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‘हम ग़ाज़ा के लोगों को बेसहारा नहीं छोड़ सकते’: UNRWA के समर्थन में यूएन एजेंसियों की अपील

संयुक्त राष्ट्र सहायता एजेंसियों के समूह का नेतृत्व करने वाली, अन्तर-एजेंसी स्थाई समिति (IASC) ने कहा है कि फ़लस्तीनी शरणार्थियों के लिए यूएन सहायता एजेंसी – UNRWA के कुछ कर्मचारियों पर 7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास द्वारा किए गए हमले में संलिप्त होने के “भयानक” आरोपों के बावजूद, “हमें पूरे संगठन को ज़रूरतमन्द लोगों की सेवा करने के अपने जनादेश को पूरा करने से नहीं रोकना चाहिए.”

क्षेत्रीय संकट

संयुक्त राष्ट्र के आपातकालीन राहत प्रमुख, मार्टिन ग्रिफ़िथ्स की अध्यक्षता वाले IASC पैनल ने चेतावनी दी, “UNRWA की वित्त मदद रोकने से, ग़ाज़ा में मानवीय व्यवस्था ध्वस्त हो जाएगी, जिसके फ़लस्तीनी क्षेत्र समेत सम्पूर्ण इलाक़े में दूरगामी मानवीय एवं मानवाधिकार परिणाम होंगे.” 

IASC ने कहा कि फ़लस्तीनी चरमपंथियों द्वारा इसराइली समुदायों के लगभग 1,200 लोगों की हत्या करने और 250 से अधिक अन्यों को बन्धक बनाने के बाद, इसराइली बमबारी व ज़मीनी आक्रमण के बाद, सैकड़ों-हज़ारों लोग बेघर हो गए हैं और “भुखमरी के कगार पर” हैं. 

ऐतिहासिक भूमिका

UNRWA – ग़ाज़ा स्थित सबसे बड़ी सहायता एजेंसी है, जिसने 1949 से शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, यह संस्था, ग़ाज़ा पट्टी में बीस लाख से अधिक लोगों को जीवनरक्षक सहायता प्रदान करती है.

यूएन एजेंसी के कुल 30 हज़ार में से 12 कर्मचारियों पर, 7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास द्वारा किए गए हमले में संलिप्त होने के आरोप सामने आने के बाद, अनेक दानदाता देशों ने यूएन एजेंसी को वित्तीय सहायता रोकने की घोषणा की है, जिससे उसका भविष्य ख़तरे में पड़ गया है.

जाँच आरम्भ

IASC प्रमुखों ने कहा कि संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में सर्वोच्च जाँच निकाय – आन्तरिक निरीक्षण सेवाओं के कार्यालय (OIOS) द्वारा पहले से ही एक विस्तृत एवं आपात जाँच चल रही है. इसके साथ-साथ, UNRWA ने एक स्वतंत्र समीक्षा की भी घोषणा की है.

IASC के वक्तव्य में कहा गया, “विभिन्न सदस्य देशों द्वारा UNRWA के लिए वित्तीय सहायता रोकने के फ़ैसले के, ग़ाज़ा के लोगों के लिए विनाशकारी परिणाम होंगे. किसी अन्य इकाई के पास उस पैमाने पर सहायता देने की क्षमता नहीं है, जिसकी ग़ाज़ा के 22 लाख लोगों को तत्काल आवश्यकता है.”

मानवीय सहायता कार्रवाई के अपने नवीनतम अपडेट में, संयुक्त राष्ट्र सहायता समन्वय कार्यालय, OCHA ने कहा कि स्वास्थ्य अधिकारियों के अनुसार, ग़ाज़ा में “तेज़” इसराइली बमबारी शुरू होने के बाद से अब तक, मृतक संख्या लगभग 26 हज़ार 751 हो गई है.

मंगलवार देर रात OCHA से मिली ख़बरों के मुताबिक़, दक्षिणी शहर ख़ान यूनिस में “ख़ासतौर पर तीव्र” संघर्ष जारी है. नासिर और अल अमल अस्पतालों के पास भारी लड़ाई की सूचना है, और फ़लस्तीनियों के दक्षिणी शहर रफ़ाह भागकर जाने खबरें हैं, जहाँ पहले ही ख़चाखच भरा है.”

OCHA ने बताया कि ग़ाज़ा के अधिकाँश हिस्सों में इसराइली बलों और फ़लस्तीनी सशस्त्र गुटों के बीच ज़मीनी लड़ाई व झड़पें भी दर्ज की गईं हैं. 

