Lok Sabha Elections 2024: कांग्रेस के बैनर तले बिहार के पूर्णिया लोकसभा सीट (Purnea Lok Sabha constituency) से 2024 का चुनाव लड़ने की पूर्व सांसद पप्पू यादव (Pappu Yadav) की महत्वाकांक्षा के कारण यह निर्वाचन क्षेत्र राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के युद्धक्षेत्र में तब्दील हो गया है। पप्पू यादव ने पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया है। वह 2 अप्रैल को नामांकन दाखिल करेंगे। पिछले सप्ताह RJD अध्यक्ष लालू प्रसाद द्वारा पूर्णिया से बीमा भारती (Bima Bharti) को पार्टी का टिकट दिए जाने के बाद ऐसी अटकलें लगाई जा रही थीं कि पप्पू यादव को मधेपुरा या सुपौल से किस्मत आजमाने के लिए कहा जा सकता है। हालांकि ये तीनों सीट अब RJD के खाते में आ गई हैं।
पप्पू यादव उत्तर पूर्वी बिहार के सीमांचल क्षेत्र के कई जिलों में लोकप्रिय माने जाते हैं। बिहार के पूर्णिया से लोकसभा चुनाव लड़ने की उम्मीद में कांग्रेस में शामिल हुए पूर्व सांसद राजेश रंजन उर्फ पप्पू यादव को लालू प्रसाद यादव ने बड़ा झटका दिया है। पूर्व सांसद ने हाल ही में अपनी जन अधिकार पार्टी का कांग्रेस में विलय कर दिया था। उन्होंने दावा किया था कि राहुल गांधी तथा प्रियंका गांधी वाड्रा ने उन्हें पूर्णिया से टिकट देने का आश्वासन दिया था।
उन्हें पूर्णिया से लोकसभा टिकट मिलने की उम्मीद थी। लेकिन लालू यादव ने यह सीट कांग्रेस के लिए न छोड़ते हुए अपने खाते में रख ली और आगामी लोकसभा चुनाव के लिए JDU से RJD में आईं बीमा भारती को यहां से उम्मीदवार घोषित कर दिया। कांग्रेस भी महागठबंधन की हिस्सा है। कांग्रेस से पप्पू यादव की पत्नी रंजीत रंजन राज्यसभा सदस्य हैं। पप्पू यादव के तरफ से भी कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने को पुरजोर कोशिश जारी है।
भारती का राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड Vs पप्पू का शानदार करियर
पूर्णिया लोकसभा क्षेत्र के अंतर्गत आने वाले रूपौली विधानसभा से 5 बार विधायक रह चुकीं बीमा भारती के पास एक व्यापक राजनीतिक ट्रैक रिकॉर्ड है। विशेष रूप से वह एक बार निर्दलीय विधायक के रूप में पद संभाल चुकी हैं। जबकि एक बार RJD का प्रतिनिधित्व कर चुकी हैं और तीन बार JDU के अधीन सीट संभाल चुकी हैं। इसके अलावा वह कैबिनेट मंत्री के रूप में भी काम कर चुकी हैं।
दूसरी ओर पप्पू यादव का राजनीतिक करियर भी उतना ही शानदार रहा है। वे एक बार विधायक और पांच बार सांसद रह चुके हैं। उन्होंने तीन बार पूर्णिया निर्वाचन क्षेत्र और दो बार मधेपुरा सीट का प्रतिनिधित्व किया है। हालांकि, 2020 के विधानसभा चुनावों में यादव को मधेपुरा में एक बड़ा झटका लगा। उन्होंने केवल 97,000 वोटों के साथ तीसरा स्थान हासिल किया, जो उनके लिए करारी हार थी।
पप्पू यादव पिछली बार 2014 के लोकसभा चुनाव में विजयी हुए थे। उस समय वह राजद के टिकट पर मधेपुरा से जीते थे। उन्होंने 1990 के दशक में तीन बार (दो बार निर्दलीय प्रत्याशी के रूप में) पूर्णिया का प्रतिनिधित्व किया। राजनीतिक पर्यवेक्षकों का मानना है कि यादव कांग्रेस में जाकर फंस चुके हैं। उनके पास अब कोई दूसरा विकल्प नहीं हैं। उन्हें या तो कांग्रेस से इस्तीफा देना पड़ेगा या पार्टी द्वारा उन्हें दी गई सीट स्वीकार करना पड़ेगा।
पप्पू की योजना पटरी से उतरी
रिपोर्टों से पता चलता है कि पप्पू यादव ने अपनी पार्टी का कांग्रेस में विलय करने से पहले लालू यादव और तेजस्वी यादव के साथ चर्चा की। बाद में अपनी दिल्ली यात्रा के दौरान उन्होंने अपनी पार्टी के कांग्रेस में विलय की घोषणा की। यादव को बहुत उम्मीदें थीं कि कांग्रेस और लालू यादव दोनों पूर्णिया से उन्हें अपना उम्मीदवार बनाएंगे। हालांकि, भारती के चुनावी मैदान में अप्रत्याशित एंट्री ने उनकी सावधानीपूर्वक तैयार की गई योजनाओं को पूरी तरह से विफल कर दिया है।
पप्पू यादव ने चुनाव लड़ने के सवाल पर शनिवार को ANI से कहा, “हमने पूर्णिया की जनता की भावना को राहुल गांधी और प्रियंका गांधी तक पहुंचा दिया है। हमें पूरा विश्वास है कि उनका आशीर्वाद हमारे और पूर्णिया की जनता के साथ होगा, हमें विश्वास है कि हमारे हाथ में कांग्रेस का झंडा होगा और पूर्णिया की जनता के विश्वास पर पप्पू यादव खरा उतरेगा… हम लालू यादव से हमेशा आशीर्वाद की अपेक्षा रखते हैं, हम उनके साथ हैं आगे भी रहेंगे।”
अब लालू ने बनाया ये प्लान
राजनीतिक विशेषज्ञों का कहना है कि ये हालिया घटनाक्रम लालू प्रसाद की पारंपरिक राजनीतिक रणनीति के पुनरुद्धार का संकेत देते हैं। उनकी रणनीति OBC समुदाय को एकजुट करके पूर्णिया सीट पर जीत हासिल करने को प्राथमिकता देती दिख रही है। ओबीसी गंगौंटा जाति के साथ भारती का जुड़ाव इस दृष्टिकोण के साथ अच्छी तरह से मेल खाता है, जिससे चुनावी कथा में ओबीसी पहचान को प्रमुखता मिलती है।
भारती के अभियान की कहानी इस आरोप के इर्द-गिर्द घूमती है कि नीतीश कुमार ने उनके पति और बेटे को कारावास में डाल दिया, जिसके परिणामस्वरूप एक पिछड़े समुदाय की महिला के रूप में उनका अपमान हुआ। उन्हें टिकट देकर, लालू को महिलाओं के समर्थक और राजनीतिक क्षेत्र में उनकी गरिमा को बहाल करने वाले के रूप में पेश किया गया है।