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श्रीलंका: विज्ञान और सामुदायिक भावना के साथ मैन्ग्रोव की बहाली

श्रीलंका: विज्ञान और सामुदायिक भावना के साथ मैन्ग्रोव की बहाली

मैन्ग्रोव को अब फिर से उगाने और पुनर्जीवित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम, सन्तुलन बहाल कर रहा है – और कुछ तटीय गाँवों में नई जान फूँक रहा है.

वायम्बा विश्वविद्यालय की मैन्ग्रोव विशेषज्ञ सेव्वान्दी जयाकोडी कहती हैं, “लोग वापस आ रहे हैं क्योंकि वे देख सकते हैं कि इन क्षेत्रों में [मछली] पकड़ बढ़ रही है, और यह वास्तव में एक अच्छी बात है क्योंकि आप न केवल खोई हुई जैव विविधता वापस ला रहे हैं, बल्कि खोए हुए आजीविकाओं को भी वापस ला रहे हैं.”

संयुक्त राष्ट्र ने हाल ही में, श्रीलंका के मैन्ग्रोव पुनर्बहाली कार्यक्रम को वर्ष 2024 की अपनी विश्व पुनर्बहाली सूची में शामिल किया है. यह पुरस्कार नुमा सूची, प्रकृति को पुनर्जीवित करने के उत्कृष्ट प्रयासों को पहचान देती है.

यह पुरस्कार संयुक्त राष्ट्र से वित्तीय और तकनीकी सहायता का मार्ग खोलता है, और ये संयुक्त राष्ट्र के पारिस्थितिकी तंत्र पुनर्स्थापना दशक का हिस्सा है, जो प्राकृतिक दुनिया के क्षरण को रोकने और उलटने के लिए एक वैश्विक आन्दोलन है.

श्रीलंका के पुबुदूगामा में, एक मैन्ग्रोव पुनर्बहाली स्थल. इस कार्य में देश को यूनेप की मदद मिल रही है.

संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (UNEP) की कार्यकारी निदेशक इन्गेर ऐंडरसन, संयुक्त राष्ट्र दशक का सह-नेतृत्व कर रही हैं और उनका कहना है कि श्रीलंका का, पुनर्स्थापना के प्रति समग्र दृष्टिकोण ऐसा उदाहरण है जिससे अन्य देश प्रेरणा ले सकते हैं.

इन्गेर ऐंडरसन का कहना है, “मैन्ग्रोव पृथ्वी के सबसे उत्पादक पारिस्थितिक तंत्रों में से एक हैं. श्रीलंका की इनके पुनर्स्थापना के प्रति अडिग प्रतिबद्धता, प्रकृति के साथ किए जाने वाले सबसे बेहतर समझौतों में से एक है.”

इन्गेर कहती हैं. “मैन्ग्रोव की रोपाई को बेहतर करने पर देश का निरन्तर काम प्रदर्शित करता है कि पुनर्स्थापना को एक दीर्घकालिक निवेश होना चाहिए.”

प्रथम रक्षा रेखा

दुनिया की 2 अरब हैक्टेयर से अधिक भूमि क्षरण का शिकार है, जो वैश्विक आबादी के आधे हिस्से को प्रभावित करती है और अनगिनत प्रजातियों को ख़तरे में डालती है.

सबसे अधिक दबाव में रहने वाले पारिस्थितिक तंत्रों में से एक मैन्ग्रोव हैं. ये छोटे झाड़ियाँ नुमान पेड़, भूमि और समुद्र की सीमा पर पनपते हैं और बहुत से समुद्र तटों के लिए पहली रक्षा पंक्ति होते हैं. ये तूफ़ानी लहरों, धाराओं, तरंगों और ज्वार से कटाव को कम करते हैं.

इनकी जटिल जड़ प्रणाली उन्हें नर्सरी, भोजन और आश्रय की तलाश में मछलियों व अन्य जीवों के लिए आकर्षक बनाती है.

श्रीलंका के बहुत से तटीय इलाक़ों को, झींगा मछली उत्पादन के खेत बनाने के लिए प्रयोग करने से, मैन्ग्रोव के वजूद को नुक़सान पहुँचा है.

UNEP की एक हालिया रिपोर्ट में पाया गया है कि मैन्ग्रोव में 1,500 से अधिक प्रजातियों का समावेश है, जिनमें से लगभग 15 प्रतिशत प्रजातियाँ संकटग्रस्त हैं, 

वर्ष 2004 में हिन्द महासागर में आई सूनामी ने इस पारिस्थितिकी तंत्र की रक्षा करने की क्षमता को नाटकीय रूप से उजागर किया, जिसमें श्रीलंका में 30 हज़ार से अधिक लोग मारे गए थे.

तटरेखा के कुछ हिस्से सूनामी के प्रति असुरक्षित थे क्योंकि श्रीलंका के लगभग एक तिहाई मैन्ग्रोव को साफ़ (नष्ट) कर दिया गया था, मुख्य रूप से झींगा तालाब और नमक उत्पादन इलाक़े बनाने के लिए.

झींगा पालन तटीय समुदायों में रोज़गार का एक महत्वपूर्ण स्रोत है और देश के लिए निर्यात आय का एक महत्वपूर्ण हिस्सा. मगर अस्थिर प्रथाएँ मछली पालन में प्रदूषण और बीमारियों के संचय का कारण बन सकती हैं और कई झींगा तालाबों को बेसहारा छोड़ दिया गया है.

