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3 पूर्व सीएम की साख दांव पर लगी, जानिए क्या कहता है हरिद्वार का राजनीतिक समीकरण

3 पूर्व सीएम की साख दांव पर लगी, जानिए क्या कहता है हरिद्वार का राजनीतिक समीकरण

त्रिवेंद्र सिंह रावत और वीरेंद्र रावत- India TV Hindi

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त्रिवेंद्र सिंह रावत और वीरेंद्र रावत

 हरिद्वार लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत के उतरने से मुकाबला दिलचस्प हो गया है। बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत पर भरोसा जताया है तो कांग्रेस ने पूर्व सीएम हरीश रावत के बेटे वीरेंद्र रावत को टिकट दिया है। इस सीट पर अब दो पूर्व मुख्यमंत्रियों का सियासी वचस्व दांव पर लग गया है। यहां पर 19 अप्रैल को पहले चरण में वोट डाले जाएंगे। वोटों की गिनती चार जून को होगी।

हरिद्वार लोकसभा सीट का इतिहास

वर्ष 2014 और 2019 के आम चुनावों में हरिद्वार से भाजपा के रमेश पोखरियाल निशंक जीते थे, जिनका टिकट इस बार काट दिया गया है।  2019 में निशंक को 69 प्रतिशत वोट मिले थे। उन्होंने कांग्रेस उम्मीदवार अंबरीश कुमार को हराया था। 2014 में निशंक ने रेणुका रावत को हराया था। उस समय भी बीजेपी को 69 प्रतिशत वोट मिले थे। साल 2009 में यह सीट कांग्रेस के पास थी। हरीश रावत ने बीजेपी को हराया था। उन्हें 60.89 प्रतिशत वोट मिले थे। 2004 में यह सीट समाजवादी पार्टी जीती थी। सपा के राजेंद्र कुमार ने बसपा को हराया था। 

यहां रहते हैं इस समुदाय के लोग

हरिद्वार संसदीय सीट में दो जिलों की 14 विधानसभा सीटें शामिल हैं। इस क्षेत्र में ब्राह्मण, अनुसूचित जाति, पहाड़ी समाज, पाल, तेली, झोझा, बंजारा, सैनी, सिख, जाट, गुर्जर, त्यागी और मुस्लिम समाज की आबादी प्रमुख रूप से है। 


 

कौन हैं वीरेंद्र रावत

पूर्व सीएम हरीश रावत के अनुसार, वीरेंद्र रावत साल 1998 से ही कांग्रेस कार्यकर्ता के रूप में काम कर रहे हैं और 2009 से हरिद्वार में सक्रिय हैं। इस क्षेत्र के हर गांव में लोगों के साथ खड़े हैं। हरीश रावत ने पोस्ट में अपने बेटे के बारे में कहा कि वीरेंद्र 1996 में दयाल सिंह डिग्री कॉलेज छात्र संघ के अध्यक्ष, दिल्ली एनएसयूआई के महासचिव और उत्तराखंड में युवा कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे और अब उत्तराखंड प्रदेश कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष हैं। 

कौन हैं त्रिवेंद्र सिंह रावत

त्रिवेन्द्र सिंह रावत साल 2017 और 2021 के बीच उत्तराखंड के मुख्यमंत्री के रूप में कार्य किया।  9 मार्च 2021 को उन्होंने सीएम पद से इस्तीफा दे दिया था। रावत 1979 से 2002 तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सदस्य थे और उन्होंने उत्तराखंड क्षेत्र और बाद में उत्तराखंड राज्य के संगठन सचिव का पद संभाला। वह 2002 में राज्य के पहले विधान सभा चुनाव में डोईवाला से चुने गए। उन्होंने 2007 के चुनावों में अपनी सीट बरकरार रखी और राज्य के कृषि मंत्री के रूप में कार्य किया।  

क्यों कड़ा होगा मुकाबला

हरिद्वार संसदीय सीट पर कांग्रेस और बीजेपी का कब्जा रहा है। पूर्व सीएम हरीश रावत यहां से सांसद रह चुके हैं और केंद्रीय में मनमोहन सिंह की सरकार में मंत्री भी रहे। इस बार वह खुद न लड़कर बेटे को टिकट दिलवा दिए हैं। बेटा बेशक लड़ रहा है लेकिन साख हरीश रावत की दांव पर लगी है। वहीं, बीजेपी यहां से एक बार फिर जीतकर जीत की हैट्रिक लगाने की कोशिश में है। पिछला दो चुनाव बीजेपी यहां से जीत भी रही है। बीजेपी ने त्रिवेंद्र सिंह रावत को मैदान में खड़ा कर एक मजबूत प्रत्याशी यहां के लोगों को दिया है। यहां से पूर्व सीएम निशंक भी चुनाव प्रचार करेंगे। क्योंकि वो मौजूदा समय में यहां के सांसद हैं। इस हिसाब से तीन पूर्व सीएम की साख दांव पर लगी है।

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