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साक्षात्कार: मरूस्थलीकरण व भूमि क्षरण से निपटने में सतत ऊर्जा ‘उम्मीद की किरण’

साक्षात्कार: मरूस्थलीकरण व भूमि क्षरण से निपटने में सतत ऊर्जा ‘उम्मीद की किरण’

इब्राहिम चियाउ: मरुस्थलीकरण, न केवल वैश्विक, बल्कि स्थानीय स्तर पर भी हो रहा है. जब तक हम स्थानीय स्तर पर इससे निपटने के प्रयास नहीं करते, उस पर वैश्विक स्तर पर नियंत्रण करना नामुमकिन होगा. इसके लिए वैश्विक राजनीति व वैश्विक निर्णय लेने होंगे.  

खाद्य सुरक्षा व खाद्य सम्प्रभुता पर इसके प्रभाव असीम हैं.

यह जबरन विस्थापन के लिए भी ज़िम्मेदार होता है. अगर लोग अपनी भूमि पर भोजन उत्पन्न करने में असमर्थ होंगे, तो किसी अन्य स्थान पर पलायन करने के लिए मजबूर हो जाएँगे. साहेल या हेती के उदाहरणों से स्पष्ट होता है कि वैश्विक सुरक्षा के लिए इसके परिणाम गम्भीर हो सकते हैं. जब लोग भूमि या जल तक पहुँच हासिल करने के लिए लड़ते हैं, तो इससे संघर्ष बढ़ते हैं. हम ज़्यादा से ज़्यादा ऐसा होता देख रहे हैं, और इसका समुदायों की एकरूपता व राष्ट्रीय अर्थव्यवस्थाओं पर व्यापक असर पड़ता है.  

अनुमानों के अनुसार, अगर हमने भूमि क्षरण व मरुस्थलीकरण के मुद्दे को पर ध्यान नहीं िया तो कृषि एवं खाद्य उत्पादन के सामने मौजूद चुनौतियों के कारण, वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद (GDP) का 50 फ़ीसदी हिस्सा खो सकते हैं. 

UNCCD के कार्यकारी सचिव, इब्राहिम चियाउ, उज्‍बेकिस्तान के अराल सागर के दौरे पर.

यूएन न्यूज़: वर्तमान में भूमि को पहुँच रही क्षति का रुझान क्या है?

इब्राहिम चियाउ: विश्व भर में भूमि की क्षति हो रही है और भूमि क्षरण से बंजर व कम शुष्क भूमि, दोनों प्रभावित हो रही हैं. लेकिन सूखाग्रस्त भूमि व मरुस्थलीकरण के सम्बन्ध में अनुमान यह है कि ज़मीन का 45 फ़ीसदी भाग मरुस्थलीकरण से प्रभावित हो चुका है. शायद यह कहना ज़्यादा सटीक होगा कि 3.2 अरब लोग यानि विश्व की एक तिहाई आबादी इससे प्रभावित है.

हर साल, सैकड़ों हज़ारों हैक्टेयर भूमि का क्षरण हो रहा है यानि मिस्र के आकार के बराबर भूमि. हमें इस भूमि क्षरण को रोकना होगा और साथ ही 1.5 अरब हैक्टेयर भूमि की पुनर्बहाली भी करनी होगी. 

यूएन न्यूज़: यह सब किस तरह सम्भव होगा?

इब्राहिम चियाउ: खेती की तकनीकों में सुधार करके, खनिजों के हनन व अन्य निष्कर्षण उद्योंगों से भूमि पर होने वाले असर को घटाकर. साथ ही ज़रूरी होगा कि दुनिया के कुछ हिस्सों में लोगों की गतिविधियों के दबाव को कम किया जाए, और अर्थव्यवस्था में विविधता लाई जाए व आय के स्रोतों के लिए अधिक अवसर निर्मित किए जाएँ.  

क्षरण हुई भूमि की पुनर्बहाली में बहुत लागत नहीं लगती, लेकिन बेहतर खाद्य सुरक्षा प्रदान करने और संघर्ष कम करने के लिए यह बेहद ज़रूरी है.

यह केवल स्थानीय समुदायों की ही नहीं, बल्कि सरकारों व निजी क्षेत्र की ज़िम्मेदारी भी है, क्योंकि विश्व में भूमि का सबसे अधिक उपयोग विशाल कृषि द्वारा ही किया जाता है. 

यूएन न्यूज़: क्या हम ख़ासतौर पर छोटे विकासशील देशों के बारे में बात कर रहे हैं?

इब्राहिम चियाउ: नहीं. यह एक ऐसा वैश्विक घटनाक्रम है, जो अमेरिका, भारत, चीन और पाकिस्तान समेत सभी देशों को प्रभावित कर रहा है.

लेकिन छोटे देशों पर इसका असर ज़्यादा गम्भीर है, छोटी अर्थव्यवस्थाएँ, जिनके पास न तो अपने लोगों की सुरक्षा के लिए भंडार हैं, न बीमा प्रणालियाँ. और संवेदनशीलता का स्तर उन समुदायों में सबसे अधिक है, जिनका राजस्व, केवल भूमि से होने वाली आमदनी पर आधारित है.  

बांग्लादेश के तटीय इलाक़ों वनों की बहाली के लिए पहल के तहत वृक्षारोपण किया जा रहा है.

