यूएन एजेंसी का अनुमान है कि वर्ष 2023 के अन्त तक, सूडान के पाँच पड़ोसी देशों में सहायता व संरक्षण की तलाश में आने वाले लोगों की संख्या 18 लाख के आँकड़े को पार सकती है.
सूडान से बड़ी संख्या में लोग मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, चाड, मिस्र, इथियोपिया और सूडान पहुँच रहे हैं, जहाँ यह संकट शुरू होने से पहले से ही लाखों विस्थापित रह रहे थे.
मध्य-अप्रैल में परस्पर विरोधी सैन्य गुटों के बीच हिंसक टकराव के साथ सूडान में यह संकट शुरू हुआ, जिसके कारण बड़ी संख्या में लोग विस्थापित होने के लिए मजबूर हुए हैं.
मौजूदा घटनाक्रम की पृष्ठभूमि में, लड़ाई से बचने के लिए देश छोड़कर जाने वाले लोगों की संख्या का अनुमान लगातार बढ़ा है.
सूडान में हालात पर यूएन के क्षेत्रीय शरणार्थी समन्वयक ममादू डिएन बाल्डे ने बताया कि इस संकट से मानवीय सहायता की तात्कालिक मांग उत्पन्न हुई है.
उन्होंने कहा कि लोग हताश परिस्थितियों में दूरदराज़ के सीमावर्ती इलाक़ों में पहुँच रहे हैं, जहाँ उनके पास अपर्याप्त सेवा, लचर बुनियादी ढाँचा और सीमित सहायता ही सुलभ है.
“इस जवाबी राहत अभियान में जो साझेदार सक्रिय हैं, वे वहाँ पहुँ रहे लोगों और उनके मेज़बानों को समर्थन देने के लिए हरसम्भव प्रयास कर रहे हैं, लेकिन दानदाताओं के पर्याप्त संसाधनों के बिना उनके प्रयासों अपर्याप्त ही साबित होंगे.”
बताया गया है कि मई 2023 में इस संकट के मद्देनज़र जिस अनुमान को ध्यान में रखते हुए सहायता की धनराशि की अपील की गई थी, नवीनतम अपील उसकी दोगुनी है.
सूडान के लिए आपात क्षेत्रीय शरणार्थीय सहायता योजना को मई 2023 में पेश किया गया था, जिसके बाद जून और फिर अगस्त महीनों में उसमें बदलाव किए गए, जोकि मानवीय संकट के बढ़ते दायरे को दर्शाता है.
बढ़ता विस्थापन, बढ़ती ज़रूरतें
यूएन शरणार्थी एजेंसी के अनुसार, 10 लाख से अधिक शरणार्थी, वापिस लौटने वाले लोग और अन्य देशों के नागरिक पहले ही देश छोड़कर जा चुके हैं.
मानवीय राहत एजेंसियों को तत्काल भोजन, जल, आश्रय, स्वास्थ्य सेवाओं, नक़दी सहायता, संरक्षण समेत अन्य अति-आवश्यक सेवाओं को जुटाने की दरकार है.
इसके अलावा, शरण की तलाश में पहुँचने वाले लोग अनेक स्वास्थ्य समस्याओं से भी जूझ रहे हैं. उनमें कुपोषण की ऊँची दर है और ख़सरा व हैज़ा समेत अन्य बीमारियों के प्रकोप का सामना करना पड़ रहा है, जिनकी वजह से मौतें हो रही हैं.
यूएन के वरिष्ठ अधिकारी ममादू डिएन बाल्डे ने बीमारियों से बच्चों की मौतें होने की रिपोर्टो पर दुख प्रकट करते हुए कहा कि साझेदार संगठनों के पास पर्याप्त मात्रा में संसाधनों की स्थिति में इन मौतों को टाला जा सकता था.
इसके मद्देनज़र, उन्होंने ज़ोर देकर कहा कि अब कार्रवाई को और अधिक नहीं टाला जा सकता है.
बढ़ती ज़रूरतों के बावजूद, दानदाताओं से मांग के अनुरूप पर्याप्त सहायता प्राप्त नहीं हुई है. फ़िलहाल, प्रस्तावित धनराशि में से केवल 19 प्रतिशत का ही प्रबन्ध हो पाया है.