Uncategorized

2025: जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रयास, इन 5 मुद्दों पर रहेगी नज़र

2025: जलवायु संकट से निपटने के लिए प्रयास, इन 5 मुद्दों पर रहेगी नज़र

1. क्या हम 1.5 डिग्री के लक्ष्य को जीवित रख सकते हैं?

पिछले कुछ वर्षों से संयुक्त राष्ट्र ने मज़बूती से 1.5 का लक्ष्य जीवित रखने पर बल दिया है. इसका अर्थ है, वैश्विक औसत तापमान में वृद्धि को औद्योगिक युग से पहले के स्तर से 1.5 डिग्री सेल्सियस से अधिक होने से रोकना.

वैज्ञानिक इस बात पर सहमत हैं कि पुख़्ता कार्रवाई के अभाव में जलवायु परिवर्तन के विनाशकारी परिणाम होंगे, विशेष रूप से उन देशों के लिए जिन्हें इस संकट के मोर्चे पर मौजूद “अग्रिम पंक्ति के देश” कहा जाता है, जैसेकि विकासशील द्वीपीय राष्ट्र, जिन पर समुद्री स्तर बढ़ने की वजह से समुद्र के नीचे डूबने का ख़तरा मंडरा रहा है.

एक आदमी रेत की बोरियों पर बैठकर मछली पकड़ रहा है, जो प्रशांत महासागर के द्वीप राष्ट्र तुवालु को समुद्री कटाव से बचाती है.

© UNICEF/Lasse Bak Mejlvang

10 से 21 नवम्बर 2025 के बीच आयोजित होने वाले संयुक्त राष्ट्र जलवायु सम्मेलन, कॉप30 के दौरान उन कार्रवाइयों और नीतियों पर ध्यान केन्द्रित किया जाएगा, जिनसे ग्रीनहाउस गैस उत्सर्जन में कमी लाने और बढ़ते तापमान को रोकने में मदद मिल सकती है.

दुनिया भर से देश ग्रीनहाउस गैसों को कम करने के लिए उन्नत और अधिक महत्वाकाँक्षी प्रतिबद्धताओं के साथ सम्मेलन में शामिल होंगे. यह स्पष्ट है कि मौजूदा वादे, तापमान को कम करने के लिहाज से पूरी तरह से अपर्याप्त हैं. 

2015 में हुए पैरिस जलवायु समझौते के तहत, सदस्य देश हर पाँच वर्ष में एक बार अपनी जलवायु कार्रवाई योजनाओं और प्रतिबद्धताओं को मज़बूती देते हैं. पिछली बार यह प्रक्रिया 2021 में ब्रिटेन के ग्लासगो शहर में हुए कॉप सम्मेलन में हुई थी, जिसे कोविड-19 महामारी के कारण एक वर्ष के लिए स्थगित कर दिया गया था.

2. प्रकृति की सुरक्षा

ब्राज़ील के ऐमेज़ॉन वर्षावन क्षेत्र में कॉप30 का आयोजन प्रतीकात्मक रूप से महत्वपूर्ण है. यह पर्यावरण की सुरक्षा के लिए अन्तरराष्ट्रीय प्रयासों के शुरुआती दिनों की याद दिलाता है.

वो ऐतिहासिक “पृथ्वी शिखर सम्मेलन,” जिसमें जलवायु परिवर्तन, जैव विविधता और मरुस्थलीकरण पर तीन पर्यावरणीय सन्धियों को आकार दिया गया. इस सम्मेलन को वर्ष 1992 में ब्राज़ील के रियो डी जनेरियो शहर में आयोजित किया गया था.

भारत के महाराष्ट्र शहर में पेड़ की टहनी पर बैठा एक तोता.

इस आयोजन स्थल का चयन इस ओर भी इशारा करता है कि जलवायु संकट और उससने निपटने में प्रकृति की क्या भूमिका हो सकती है. वर्षावन एक विशाल “कार्बन सिंक” है, जो CO2 जैसी ग्रीनहाउस गैसों को अवशोषित और संग्रहीत करते हैं, तथा इन्हें वायुमंडल में प्रवेश करने से रोकते हैं, जहाँ ये वैश्विक तापमान वृद्धि की वजह बन सकती हैं.

दुर्भाग्यवश, वर्षावन और अन्य “प्रकृति-आधारित समाधान” मानवीय गतिविधियों से उत्पन्न ख़तरों का सामना कर रहे हैं, जैसे कि अवैध कटाई, जिसने इस वन क्षेत्र के बड़े हिस्सों को बर्बाद कर दिया है. 

इस क्रम में, संयुक्त राष्ट्र 2024 में शुरू किए गए अपने प्रयासों को जारी रखेगा, ताकि वर्षावन व अन्य पारिस्थितिकी तंत्रों की बेहतर तरीक़े से रक्षा की जा सके. इस दिशा में फ़रवरी में रोम में जैव विविधता पर होने वाली वार्ता में बातचीत फिर शुरू की जाएगी.

3. इसका भुगतान कौन करेगा?

लम्बे समय से वित्तपोषण की समस्या, अन्तरराष्ट्रीय जलवायु वार्ताओं में एक विवादास्पद मुद्दा रहा है. विकासशील देशों का तर्क है कि सम्पन्न राष्ट्रों को उन परियोजनाओं और पहलों में कहीं अधिक योगदान देना चाहिए, जो उन्हें जीवाश्म ईंधनों पर निर्भरता घटाने व स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा देने में सक्षम बनाएगी. 

