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Lokpal AM Khanwilkar: लोकपाल के नए अध्यक्ष पूर्व जज एएम खानविलकर कौन हैं? जानें, उनके बारे में सबकुछ

Lokpal AM Khanwilkar: लोकपाल के नए अध्यक्ष पूर्व जज एएम खानविलकर कौन हैं? जानें, उनके बारे में सबकुछ

राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू (President Draupadi Murmu) ने रविवार को सुप्रीम कोर्ट के पूर्व जज जस्टिस अजय माणिकराव खानविलकर (Lokpal AM Khanwilkar) को लोकपाल अध्यक्ष पद की शपथ दिलाई। 66 वर्षीय जस्टिस (रिटायर्ड) खानविलकर ने 13 मई, 2016 से 29 जुलाई, 2022 तक शीर्ष अदालत के जज के रूप में सेवा दी। एक आधिकारिक बयान के मुताबिक, राष्ट्रपति ने रविवार शाम राष्ट्रपति भवन में एक समारोह के दौरान खानविलकर को लोकपाल अध्यक्ष पद की शपथ दिलाई। जस्टिस खानविलकर को पिछले महीने लोकपाल अध्यक्ष के रूप में नियुक्त किया गया था।

27 मई, 2022 को पिनाकी चंद्र घोष के रिटायर होने के बाद से यह पद खाली था। लोकपाल में नियुक्त अन्य न्यायिक सदस्यों में पूर्व जज जस्टिस लिंगप्पा नारायण स्वामी, संजय यादव और रितु राज अवस्थी शामिल हैं। गैर न्यायिक सदस्य के रूप में सुशील चंद्रा, पंकज कुमार और अजय तिर्की को नियुक्त किया गया है। जुलाई 2022 में सुप्रीम कोर्ट से रिटायर हुए खानविलकर को रिटायर होने के डेढ़ साल बाद अब सरकारी पद दिया गया है।

कौन हैं खानविलकर?

30 जुलाई 1957 को पुणे में जन्मे खानविलकर ने मुंबई के मुलुंड कॉलेज ऑफ कॉमर्स से ग्रेजुएट की डिग्री प्राप्त की। इसके बाद उन्होंने के.सी. से कानून की डिग्री हासिल की। बाद में उन्होंने मुंबई के लॉ कॉलेज में 1982 में एक वकील के रूप में दाखिला लिया। खानविलकर ने मुंबई में अपनी प्रैक्टिस शुरू की, लेकिन अपने करियर के शुरुआती चरण में ही वह दिल्ली चले गए। यहां वकील के रूप में अपना करियर शुरू करने के करीब 18 साल बाद खानविलकर को 2000 में बॉम्बे हाई कोर्ट का जज नियुक्त किया गया था।

लगभग 13 वर्षों तक बॉम्बे हाई कोर्ट के जज के रूप में कार्य करने के बाद उन्हें अप्रैल 2013 में हिमाचल प्रदेश हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस नियुक्त किया गया। इसके बाद, मई 2016 में सुप्रीम कोर्ट में प्रमोशन होने से पहले नवंबर 2013 में उन्हें मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का चीफ जस्टिस बनाया गया। सुप्रीम कोर्ट में खानविलकर एक साल से अधिक समय तक कॉलेजियम के सदस्य रहे। जब वह 2016 में रिटायर हुए तो वह अदालत के तीसरे सबसे सीनियर जज थे।

खानविलकर 2018 में संविधान पीठ के सदस्य थे, जिसने माना था कि किसी व्यक्ति को गरिमा के साथ मरने का अधिकार है और यह संविधान के तहत एक मौलिक अधिकार है। इस फैसले के अनुसार, यह अधिकार मरीज को इलाज से इनकार करने, लाइलाज बीमारी की स्थिति में दर्द और पीड़ा पैदा करने और मरने की प्रक्रिया को तेज करने की अनुमति देता है।

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अपनी रिटायरमेंट से एक सप्ताह पहले, खानविलकर ने PMLA 2002 में विभिन्न संशोधनों को बरकरार रखते हुए एक अहम फैसला दिया था। यह निर्णय प्रवर्तन निदेशालय (ED) की शक्तियों और उन शर्तों से संबंधित था।

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