Loksabha Elections 2024: लोकसभा के पहले चरण के चुनाव 19 अप्रैल को होने जा रहे हैं। जिन इलाकों पर खास नजरें होंगी उनमें गढ़चिरौली शामिल है। यह इलाका दंडकारण्य जगल से घिरा हुआ है, जहां नक्सलियों का काफी ज्यादा प्रभाव रहा है। इस इलाके में सफलतापूर्वक मतदान एक बड़ा चैलेंज रहा है। इस बार भी चुनाव आयोग ने शांतिपूर्ण मतदान के लिए खास उपाय किए हैं। इसके इलाके में ग्राम पंचायत से लेकर लोकसभा तक के चुनाव नक्लियों के निशाने पर रहे हैं। नक्सली मतदाताओं को मतदान करने से रोकते हैं। वे उम्मीदवारों और मतदाताओं को डराते-धमकाते रहे हैं। धमकी नहीं मानने और मतदान करने वाले लोगों को नक्सलियों ने हिंसा तक का शिकार बनाया है।
नक्सली हिंसा के लिहाज से अप्रैल 1991 में हुए लोकसभा के चुनाव काफी अहम हैं। तब मेडपल्ली में प्रचार के दौरान विधायक बाबा धर्मराव अत्राम को नक्लियों ने अगवा कर लिया था। उन्होंने उनकी रिहाई के लिए कामरेड शिवान्ना को छोड़ने की शर्त रखी थी। शिवान्ना पर कई पुलिसकर्मियों और आदिवासियों की हत्या के आरोप थे। पुलिस की लाख कोशिशों के बाद नतीजा नहीं निकलने पर राजनीतिक स्तर पर माओवादियों की मांग मान लेने का फैसला लिया गया।
माओवादियों के खतरे से निपटने के लिए क्रैक-60 कमांडो फोर्स बनाई गई थी। 1990 के दशक में आईपीएस अफसर कृषिपाल रघुवंशी की पहल से बनाई गई यह फोर्स अब भी सक्रिय है। इस फोर्स में नक्सली हिंसा के शिकार जनजातीय युवाओं को शामिल किया गया। नक्सली इलाके में शांति बहाल करने में इस फोर्स की बड़ी भूमिका रही है। इस फोर्स ने कई बड़े नक्सली नेताओं को ढेर किया है। यह फोर्स इस इलाके में शांतिपूर्ण मतदान सुनिश्चित करने में भी भूमिका निभाता आ रहा है।
रघुवंशी ने बताया, “नक्सली लोकतंत्र में भरोसा नहीं करते। गढ़चिरौली में हर बार चुनाव से पहले गांवों की दीवारों पर पोस्टर लगाया जाता है। इसमे गांव के लोगों को मतदान का बहिष्कार करने को कहा जाता है। वे इलाके में किसी तरह की राजनीतिक गतिविधि का विरोध करते हैं। गढ़चिरौली का इलाका अपने आप में एक बड़ा चैलेंज है। इलाके का 70 फीसदी भूभाग घने जगंलों से ढका है। गर्मी के मौसम में भी 20-30 मीटर से आगे कुछ नहीं दिखता है।”
उन्होंन बताया कि गढ़चिरौली इलाके में पोलिंग बूथ तक पहुंचने के लिए पोलिंग पार्टी को काफी मशक्कत करनी पड़ती है। आम तौर पर पोलिंग टीम की सुरक्षा के लिए पुलिस साथ में होती है। इतनी मुश्किल स्थिति के बाद भी अच्छी बात यह है कि पिछले कुछ चुनावों में वोट करने वाले लोगों की संख्या बढ़ी है। वोट पर्सेंटेज बढ़ा है। इससे यह पता चलता है कि लोग नक्सलियों की धमकी की परवाह नहीं कर लोग लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा बनना चाहते हैं।
गढ़चिरौली पुलिस के वर्तमान सुपरीटेंडेंट निलोत्पल के मुताबिक, गढ़चिरौली निर्वाचन क्षेत्र में 11,000 सुरक्षकर्मियों की तैनाती की गई है। इनमें 6000 डिस्ट्रिक्ट पुलिस, सीआरपीएफ की 30 कंपनियां, एसआरपीएफ की 17 कंपनियां, दूसरे जिलों को 1500 पुलिसकर्मी और 1700 होमगार्ड्स शामिल हैं। 425 मतदान केंद्रों को संवेदनशील घोषित किया गया है। पुलिस मतदान के दिन बड़ी संख्या में ड्रोन कैमरों और हेलीकॉप्टर्स के जरिए निगरानी करेगी।
इस बार गढ़चिरौली-चिमूर लोकसभा क्षेत्र में मुकाबला बीजेपी के अशोक नेते और कांग्रेस के नामदेव कृष्णा के बीच है। अशोक नेते यहां के वर्तमान सांसद हैं। वीबीए के हितेश माडवी भी चुनावी मैदान में हैं। यह रिजर्व जनजातीय सीट है। नक्सलियों की धमकी के बावजूद यहां पिछले दो चुनावों में 70 फीसदी से ज्यादा मतदान हुआ है। इससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में लोगों की दिलचस्पी का पता चलता है।