प्रकृति को पोषण

सूनामी के बाद, श्रीलंका ने मैन्ग्रोव को पुनर्स्थापित करने के लिए एक व्यापक अभियान चलाया. हालाँकि, जब पौधे जीवित नहीं रहे, तो मैन्ग्रोव को फिर से लगाने के बजाय, मौजूदा उनकी बेहतर सुरक्षा के माध्यम से उन्हें प्राकृतिक रूप से पुनर्निर्मित करने की रणनीति अपनाई.

2015 में, श्रीलंका अपने सभी शेष मैन्ग्रोव वनों को क़ानूनी रूप से संरक्षित करने वाला पहला देश बन गया. इसने नष्ट हुई हज़ारों हैक्टेयर भूमि को पुनर्स्थापित करने के लिए एक राष्ट्रीय कार्यक्रम भी शुरू किया और इस बार पुनर्स्थापना की सफलता सुनिश्चित करने के लिए एक विशेषज्ञ समिति भी नियुक्त की.

सेव्वान्दी जयोकोडी, श्रीलंका के वयाम्बा विश्वविद्यालय में एक मैन्ग्रोव वैज्ञानिक हैं, जो मैन्ग्रोव पुनर्बहाली कार्यक्रम में सहायता कर रही हैं.

समुद्र तटीय जिलों में श्रीलंका भर में पुनर्स्थापना परियोजनाएँ चल रही हैं. कुछ स्थानों पर, शोधकर्ताओं ने सम्भावित मैन्ग्रोव पुनर्स्थापना स्थलों की संरचना का मूल्यांकन किया है, जिसमें उनकी मृदा और जल गुणवत्ता शामिल है. यह संरक्षकों को एक विशेष स्थल के लिए सबसे उपयुक्त मैंग्रोव प्रजातियों का चयन करने में मदद करेगा, जिससे मैंग्रोव वनों के पुनर्वास के लिए माहौल बनाया जा सके.

इस प्रक्रिया का उद्देश्य है मैंग्रोव की वृद्धि के मार्ग को साफ करना, जिसमें प्लास्टिक प्रदूषण के दुष्प्रभाव भी शामिल हो सकते हैं, और प्रकृति को अपनी “अद्भुतता का काम करने देना है,” यह उस विशेषज्ञ समिति का नेतृत्व कर रहे जयकोडी कहते हैं.

अनेक लाभ

ऑस्ट्रेलिया, संयुक्त राज्य अमेरिका और ब्रिटेन तथा उत्तरी आयरलैंड की सरकारों सहित और भी अन्य साझीदारों द्वारा समर्थित इस दृष्टिकोण ने, 2015 से श्रीलंका को 500 हैक्टेयर मैन्ग्रोव बहाल करने में पहले ही सहायता की है.

श्रीलंका को, इस अतिरिक्त सहायता के सहारे उम्मीद है कि वह 2030 के अपने लक्ष्य को हासिल कर सकेगा, जिसमें 10 हज़ार हैक्टेयर मैन्ग्रोव बहाल करना शामिल है – जो इसके पूर्व मैन्ग्रोव बहाली का 50 प्रतिशत से अधिक है.

श्रीलंका के अनेक तटीय इलाक़ों में यह पता लगाने के लिए शोध किया जा रहा है कि वहाँ मैन्ग्रोव की रोपाई की जा सकती है या नहीं.

मैन्ग्रोव समुद्र स्तर में वृद्धि से बाढ़ और विनाशकारी चक्रवातों जैसे जलवायु परिवर्तन के बढ़ते प्रभावों से सुरक्षा प्रदान करने के अतिरिक्त बड़ी मात्रा में कार्बन अवशोषित करके, मानव-जनित जलवायु परिवर्तन को सीमित करने में मदद करते हैं. इसके अलावा, मैन्ग्रोव दवा, मछली और अन्य खाद्य पदार्थों का महत्वपूर्ण स्रोत हैं, ख़ासकर ग़रीब समुदायों में.

पूर्वी तट के मुथुपन्थिया शहर के मछुआरे मार्कस टिस्सेरा कहते हैं कि इस पुनर्स्थापना पहल ने बहुत से लोगों की आय में वृद्धि की है. इस पहल ने लोगों को नाव-चालक, गाइड और मज़दूर के रूप में रोज़गार प्रदान किया है और पास की झील में प्रदूषण को कम किया है, जहाँ झींगा, केकड़ा और मछली मिलते हैं.

टिस्सेरा कहते हैं, “इससे काफ़ी फ़ायदा हो रहा है.” उन्हें यह उम्मीद भी है कि स्थानीय पारिस्थितिक तंत्र के पुनर्जीवन से अधिक पर्यटक आकर्षित हो सकते हैं. “ऐसी परियोजना पूरे देश में होनी चाहिए. हमें उम्मीद है कि इससे श्रीलंका और भी अधिक ख़ूबसूरत बन जाएगा.”

पर्यावरण मंत्रालय के सचिव अनिल जसिंघे कहते हैं कि मैन्ग्रोव पुनर्स्थापना अभियान “श्रीलंका की बेहतरी, सामाजिक स्वास्थ्य और आर्थिक समृद्धि में निवेश कर रही है.”

वे कहते हैं कि यह प्रयास इस बात को भी स्वीकार करता है “कि सभी जीवित प्राणी, न कि केवल मनुष्य, इस अद्भुत पारिस्थितिकी तंत्र को साझा करते हैं.”

यह लेख पहले यहाँ प्रकाशित हुआ है.

स्थानीय लोगों का कहना है कि मैन्ग्रोव की पुनर्बहाली के बाद, मछलियों की तादाद भी बढ़ गई है जिससे मछुआरों के जालों में अधिक मछलियाँ आने लगी हैं.

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