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हर सात में एक बच्चा व किशोर, जूझ रहा है अपने मानसिक स्वास्थ्य से

हर सात में एक बच्चा व किशोर, जूझ रहा है अपने मानसिक स्वास्थ्य से

एक अनुमान के अनुसार, एक-तिहाई से अधिक मामलों में मानसिक स्वास्थ्य से जुड़ी समस्या 14 वर्ष से पहले उभरती हैं. 50 फ़ीसदी मामलों में यह 18 वर्ष से पहले सामने आती हैं.

यह रिपोर्ट, ‘विश्व मानसिक स्वास्थ्य दिवस‘ से ठीक पहले प्रकाशित की गई है, जिसे हर वर्ष 10 अक्टूबर को मनाया जाता है.

यूएन विशेषज्ञों ने बच्चों और किशोरों के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं में रूपान्तरकारी बदलावों के लिए समर्थन सुनिश्चित करने का आग्रह किया है.

उनका मानना है कि समय रहते, जल्द से जल्द कार्रवाई बेहद अहम है ताकि बच्चों और युवजन को उनमें निहित सम्भावनाओं को पूर्ण रूप से साकार करने में मदद दी जा सके.

सेवाओं की सुलभता में कमी

मानसिक स्वास्थ्य की चुनौती से निपटने के लिए ठोस क़दम उठाने के संकल्प के बावजूद, इन सेवाओं की उपलब्धता मोटे तौर पर सीमित है.

मानसिक स्वास्थ्य से जुड़े लक्षणों से जूझ रहे अधिकाँश युवाओं के लिए, देखभाल सेवाओं तक पहुँच मुश्किल होती है. इसकी वजह व्यवस्थागत अवरोध, जैसेकि सेवाओं की कम उपलब्धता, ऊँची क़ीमत और ऐसी मदद मांगने में कथित कलंक की सामाजिक धारणा है.

इसके समानान्तर, विश्व भर में इन सेवाओं के लिए सार्वजनिक निवेश और मानव संसाधन पर्याप्त स्तर पर मौजूद नहीं हैं, विशेष रूप से बच्चों और किशोर आबादी के लिए. निम्न- और मध्य-आय वाले देशों में ये हालात पहले से ही ख़राब हैं.

विश्व स्वास्थ्य संगठन में मानसिक स्वास्थ्य मामलों के लिए निदेशक डेवोरा केस्टेल ने बताया कि हमें तुरन्त क़दम उठाने होंगे, ताकि तथ्यों पर आधारित और आयु ज़रूरतों के अनुसार, सभी को स्वास्थ्य समर्थन के दायरे में लाया जा सके.

“हर देश, चाहे वहाँ जैसे भी हालात हों, अपने बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य में बेहतरी लाने के लिए ठोस उपाय अपना सकता है.”

समुदाय-आधारित मॉडल

रिपोर्ट में ज़ोर देकर कहा गया है कि बच्चों व किशोरों में मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं को समर्थन देने के लिए सामूहिक रूप से प्रयास किए जाने होंगे.

इसके लिए कोई एक सर्वोत्तम मॉडल तो नहीं पेश किया गया है, मगर दुनिया भर से ऐसे उदाहरण साझा किए गए हैं, जिनसे विभिन्न सन्दर्भों में कारगर उपायों को अपनाया जा सकता है.

संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF) में वरिष्ठ अधिकारी फ़ौज़िया सिद्द्क़ी ने बताया कि मानसिक स्वास्थ्य और बच्चों, किशोरों और उनके परिवारों का कल्याण, अलग-थलग होकर नहीं सम्भाला जा सकता है. 

“हमें स्वास्थ्य, शिक्षा, सामाजिक संरक्षा और समुदाय आधारित व्यवस्था का निर्माण करना होगा, ताकि युवाओं के लिए मानसिक स्वास्थ्य सेवाओं का एक व्यापक नैटवर्क तैयार हो सके.”

संस्थागत देखभाल पर विराम लगे

रिपोर्ट में उन लाखों बच्चों की ओर भी ध्यान आकृष्ट किया गया है, जोकि मानसिक स्वास्थ्य अवस्था में जीवन गुज़ार रहे हैं, और अपने परिवारों के बावजूद किसी संस्थान में भर्ती हैं.

यूएन विशेषज्ञों का मानना है कि ये तौर-तरीक़े उनके मानवाधिकारों का उल्लंघन हैं और इससे स्वास्थ्य व सामाजिक तौर पर ख़राब नतीजे सामने आते हैं. 

रिपोर्ट के अनुसार, चरणबद्ध ढंग से संस्थागत देखभाल के मॉडल को ख़त्म करना होगा और समुदाय-आधारित सेवाओं को अपनाना होगा, ताकि बच्चे अपने परिवारों व समुदायों के साथ फल-फूल सकें. इससे उनकी शिक्षा, सामाजिक सम्बन्धों व समग्र विकास में मदद मिल सकेगी.

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