़ाज़ा में जल व साफ़-सफ़ाई व्यवस्था समेत बुनियादी सेवाएँ दरक चुकी हैं, फ़सलें बर्बाद हुई हैं और विषैला प्रदूषण फैला हुआ है.

इस अवधि में ग़ाज़ा में 25 हज़ार टन विस्फोटकों का इस्तेमाल किया गया है, जोकि 2024 की शुरुआत में ही क़रीब दो परमाणु बमों के बराबर था. विशेषज्ञों का मानना है कि इसका असर, ग़ाज़ा की कई पीढ़ियों को भुगतना पड़ सकता है.

समिति के अनुसार, ग़ाज़ा पट्टी की घेराबन्दी के ज़रिये, मानवीय सहायता में व्यवधान पैदा करके, आम नागरिकों व सहायताकर्मियों को निशाना बना करके, इसराइल ने पूर्व मंशा के साथ मौत, भुखमरी व गम्भीर घावों को अंजाम दिया है और भुखमरी को युद्धक तौर-तरीक़े के रूप में इस्तेमाल किया है.

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा बाध्यकारी आदेश जारी किए जाने, सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों और संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी की गई अपील के बावजूद ऐसा किया गया है.

फ़लस्तीनी महिलाओं का मखौल

समिति ने क्षोभ जताया है कि ग़ाज़ा मे इसराइली सैनिकों ने महिलाओं व बच्चों समेत फ़लस्तीनियों का अमानवीयकरण करते हुए उनके साथ क्रूर, अपमानजनक बर्ताव किया है.

ऐसे आरोप हैं कि इसराइली सैनिकों ने सोशल मीडिया पर फ़लस्तीनी महिलाओं के फ़ोटो साझा किए, जिनमें उनका मखौल उड़ाते हुए अपमान किया गया.

समिति के सदस्यों – मलेशिया, सेनेगल और श्रीलंका – ने इसराइल व फ़लस्तीनी हथियारबन्द गुटों से आग्रह किया है कि जल्द से जल्द युद्धविराम पर सहमति के साथ सभी बन्धकों की रिहाई सुनिश्चित करनी होगी.

इसके अलावा, अन्तरराष्ट्रीय रैडक्रॉस समिति को हिरासत केन्द्रों में जाने की अनुमति देनी और सीमा चौकियों के ज़रिये मानवीय सहायता की आपूर्ति की जानी अहम है.

पैनल ने फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन एजेंसी (UNRWA) के विरुद्ध दुष्प्रचार मुहिम की भी निन्दा की है और कहा है कि ग़ाज़ा में हिंसक टकराव की रिपोर्टिंग व मीडिया को जानबूझकर चुप कराने की कोशिशें हो रही हैं.

पैनल की रिपोर्ट को यूएन महासभा के 79वें सत्र के दौरान 18 नवम्बर 2024 को प्रस्तुत किया जाएगा.

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