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2024 में, बेरोज़गारी दर में वृद्धि के आसार, ILO ने किया आगाह

2024 में, बेरोज़गारी दर में वृद्धि के आसार, ILO ने किया आगाह

2023 के लिए वैश्विक बेरोज़गारी दर को 5.1 प्रतिशत आंका गया है, जोकि 2022 के दौरान 5.3 प्रतिशत से थोड़ा बेहतर है. इसके अलावा, 2023 में वैश्विक स्तर पर नौकरियों में खाई और श्रम बाज़ार में भागीदारी की दर भी बेहतर हुई है.

अध्ययन के अनुसार श्रम बाज़ार परिदृश्य और बेरोज़गारी के बिगड़ने की आशंका है, और 2024 में, अतिरिक्त 20 लाख कामगारों के नौकरियाँ ढूंढने की सम्भावना है.

इन परिस्थितियों में वैश्विक बेरोज़गारी 2023 में 5.1 प्रतिशत से बढ़कर इस वर्ष 5.2 प्रतिशत पर पहुँच जाएगी. नौकरियों में खाई (jobs gap) से तात्पर्य, ऐसे व्यक्तियों की संख्या से है जिनके पास फ़िलहाल रोज़गार नहीं है और वे नौकरी पाने के इच्छुक हैं.

यूएन श्रम एजेंसी की नवीनतम रिपोर्ट, World Employment and Social Outlook Trends: 2024, दर्शाती है कि वैश्विक महामारी से उबरने की प्रक्रिया असमान है.

नई चुनौतियोँ, मौजूदा ख़ामियों और विविध प्रकार के संकटों से वृहद सामाजिक न्याय के लिए सम्भावनाओं को ठेस पहुँच रही है.

जी20 समूह के अधिकाँश देशों में इस्तेमाल में लाने योग्य आय में कमी आई है, और मुद्रास्फीति बने रहने की वजह से, रहन-सहन मानकों में आई गिरावट में जल्द सुधार आने की सम्भावना नहीं है. 

क्षेत्रवार भिन्नताएँ

अध्ययन बताता है कि उच्चतर और निम्नतर आय वाले देशों में कई भिन्नताएँ हैं. 2023 में, उच्च-आय वाले देशों में नौकरियों में खाई की दर 8.2 प्रतिशत थी, जबकि निम्न-आय वाले समूह के लिए यह आँकड़ा 20.5 प्रतिशत है.

वहीं, 2023 में उच्च-आय वाले देशों में बेरोज़गारी की दर को 4.5 प्रतिशत आंका गया, जबकि निम्न आय वाले देशों के लिए यह दर 5.7 प्रतिशत थी.

कामकाजी निर्धनता की दर, यानि ऐसे रोज़गार प्राप्त ऐसे व्यक्तियों का प्रतिशत जो आय का ज़रिया होने के बावजूद निर्धनता में रह रहे हैं, के भी बरक़रार रहने के आसार हैं.

इसमें 2020 के बाद तेज़ गिरावट आने के बावजूद, अत्यधिक निर्धनता (प्रति व्यक्ति प्रति दिन 2.15 डॉलर से कम कमाई) में रह रहे कामगारों की संख्या में 2023 में 10 लाख की वृद्धि दर्ज की गई.

मध्यम स्तर पर निर्धनता (प्रति व्यक्ति प्रति दिन 3.65 डॉलर से कम कमाई) का शिकार कामगारों की संख्या भी 2023 में 84 लाख की बढ़ोत्तरी नज़र आई. 

यूएन एजेंसी के रुझानों में चेतावनी दी गई है कि आय सम्बन्धी विषमताएँ भी चौड़ी हुई है, वास्तव में इस्तेमाल में लाई जा सकने वाली आय घटी है, जोकि कुल मांग और आर्थिक बहाली के लिए अच्छा संकेत नहीं है. 

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