यूएन की शीर्ष अधिकारी ने सोमवार को सुरक्षा परिषद में सदस्य देशों को इस विषय में मौजूदा हालात से अवगत कराया.
बताया गया है कि अमेरिका ने, ‘संयुक्त व्यापक कार्य योजना’ (Joint Comprehensive Plan of Action/JCPOA) की दिशा में वापसी नहीं की है, जोकि इस परमाणु समझौते का औपचारिक नाम है.
ना ही, उसकी ओर से उन पाबन्दियों को हटाया गया है जिन्हें मई 2018 में इस समझौते से पाँव वापिस खींचने पर एकतरफ़ा ढंग से ईरान पर फिर से थोप दिया गया था.
अमेरिका ने ईरान के साथ तेल व्यापार पर छूट दिए जाने की अवधि को भी नहीं बढ़ाया है.
वहीं, ईरान सरकार द्वारा मई 2019 के बाद से लिए गए उन क़दमों को वापिस नहीं लिया गया है, जोकि परमाणु समझौते के तहत उसके तयशुदा दायित्वों से मेल नहीं खाते हैं.
2015 में हुए इस समझौते में ईरान के घरेलू परमाणु कार्यक्रम की निगरानी करने के लिए नियम पेश किए गए थे, ताकि अमेरिकी प्रतिबन्धों को हटाने का मार्ग प्रशस्त हो सके.
इस मुद्दे पर ईरान, सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्यों – चीन, फ़्राँस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका – समेत जर्मनी व योरोपीय संघ ने सहमति जताई थी.
सत्यापन में असमर्थता
यूएन अवर महासचिव डीकार्लो ने मई महीने में जारी हुई अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी की एक रिपोर्ट का उल्लेख किया, जिसमें खेद जताया गया है कि परमाणु कार्यक्रम के विषय में ईरान द्वारा अपने दायित्व पूरा किए जाने की सत्यापन प्रक्रिया और उसकी निगरानी के लिए प्रयास गम्भीर रूप से प्रभावित हुए हैं.
यूएन परमाणु एजेंसी, फ़रवरी 2021 के बाद से ही ईरान में संवर्धित यूरेनियम के कुल भंडार की पुष्टि कर पाने में असमर्थ रही है.
IAEA का अनुमान है कि परमाणु समझौते में संवर्धित यूरेनियम की जितनी मात्रा की अनुमति दी गई थी, ईरान के पास उसका 30 गुना अधिक भंडार हो सकता है.
इनमें बढ़ी हुई मात्रा में 20 फ़ीसदी और 60 फ़ीसदी संवर्धित यूरेनियम भी है. अवर महासचिव ने कहा कि संवर्धित यूरेनियम का इतना भंडार और उसका इस स्तर पर संवर्धन चिन्ता का विषय है.
संवाद पर बल
उन्होंने JCPOA परमाणु समझौते में शामिल सभी पक्षों से आग्रह किया है कि संवाद व सहयोग के लिए सभी सम्भावित विकल्पों की तलाश की जानी होगी.
रोज़मैरी डीकार्लो के अनुसार, मौजूदा हालात में बहुपक्षवाद व कूटनीति को प्राथमिकता दी जानी ज़रूरी है, और शान्ति व सुरक्षा को बढ़ावा देने वाले मार्ग पर आगे बढ़ा जाना होगा.
ईरान परमाणु समझौता
- यह समझौता क्या है? 2015 में संयुक्त व्यापक कार्य योजना (JCPOA) में ईरान के परमाणु कार्यक्रम की निगरानी के लिए नियम तय किए गए हैं और इससे यूएन पाबन्दियों को हटाए जाने का मार्ग प्रशस्त होता है.
- इस समझौते में कौन से पक्ष शामिल हैं? ईरान, सुरक्षा परिषद के पाँच स्थाई सदस्य देश (चीन, फ़्राँस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका), जर्मनी व योरोपीय संघ.
- संयुक्त राष्ट्र की क्या भूमिका है? 2015 में यूएन सुरक्षा परिषद में पारित एक प्रस्ताव में यह समझौता अमल में लाने पर बल दिया गया है, और यह गारंटी दी गई है कि अन्तरराष्ट्रीय परमाणु ऊर्जा एजेंसी को ईरान के परमाणु कार्यक्रम पर और जानकारी व उसकी पहुँच सुनिश्चित की जाएगी.
- इस समझौते पर जोखिम क्यों है? पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रम्प ने 2018 में इस समझौते को ख़ारिज कर दिया था, और ईरान पर फिर से पाबन्दियाँ थोप दीं. जुलाई 2019 में ईरान ने यूरेनियम भंडारण के लिए तयशुदा सीमा से बाहर जाकर उसे जुटाया, और यूरेनियम संवर्धन की प्रक्रिया जारी रखने की मंशा जताई. इससे परमाणु अप्रसार का गम्भीर ख़तरा उपजा है.