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वृद्धि या गिरावट? विश्व आबादी के नवीनतम रुझानों पर एक नज़र

वृद्धि या गिरावट? विश्व आबादी के नवीनतम रुझानों पर एक नज़र

विश्व आबादी उसके बाद घटकर 10.2 अरब पर पहुँचेगी, जोकि एक दशक पहले के स्तर से 70 करोड़ कम होगी. मगर, वैश्विक आबादी में मौजूदा बदलाव असमान है और जनसांख्यिकी सम्बन्धी तस्वीर अब भी उभर रही है.

 कुछ स्थानों पर जनसंख्या में तेज़ गति से वृद्धि हो रही है जबकि अन्य देशों में आबादी बुज़ुर्ग होती जा रही है.

कम प्रजनन दर

विश्व की कुल प्रजनन दर में गिरावट आ रही है और महिलाएँ, 1990 के दौर की तुलना में अब औसतन एक बच्चा कम पैदा कर रही हैं.

50 फ़ीसदी से अधिक देशों व क्षेत्रों में, प्रति महिला जीवित बच्चों को जन्म देने की औसत संख्या 2.1 से कम है, जोकि आबादी को उसी स्तर पर बनाए रखने के लिए ज़रूरी है.

क़रीब 20 फ़ीसदी देशों में, प्रजनन दर बेहद कम स्तर पर पहुँच गई है, और महिलाएँ अपने जीवनकाल में 1.4 जीवित बच्चों को जन्म दे रही हैं. इनमें चीन, इटली, कोरिया गणराज्य और स्पेन समेत अन्य देश हैं.

रिपोर्ट के अनुसार, 2024 तक, आबादी का आकार कम से कम 63 देशों व क्षेत्रों में अपने उच्चतम स्तर को छू चुका है, जिनमें जर्मनी, जापान, रूसी महासंघ सहित अन्य देश हैं.

इस समूह की कुल आबादी, अगले तीन दशकों में 14 प्रतिशत तक घट सकती है. वैश्विक आबादी की औसत आयु भी बढ़ रही है. 

वर्ष 2070 के दशक के अन्तिम वर्षों तक, 65 वर्ष या उससे वृद्ध व्यक्तियों की संख्या, 18 वर्ष से अधिक आयु वाले व्यक्तियों की संख्या को पार कर सकती है.

आबादी की तेज़ रफ़्तार

जनसंख्या में धीमी गति से बढ़ोत्तरी या फिर आबादी में गिरावट मुख्य रूप से उच्च आय वाले देशों में दर्ज की जा रही है. वहीं, निम्न आय, और निम्नतर-मध्य आय वाले देशों में तेज़ गति से आबादी बढ़ने की सम्भावना है.

इनमें अंगोला, मध्य अफ़्रीकी गणराज्य, काँगो लोकतांत्रिक गणराज्य, निजेर और सोमालिया में आबादी के तेज़ रफ़्तार से बढ़ने का अनुमान है. 2024 से 2054 के दौरान उनकी मौजूदा आबादी, दोगुनी हो सकती है.

जनसंख्या वृद्धि के साथ ही, संसाधनों की मांग भी बढ़ेगी, विशेष रूप से सब-सहारा अफ़्रीका व दक्षिण एशिया क्षेत्र में स्थित देशों में. कमज़ोर शहरीकरण प्रबन्धन के कारण इसका पर्यावरणीय असर भी गहरा होगा.

जलवायु परिवर्तन पहले से ही एक बड़ी चुनौती है, और यह इनमें से कुछ देशों को बड़े स्तर पर प्रभावित करेगी. विशेष रूप से उन देशों में जोकि कृषि पर निर्भर हैं और खाद्य सुरक्षा एक समस्या है.

भारत, इंडोनेशिया, नाइजीरिया, पाकिस्तान, अमेरिका समेत अन्य देशों में जनसंख्या के 2054 तक बढ़ने की सम्भावना है और यह इस सदी के उत्तरार्ध में अपने उच्चतम स्तर पर पहुँच सकती है.

आबादी सम्बन्धी डेटा

पिछले कुछ दशकों में जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़ों के ज़रिये समाजों की विविधता को बेहतर ढंग से समझने और यौन व प्रजनन स्वास्थ्य को सुधारने में सहायता मिली है. 

