यह अपनी तरह की पहली रिपोर्ट है जिसमें बाल तस्करी और युद्ध में फँसे बच्चों के अधिकार हनन के बीच सम्बन्ध की पड़ताल की गई है.
इनमें बच्चों की सैनिकों के तौर पर भर्ती किया जाना, जान से मारना या अपंग बनाना, बलात्कार व अन्य प्रकार की यौन हिंसा को अंजाम देना, अगवा करना, स्कूलों व अस्पतालों पर हमले होना और मानवीय सहायता पहुँचने से रोकना है.
बच्चों व सशस्त्र टकराव पर यूएन महासचिव की विशेष प्रतिनिधि वर्जीनिया गाम्बा के कार्यालय ने यह रिपोर्ट, व्यक्तियों की तस्करी पर यूएन के विशेष रैपोर्टेयर शियोबॉन मुलैली के साथ मिलकर तैयार की है.
इस अध्ययन में मुख्यत: सात देशों या भौगोलिक क्षेत्रों पर ध्यान केन्द्रित किया गया है: कोलम्बिया, अफ़्रीका में लेक चाड बेसिन, लीबिया, म्याँमार, दक्षिण सूडान, सीरिया, यूक्रेन.
नियंत्रण व डराना-धमकाना
सशस्त्र टकरावों के दौरान बाल तस्करी के अनेक रूप सामने आते हैं, जिनमें यौन शोषण व यौन दासता, बाल विवाह, लड़ाई के लिए उनकी भर्ती व अन्य प्रकार के समर्थन के लिए उनका इस्तेमाल करना है.
युद्धरत पक्षों द्वारा इन तौर-तरीक़ों को लम्बे समय से अपनाया जाता रहा है ताकि प्रभावित समुदायों को आंतकित, उन पर नियंत्रण हासिल किया जा सके और हिंसक टकराव को जारी रखा जाए.
बाल अधिकारों के इन गम्भीर हनन मामलों से तस्करी का जोखिम भी बढ़ता है. जैसेकि युद्धकाल में यदि ज़रूरतमन्द आबादी तक मानवीय सहायता को पहुँचने से रोका जाए तो बच्चों की तस्करी की आशंका बढ़ जाती है.
लैंगिक आयाम
रिपोर्ट के अनुसार, बाल तस्करी के जोखिम का बहुत हद तक लैंगिक आयाम भी है. जैसेकि लड़कियों को अक्सर यौन शोषण व बाल विवाह के लिए तस्करी का निशाना बनाया जाता है, वहीं लड़कों को लड़ाई में बाल सैनिकों के रूप में भर्ती किए जाने की आशंका अधिक होती है.
सशस्त्र टकरावों के दौरान उनकी तस्करी देश की सीमाओं के भीतर या फिर सीमा-पार भी की जा सकती है. उदाहरणस्वरूप, सीरिया में एक दशक पहले हिंसक टकराव भड़कने के बाद से अनेक स्थानों पर बाल तस्करी के कई रूप नज़र आए हैं.
इनमें इराक़ में यज़ीदी लड़कियों को अगवा करना, यौन दासता व जबरन विवाह के लिए उन्हें कहीं और ले जाना है. जबकि सीरिया में कई परिवार मजबूरी में अपनी बेटियों का विवाह इस्लामिक स्टेट (आइसिल) के सदस्यों से करने के लिए तैयार हो गए.
बाल तस्करी मामलों के लिए जवाबदेही के अभाव की वजह से दंडमुक्ति की भावना प्रबल है और बाल अधिकार हनन के ये मामले बेरोकटोक जारी हैं.
देशों के लिए अनुशंसाएँ
संयुक्त राष्ट्र के इस अध्ययन में सदस्य देशों के लिए अनेक ठोस सिफ़ारिशें भी प्रस्तुत की गई हैं.
एक सिफ़ारिश में ज़ोर दिया गया है कि तस्करी का शिकार बच्चों को अपराध में सहभागी के तौर पर देखे जाने के बजाय, उन्हें पीड़ित माना जाना होगा. और इसलिए, शुरुआत में ही पीड़ितों की शिनाख़्त करना अहम है.
अन्य सिफ़ारिशों में, बाल तस्करी मामलों की रोकथाम करने, पीड़ितों के लिए लम्बे समय तक संरक्षण सुनिश्चित करने, सभी बच्चों का सार्वभौमिक पंजीकरण करने और राष्ट्रहीनता की स्थिति का उन्मूलन करना है.