यूएन उपप्रमुख ने सोमवार को न्यूयॉर्क में ‘जनसंख्या एवं विकास पर यूएन आयोग’ के 56वें सत्र के उदघाटन कार्यक्रम को सम्बोधित करते हुए यह बात कही है.
यूएन आयोग की बैठक की इस वर्ष की थीम है: आबादी, शिक्षा एवं टिकाऊ विकास.
उपमहासचिव आमिना मोहम्मद ने इस स्थिति पर क्षोभ प्रकट किया कि स्कूलों से बाहर, 26 करोड़ 30 लाख बच्चों में क़रीब 60 फ़ीसदी की आयु 15 से 17 वर्ष के बीच है.
उनके अनुसार, यह एक ऐसा महत्वपूर्ण पड़ाव है जब युवजन द्वारा बालिग़ होने और भविष्य की तैयारी की दिशा में क़दम बढ़ाए जाते हैं.
तिहरा संकट
यूएन उपप्रमुख ने चेतावनी जारी करते हुए कहा कि देशों को शिक्षा क्षेत्र में तिहरे संकट का सामना करना पड़ रहा है: समता व समावेशन, गुणवत्ता, प्रासंगिकता.
उनके अनुसार, मौजूदा दौर की चुनौतियों से निपटने के लिए शिक्षा की नए सिरे से परिकल्पना करने और शैक्षिक प्रणालियों की कायापलट की जानी होगी.
यूएन उपप्रमुख ने चिन्ता जताई कि ऐसे अनेक बच्चे हैं, जो स्कूलों में पढ़ाई तो कर रहे हैं मगर कुछ सीख नहीं पा रहे हैं.
“निर्धन देशों में लगभग 70 प्रतिशत बच्चे, 10 वर्ष की आयु होने पर भी सरल लेख को समझ पाने में असमर्थ हैं, जिसकी एक बड़ी वजह निर्धनता व कुपोषण है.”
उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान में महिलाओं व लड़कियों की स्थिति की ओर ध्यान आकृष्ट करते हुए कहा कि उन्हें हाई स्कूल व कॉलेज की पढ़ाई से वंचित किया गया है, और यह हमारे दौर की सबसे गम्भीर शैक्षिक चुनौतियों में है.
यूएन उप महासचिव ने ज़ोर देकर कहा कि पृथ्वी व आम लोगों की भलाई और एक टिकाऊ भविषय के लिए, शिक्षा एक बेहद अहम दीर्घकालिक निवेश है.
उन्होंने ध्यान दिलाया कि विश्व आबादी आठ अरब से ज़्यादा हो चुकी है, जिनमें से दो-तिहाई लोग ऐसे स्थानों पर रहते हैं, जहाँ मौजूदा प्रजनन दर, प्रतिस्थापन स्तर (replacement level) से नीचे है.
इस स्तर को प्रति महिला दो बच्चों के आसपास आँका जाता है. वहीं, अनेक देश ऐसे हैं जहाँ आबादी तेज़ रफ़्तार से आगे बढ़ती जा रही है. “कुछ देशों में माध्यिका आयु लगभग 50 वर्ष है जबकि अन्य में यह क़रीब 15 वर्ष है.”
निवेश की दरकार
संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA) की प्रमुख नतालिया कानेम ने सचेत किया कि जिन क्षेत्रों में स्कूली पंजीकरण में विस्तार हुआ है, वहाँ भी बच्चे स्कूलों से बाहर हैं, या फिर पढ़ने, लिखने व गणना करने में असमर्थ हैं.
उन्होंने कहा कि शिक्षकों की संख्या भी बहुत कम है, उन पर बोझ अधिक है और पढ़ाई-लिखाई के आधुनिक तौर-तरीक़ों में उन्हें पर्याप्त प्रशिक्षण नहीं मिला है.
“सच्चाई यह है कि पढ़ने-लिखने में असमर्थ 77 करोड़ वयस्कों में, दो-तिहाई महिलाएँ हैं.”
यूएन एजेंसी की शीर्ष अधिकारी ने कहा कि इस कठिन परिस्थिति से उन्हें बाहर निकालने के लिए विशाल, स्थानीय स्तर पर निवेश किए जाने की आवश्यकता होगी.
उन्होंने कहा कि शिक्षा से बाल विवाह, महिला जननांग विकृति और अन्य हानिकारक प्रथाओं का शिकार बनने की आशंका घटती है, और लिंग-आधारित हिंसा के जोखिम में भी कमी आती है.
‘जनसंख्या एवं विकास पर यूएन आयोग’ का 56वाँ सत्र 10-14 अप्रैल तक चलेगा.
इस आयोग में 47 सदस्य देश हैं, जिनका चुनाव आर्थिक एवं सामाजिक परिषद, भौगोलिक आधार पर चार वर्ष की अवधि के लिए करती है.
यह आयोग, यूएन परिषद को जनसंख्या व विकास सम्बन्धी मुद्दों व रुझानों पर परामर्श देता है. साथ ही, आबादी एवं विकास पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन की कार्ययोजना की निगरानी, समीक्षा व उसे लागू किए जाने का भी दायित्व इस आयोग पर है.