इसके मद्देनज़र, यूएन महासचिव एंतोनियो गुटेरेश ने 11 जुलाई, ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ के अवसर पर डेटा संग्रहण में निवेश पर बल दिया है ताकि मौजूदा समस्याओं के अनुरूप समाधानों को तैयार किया जा सके.

विश्व जनसंख्या दिवस का उद्देश्य, आबादी से जुड़े मुद्दों पर ध्यान केन्द्रित करना और समस्याओं से निपटने के लिए तत्काल उपाय करना है. 11 जुलाई 1990 को पहली बार यह दिवस 90 से अधिक देशों में मनाया गया था और अब यह हर वर्ष जागरूकता प्रसार के लिए आयोजित किया जाता है.

पिछले तीन दशकों में, विश्व भर में जनसंख्या सम्बन्धी आँकड़ों को जुटाने और उनके विश्लेषण में बड़ी प्रगति हुई है. इसकी मदद से, आयु, जातीयता, लिंग और अन्य आधार पर हमारे समाजों की विविधता को बेहतर ढंग से समझा जा सकता है.

इस प्रगति से स्वास्थ्य देखभाल सेवाएँ सुनिश्चित करने, यौन व प्रजनन स्वास्थ्य को बेहतर बनाने में भी सहायता मिली है और विशेषकर महिलाओं के पास पहले से कहीं अधिक अधिकार व चयन हैं.

इंडोनेशिया में एक महिला को परिवार नियोजन उपायों के बारे में जानकारी दी जा रही है.

© UNICEF/Shehzad Noorani

इंडोनेशिया में एक महिला को परिवार नियोजन उपायों के बारे में जानकारी दी जा रही है.

असमान प्रगति

संयुक्त राष्ट्र के शीर्षतम अधिकारी एंतोनियो गुटेरेश ने अब तक दर्ज की गई प्रगति को रेखांकित करते हुए कहा कि आज पहले से कहीं अधिक संख्या में महिलाओं के पास आधुनिक गर्भनिरोधक उपाय हैं.

वर्ष 2000 के बाद से अब तक, मातृत्व मौतों में 34 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई है. महिलाओं द्वारा संचालित मुहिम और नागरिक समाज के प्रयासों के फलस्वरूप ये बड़े बदलाव सम्भव हो पाए हैं. मगर, उन्होंने सचेत किया कि यह प्रगति अस्थिर और असमान है.

“यह क्षोभजनक है कि 21वीं सदी में, हर दिन क़रीब 800 महिलाओं की गर्भावस्था और बच्चों को जन्म देते समय मौत हो जाती है, जिनमें से अधिकाँश विकासशील देशों में हैं.”

कुछ स्थानों पर महिला जननांग विकृति जैसी समस्याओं से निपटने के लिए मिली क़ानूनी प्रगति को धक्का पहुँचने का जोखिम है.

यूएन प्रमुख ने ध्यान दिलाया कि इस वर्ष यह दिवस, ‘जनसंख्या एवं विकास पर अन्तरराष्ट्रीय सम्मेलन’ (International Conference on Population and Development /ICPD) के कार्रवाई कार्यक्रम की 30वीं वर्षगाँठ भी है.

सतत विकास की बुनियाद

ICPD कार्रवाई के केन्द्र में, महिलाओं के यौन एवं प्रजनन स्वास्थ्य और प्रजनन सम्बन्धी अधिकारों को रखा गया था, जिसे सतत विकास की आधारशिला माना गया है.

महासचिव गुटेरेश ने कहा कि इस वर्ष ‘विश्व जनसंख्या दिवस’ की थीम हमें याद दिलाती है कि समस्याओं को समझने, उनके अनुरूप समाधान तैयार करने और प्रगति को आगे बढ़ाने के लिए डेटा संग्रहण में निवेश किया जाना होगा.

इस क्रम में, उन्होंने देशों से आग्रह किया कि इस वर्ष भविष्य की शिखर बैठक के ज़रिये वित्तीय संसाधनों का प्रबन्ध करना होगा, ताकि सतत विकास को बढ़ावा दिया जा सके.

उन्होंने कहा कि “इसे एक ऐसा वर्ष बनाना होगा, जब हम प्रयासों व निवेश में तेज़ी लाने का संकल्प जताएँ ताकि इसके वादों को वास्तविकता में साकार किया जा सके.”

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