सोमवार व मंगलवार को पश्चिमी ग़ाज़ा शहर के आस-पास के इलाक़ों में निकासी के नए आदेश जारी किए गए, जिनमें ऐश शती शरणार्थी शिविर, रिमल ऐश शामाली और अल जनुबी, सबरा, ऐश शेख ‘अजलिन, तथा तेल अल हवा शामिल हैं.

OCHA ने बताया, “यह नया आदेश, 12.43 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र के लिए जारी किया गया है…यह क्षेत्र 7 अक्टूबर से पहले लगभग 3 लाख फ़लस्तीनियों का घर था और उसके बाद, अनुमानित 59 आश्रय स्थलों में लगभग 88 हज़ार आन्तरिक रूप से विस्थापित लोगों ((IDPs) ने शरण ली हुई है.”

आश्रयों के लिए जगह की कमी

इसराइली सेना द्वारा 1 दिसम्बर को शुरू हुए सामूहिक निकासी के आदेश, कुल 158 वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल कवर करते हैं, जो पूरे ग़ाज़ा पट्टी का 41 प्रतिशत क्षेत्र होगा. 

संयुक्त राष्ट्र सहायता समन्वय कार्यालय के अनुसार, “इस क्षेत्र में 7 अक्टूबर से पहले 13 लाख 80 हज़ार फ़लस्तीनी रहते थे और बाद में,  यहाँ स्थित 161 आश्रय स्थलों में अनुमानित 7 लाख 750 आन्तरिक विस्थापितों को आश्रय दिया गया था.”

इसराइली सेना द्वारा 30 जनवरी तक, 218 इसराइली सैनिकों के मारे जाने और 1,283 के घायल होने की पुष्टि की गई है.

OCHA की रिपोर्ट के अनुसार, पिछले सप्ताह भी ख़ान यूनिस में एक चौकी पर इसराइली सेना द्वारा “बड़ी संख्या में फ़लस्तीनी पुरुषों” को हिरासत में लिया गया था, “उनमें से कई के जाँघिये तक उतार दिए गए, और फिर आँखों पर पट्टी बांधकर कहीं ले जाया गया.”

संयुक्त राष्ट्र सहायता समन्वय कार्यालय ने बताया कि “सहमति न देने व प्रतिबन्ध लगाने की प्रवृत्ति” के कारण उत्तरी और मध्य ग़ाज़ा में संवेदनशील आबादी पहुँच से परे होती जा रही है. “इसके लिए मुख्यत:, इसराइली चौकियों पर या उनसे पहले, मानवीय सहायता क़ाफ़िलों के लिए अत्यधिक देरी और मध्य ग़ाज़ा में बढ़ता संघर्ष ज़िम्मेदार है. 

मानवीय राहत कर्मियों और स्थलों की सुरक्षा भी अक्सर ख़तरे में होती है, जिससे समय पर जीवन-रक्षक सहायता पहुँचाने में बाधा आती है और राहत प्रयासों में शामिल लोगों के लिए गम्भीर जोखिम पैदा करती है.

अपील करने वाले 14 IASC हस्ताक्षरकर्ता इस प्रकार हैं:

  • मार्टिन ग्रिफ़िथ्स, आपातकालीन राहत समन्वयक और मानवीय मामलों के अवर महासचिव (OCHA)
  • जेन बैकहर्स्ट, अध्यक्ष, ICVA  (क्रिश्चियन एड)
  • जेमी मुन्न, कार्यकारी निदेशक, स्वैच्छिक एजेंसियों की अन्तरराष्ट्रीय परिषद (ICVA )
  • एमी ई. पोप, महानिदेशक, अन्तरराष्ट्रीय प्रवासन संगठन (IOM)
  • वोल्कर टर्क, संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त (OHCHR)•
  •  पाउला गैविरिया बेटानकुर, आन्तरिक रूप से विस्थापित व्यक्तियों के मानवाधिकार पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष रेपोर्टेयर (SR on HR of IDPs) 
  • अख़िम श्टाइनर, प्रशासक, संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP)
  • नतालिया कनेम, कार्यकारी निदेशक, संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (UNFPA)
  • फ़िलिपो ग्रैंडी, संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी उच्चायुक्त (UNHCR)• माइकल मलिनार, कार्यकारी निदेशक ए.आई., संयुक्त राष्ट्र मानव निपटान कार्यक्रम (UN-Habitat)
  • कैथरीन रसैल, कार्यकारी निदेशक, संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF)
  • सीमा बाहौस, अवर महासचिव और कार्यकारी निदेशक, संयुक्त राष्ट्र महिला संस्था (UN Women) 
  • सिंडी मैक्केन, कार्यकारी निदेशक, विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP)
  • टैड्रॉस एडहेनॉम घेबरेयेसस , महानिदेशक, विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO)

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