यह पुकार देश में युद्धरत दो सैन्य पक्षों में से एक त्वरित समर्थन बलों (RSF) और उनके सहयोगी मिलिशिया संगठनों द्वारा अल-फ़शर शहर में जल्द ही हमला किए जाने की सम्भावनाओं की ख़बरों के बीच की गई है.
अगर ये हमला हुआ तो उन विस्थापित लाखों लोगों की ज़िन्दगियों के लिए ख़तरा उत्पन्न हो जाएगा जो वहाँ पनाह लिए हुए हैं.
संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय – OHCHR के अनुसार सूडान के सरकारी सशस्त्र बलों (SAF) और आरएसफ़ और इन दोनों पक्षों द्वारा समर्थित मिलिशिया के बीच युद्ध में, 14 अप्रैल के बाद से कम से कम 43 लोग मारे जा चुके हैं, जिनमें महिलाएँ और बच्चे भी हैं.
ये लड़ाई तब शुरू हुई जब आरएसफ़ ने अल-फ़शर में अपनी आक्रामक बढ़त बनानी शुरू की.
यूएन मानवाधिकार कार्यालय ने बताया है कि शहर में आम लोग फँस गए हैं. अल-फ़शर एक मात्र ऐसा शहर बचा है जो अब भी सूडान के सरकारी सशस्त्र बलों के नियंत्रण में है और अगर वहाँ पनाह लिए हुए लोग अगर सुरक्षा की ख़ातिर वहाँ से भागने की कोशिश करते हैं, तो उनके मारे जाने का जोखिम है.
यह गम्भीर स्थिति, दैनिक ज़रूरतों की चीज़ों और व्यावसायिक सामान की भारी क़िल्लत से और भी जटिल हो गई है. साथ ही लड़ाई जारी रहने के कारण मानवीय सहायता आपूर्ति में भी बड़ी बाधाएँ आ रही हैं.
देश संकट में धँसा
सूडान, अप्रैल 2023 में एसएफ़ और आरएसएफ़ के बीच युद्ध भड़कने के कारण संकट में धँस गया है. इस युद्ध में 14 हज़ार से अधिक लोग मारे जा चुके हैं, व अन्य हज़ारों लोग घायल हुए हैं. युद्ध में आत्मा कँपा देने वाली यौन और लैंगिक हिंसा होने की भी ख़बरें आई हैं.
इस युद्ध ने सूडान के भीतर ही 60 लाख से अधिक लोगों को विस्थापित कर दिया है और लगभग 18 लोग सीमा पार करके, पड़ोसी देशों में पनाह लेने के लिए पहुँचे हैं. युद्ध से हुई तबाही के वातावरण में लगभग ढाई करोड़ लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है.
सैनिक जमावड़ा रोकने की पुकार
सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने शनिवार को एक वक्तव्य में, एसएफ़ और आरएसफ़ से, अपनी सेनाओं का जमावड़ा रोकने और तनाव दूर करने के लिए तत्काल क़दम उठाने के साथ-साथ, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून के तहत अपनी ज़िम्मेदारियाँ निभाने का आहवान किया है.
सुरक्षा परिषद के सदस्यों ने युद्धक गतिविधियों को तुरन्त रोकने जाने की भी पुकार लगाई है जिससे एक टिकाऊ युद्धविराम का रास्ता निकल सके.
उन्होंने तमाम सदस्य देशों से, सूडान में ऐसा हस्तक्षेप करने से बचने का भी आग्रह किया है जिससे टकराव व अस्थिरता को और बढ़ावा मिले. इसके उलट एक टिकाऊ शान्ति की ख़ातिर प्रयासों को समर्थन देने का आहवान किया गया है.