वहीं, समृद्ध देशों का कहना है कि दुनिया में ग्रीनहाउस गैसों के सबसे बड़े उत्सर्जक चीन औरा ऐसी अन्य तेज़ी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं को भी इस संकट से निपटने में अपना दायित्व निभाना होगा. 

अज़रबैजान के बारू शहर में जीवाश्म ईंधन के ख़िलाफ़ प्रदर्शन करते कार्यकर्ता.

अज़रबैजान के बाकू शहर में हुए कॉप29 में जलवायु वित्त पोषण के क्षेत्र में एक बड़ी प्रगति हुई, यहाँ अपनाए गए एक समझौते के तहत 2035 तक विकासशील देशों को दी जाने वाली जलवायु सहायता धनराशि को तीन गुना बढ़ाकर प्रति वर्ष 300 अरब डॉलर करने के लक्ष्य पर सहमति हुई है.

यह समझौता निश्चित रूप से एक सकारात्मक क़दम है, लेकिन यह राशि जलवायु संकट से निपटने के लिए 1,300 अरब डॉलर की अनुमानित आवश्यकता से काफ़ी कम है.

2025 में, वित्त पोषण के क्षेत्र में और प्रगति की उम्मीद है. जून महीने के अन्त में स्पेन में एक शिखर सम्मेलन आयोजित किया जाएगा. विकास के लिए वित्त पोषण सम्मेलन हर 10 साल में एक बार होते हैं, और इस आयोजन को अन्तरराष्ट्रीय वित्तीय ढाँचे में मौलिक बदलाव लाने का एक अवसर माना जा रहा है. 

इसमें पर्यावरण और जलवायु से जुड़े मुद्दों को उठाया जाएगा, और सम्भावित समाधानों जैसेकि हरित टैक्स, कार्बन मूल्य निर्धारण एवं सब्सिडी पर चर्चा होगी.

4. क़ानूनी उपाय का निर्धारण

दिसम्बर में, जब अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय का ध्यान जलवायु परिवर्तन की ओर गया, तो इसे अन्तरराष्ट्रीय क़ानून के तहत देशों की क़ानूनी ज़िम्मेदारियों के सम्बन्ध में एक ऐतिहासिक क्षण क़रार दिया गया.

जलवायु संकट के प्रति विशेष रूप से सम्वेदनशील एक प्रशान्त द्वीपीय देश वानुआतु ने अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय (आईसीजे) से सलाहकारी राय माँगी, ताकि जलवायु परिवर्तन से जुड़ी देशों की ज़िम्मेदारियों को स्पष्ट किया जा सके और भविष्य में किसी भी न्यायिक कार्रवाई को दिशा दी जा सके.

वनुआतू जैसे सम्वेदनशील द्वीपीय देश, अक्सर तूफ़ान जैसे विनाशकारी चरम मौसम का अनुभव करते हैं.

© UNDP/Silke von Brockhausen

दो सप्ताह की अवधि में, 96 देशों और 11 क्षेत्रीय संगठनों ने न्यायालय के समक्ष सार्वजनिक सुनवाई में भाग लिया, जिनमें वानुआतु और प्रशान्त द्वीप समूह के अन्य देशों के साथ-साथ, चीन व अमेरिका जैसी बड़ी अर्थव्यवस्थाएँ शामिल हुईं.

अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय द्वारा इस विषय पर अपनी सलाहकार राय देने से पहले कई महीनों तक विचार-विमर्श किया जाएगा. यह राय बाध्यकारी नहीं होगी, लेकिन इससे भविष्य में अन्तरराष्ट्रीय जलवायु क़ानून को मार्गदर्शन हासिल होगा.

5. प्लास्टिक प्रदूषण

प्लास्टिक प्रदूषण की वैश्विक समस्या से निपटने के लिए, संयुक्त राष्ट्र के सहयोग से दक्षिण कोरिया के बुसान में हुई वार्ताओं के दौरान एक समझौते के क़रीब पहुँचा गया.

नवम्बर 2024 की वार्ताओं के दौरान कुछ महत्वपूर्ण प्रगति हुई. यह 2022 में यूएन पर्यावरण महासभा द्वारा पारित उस प्रस्ताव के बाद की पाँचवीं वार्ता थी, जिसमें समुद्री पर्यावरण सहित प्लास्टिक प्रदूषण पर एक अन्तरराष्ट्रीय क़ानूनी रूप से बाध्यकारी समझौते का आह्वान किया गया था.

समझौते के लिए तीन मुख्य मुद्दों पर सहमति बनाना आवश्यक होगा: प्लास्टिक उत्पाद, जिनमें रसायनों का मुद्दा शामिल है, टिकाऊ उत्पादन व उपभोग, और वित्त पोषण.

भारत में पुनर्चक्रण के लिए प्लास्टिक की बोतलों का संग्रह.

सदस्य देशों को अब अपने राजनैतिक मतभेदों को दूर करने व प्लास्टिक प्रदूषण समाप्त करने के लिए, प्लास्टिक के पूरे जीवनचक्र को सम्बोधित करने वाले एक अन्तिम समझौता तैयार करने की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की कार्यकारी निदेशक इंगेर ऐंडरसन ने कहा, “यह स्पष्ट है कि दुनिया प्लास्टिक प्रदूषण को ख़त्म करने के लिए अभी भी तत्पर है और इसकी मांग करती है.” 

“हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हम ऐसा साधन तैयार करें जो समस्या को प्रभावी ढंग से हल करे, न कि इसके सम्भावित दबाव से ढह जाए. मैं सभी सदस्य देशों से अपील करती हूँ कि वो इसमें पूरा सहयोग दें.”

Source link

Most Popular

To Top