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सर्पदंश का दंश: अक्सर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाने वाला स्वास्थ्य संकट

सर्पदंश के अधिकाँश मामले एशिया, अफ़्रीका और लातीनी अमेरिका में स्थित देशों में पाए जाते हैं, विशेष रूप से उष्ण कटिबन्धीय और उप उष्ण कटिबन्धीय जलवायु वाले निम्न- और मध्य-आय देशों में विषैले साँप, सार्वजनिक स्वास्थ्य पर एक बड़ा बोझ हैं.​

एक अनुमान के अनुसार, भारत में साँप के डसने से हर साल 58 हज़ार लोगों की मौत होती है.

ऐसा नहीं है कि साँप के काटने से व्यक्ति की हमेशा मौत ही होती है. अधिकाँश पीड़ितों की जान बचा ली जाती है, मगर हर वर्ष लाखों लोगों को सर्पदंश की वजह से लम्बे समय तक अन्य स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है जिनमें विकलांगता व अपंगता शामिल हैं.

ऋण का बोझ

किसी व्यक्ति को साँप के डस लिए जाने का असर पूरे परिवार पर पड़ सकता है और परिजन निर्धनता का शिकार हो सकते हैं. 

इलाज की ऊँची क़ीमत के अलावा, उनकी आय में होने वाले नुक़सान की वजह से भी ऐसा हो सकता है, विशेष रूप से यदि पीड़ित ही आय का मुख्य स्रोत हो.

बांग्लादेश में कराया गया एक अध्ययन दर्शाता है कि सर्पदंश के 60 प्रतिशत से अधिक पीड़ितों को अपने उपचार के लिए ऋण लेने के लिए मजबूर होना पड़ा.

वहीं, भारत में दो-तिहाई से अधिक पीड़ितों के लिए आरम्भिक उपचार की क़ीमत दो सप्ताह से अधिक की कमाई थी.

50 फ़ीसदी पीड़ितों को अपनी निजी सम्पत्ति, भूमि और मवेशी बेचने या फिर बच्चों की पढ़ाई बीच में ही रोकने के लिए मजबूर होना पड़ा.

अहम तथ्य

हर साल, साँप के डसने के 18 से 27 लाख मामले सामने आते हैं, जिनकी वजह से 81 हज़ार से एक लाख 37 हज़ार तक मौतें होती हैं

अपनी जान गँवाने वाले हर एक व्यक्ति पर, तीन व्यक्तियों को दीर्घकालिक व हमेशा के लिए विकलांगता से जूझना पड़ता है

कृषि कार्य में जुटे श्रमिक और बच्चे सर्वाधिक प्रभावितों में हैं. सभी मामलों में एक तिहाई से अधिक पीड़ितों की आयु 20 वर्ष से कम होती है

भारत में 2000 से 2019 के दौरान, सर्पदंश के कारण 12 लाख लोगों की मौत हो चुकी है, यानि औसतन प्रति वर्ष 58 हज़ार मौतें.

साँप के विष से बचाने के लिए सबसे कारगर उपाय, विश्व के सर्वाधिक प्रभावित क्षेत्रों में पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध नहीं है. उदाहरणस्वरूप, सब-सहारा अफ़्रीका में वार्षिक ज़रूरत का केवल 3 फ़ीसदी ही उपलब्ध है.

WHO की भूमिका

अन्तरराष्ट्रीय सर्पदंश जागरूकता दिवस की शुरुआत 2018 में हुई, जब यह महसूस किया गया कि अक्सर नज़रअन्दाज़ कर दिए जाने वाले इस संकट के प्रति और अधिक जानकारी मिलनी ज़रूरी है.

मगर, इस दिशा में प्रयास या जागरूकता केवल एक दिन तक ही सीमित नहीं है.

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO), सर्पदंश के कारण होने वाली स्वास्थ्य समस्याओं के प्रति जागरुकता प्रसार के लिए प्रतिबद्ध है. 

वर्ष 2017 में, साँप के डसने, उसके विष से होने वाले रोग, envenoming, को उपेक्षा का शिकार उष्णकटिबन्धीय बीमारियों की सूची में डाल दिया गया था.

साँप के डसने से बच्चों के जीवन पर विशेष रूप से जोखिम है.

इसी चुनौती पर पार पाने के लिए, 2018 में विश्व स्वास्थ्य ऐसेम्बली के दौरान एक अहम प्रस्ताव पारित किया गया, जोकि सर्पदंश की रोकथाम व उसके उपचार पर केन्द्रित था.

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी की रणनीति, साँप के डसने से होने वाली मौतों और विकलांगता के मामलों में 2030 तक 50 फ़ीसदी की कमी लाना है, जिसके लिए सदस्य देशों को योजना तैयार करने में मदद की जा रही है.

जलवायु परिवर्तन का असर

विश्व भर में विशेषज्ञों के साथ कार्य करते हुए, WHO ने विषैले साँपों का एक डेटाबेस भी तैयार किया है, जिसमें उनके भौगोलिक फैलाव, उपचार सम्बन्धी दिशानिर्देश और ज़रूरी उत्पादों पर जानकारी दी गई है

यूएन स्वास्थ्य एजेंसी का मानना है कि जलवायु परिवर्तन के असर से, विषैले साँपों की आबादी, उनके फैलाव और मानव आबादी के साथ उनके सम्पर्क पर असर होने की सम्भावना है. 

यानि साँपों की कुछ प्रजातियाँ, नए पर्यावरण में जाने के लिए मजबूर होंगी और स्थानीय आबादी को ऐसे सर्प नज़र आएंगे जो पहले वहाँ नहीं थे.

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