© Global Commission on Adaptation (GCA)

यूएन न्यूज़: मरुस्थलीकरण अकेले नहीं होता. इसका जलवायु संकट से क्या सम्बन्ध है?

इब्राहिम चियाउ: मरुस्थलीकरण, जलवायु संकट को बढ़ाने का काम करता है. जलवायु संकट, मरुस्थलीकरण को बढ़ाता है, क्योंकि चरम मौसम की घटनाओं का भूमि, स्थानीय समुदायों व स्थानीय अर्थव्यवस्थाओं पर गम्भीर असर पड़ता है. 

मतलब यह कि दोनों ही एक-दूसरे को प्रभावित करते हैं, इसलिए ज़रूरी है कि हमारे सामने एक विस्तृत वैश्विक तस्वीर हो. यह सोचना ग़लत है कि जलवायु के मुद्दे को हल किए बिना आप, जैव-विविधता या भूमि की रक्षा कर सकते हैं.  

यूएन न्यूज़: स्थानीय स्तर पर किए गए लघु हस्तक्षेप बहुत महत्वपूर्ण होते हैं. लेकिन लगता है कि बड़ा बदलाव लाने के लिए सरकारों व निजी क्षेत्र की ओर से बड़ा समर्थन आवश्यक होगा?

इब्राहिम चियाउ: हाँ, दिन-प्रतिदिन स्थानीय समुदायों द्वारा किए जा रहे प्रयास बेकार न जाएँ, इसके लिए उन्हें सरकारों से समर्थन की बेहद आवश्यकता है. वो कृषि उद्योग के उन क्षेत्रों में सब्सिडी कम होते देखना चाहते हैं, जिससे पर्यावरण को नुक़सान पहुँच रहा है. कुछ मामलों में, सार्वजनिक धन का उपयोग पर्यावरण को नष्ट करने की बजाय, अर्थव्यवस्थाओं के पुनर्निर्माण के लिए किया जाना चाहिए.  

तो यह ज़रूरी नहीं है कि इसके लिए अधिक धन जुटाया जाए, लेकिन जो धन हमारे पास है उसे बेहतर तरीक़े से इस्तेमाल करने की बहुत आवश्यकता है.

यूएन न्यूज़: लेकिन मुझे लगता है कि कुछ लोग यह भी कहेंगे कि यह तो बहुत ही आशावादी नज़रिया होगा कि सरकारें अपना धन ख़र्च करने के तरीक़ों में बदलाव लाएँ? 

इब्राहिम चियाउ: नहीं, राजनैतिक रूप से यह मायने रखता है. एक करदाता के तौर पर मैं यह जानना चाहूँगा कि मेरा धन कहाँ ख़र्च हो रहा है. अगर वो पर्यावरण को नुक़सान पहुँचाने वाली गतिविधियों में निवेश किया जा रहा है और मेरे बच्चों के लिए पर्यावरण सम्बन्धी चिन्ता उत्पन्न कर रहा है, मेरे समुदायों की आजीविका नष्ट कर रहा है, तो एक मतदाता के रूप में, मैं इस बात पर ज़ोर दूँगा कि मेरी सरकार, मेरा धन उन अन्य क्षेत्रों में निवेश करे, जो आय में बढ़ोत्तरी करे और सततता बढ़ाए.

अपनी भूमि का उपयोग न करने के कारण कई लोग पलायन करने के लिए मजबूर हो गए हैं.

यूएन न्यूज़: आप मॉरेटेनिया से हैं. क्या आपने कभी वास्तविक समय में भूमि क्षरण होते देखा है?

इब्राहिम चियाउ: स्थिति बहुत पीड़ादायक है. मैंने अपने जीवनकाल में भूमि क्षरण देखा है. लेकिन साथ ही मैं बहुत उम्मीद भी बाँधे हुए हूँ क्योंकि मुझे सकारात्मक बदलाव आते दिख रहे हैं. मैं देख सकता हूँ कि युवा पीढ़ी इस बात को लेकर चेतन्य है कि उन्हें इस रुझान को बदलना है.

मैं अधिक से अधिक किसानों व चरवाहों को इसके लिए अपनी ज़िम्मेदारी निभाते देख रहा हूँ. अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से अधिक हस्तक्षेप होते नज़र आ रहे हैं, जिसमें भूमि पुनर्बहाली में निवेश करने वाले मानवीय निवेशक भी शामिल हैं. तो, मुझे एक सक्रियता नज़र आ रही है, जो मुझे यह उम्मीद देते हैं कि अगर हम मिल-जुलकर प्रयास करें तथा एकजुटता से काम करें, तो इस चलन को उलटना सम्भव है. 

इसके लिए मुझे सबसे अधिक आशा ऊर्जा से है, जो विकास व लघु एवं मध्यम उद्योगों के लिए खोई हुई कड़ी की तरह है. सौर व वायु ऊर्जा के दोहन की हमारी क्षमता का परिणाम है कि अब दूरदराज़ के क्षेत्रों को भी ऊर्जा तक पहुँच हासिल है.

और कृषि एवं ऊर्जा को मिलाने से बेहद सकारात्मक परिणाम मिल सकते हैं, क्योंकि आप जल संचयन कर सकते हैं, खाद्य भंडारण कर सकते हैं और भोजन की बर्बादी घटा सकते हैं. साथ ही, भोजन का प्रसंस्करण करके, स्थानीय स्तर पर खाद्य श्रृँखलाओं का निर्माण कर सकते हैं. 

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