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विश्व नेताओं से, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में ‘अत्याचारों’ का अन्त किए जाने की पुकार

विश्व नेताओं से, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े में ‘अत्याचारों’ का अन्त किए जाने की पुकार

यूएन प्रणाली में अन्तर-एजेंसी स्थाई समिति ने सोमवार को इस सिलसिले में अपना एक वक्तव्य जारी किया है, जिस पर यूएन मानवतावादी कार्यालय (OCHA), खाद्य एवं कृषि संगठन (FAO), विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP), संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (UNICEF), संयुक्त राष्ट्र विकास कार्यक्रम (UNDP), महिला सशक्तिकरण के लिए यूएन संस्थान (UN Women) समेत कई अन्य एजेंसियों, और केयर इंटरनेशनल, सेव द चिल्ड्रन समेत साझेदार संगठनों के शीर्ष अधिकारियों ने हस्ताक्षर किए हैं.

अन्तर-एजेंसी स्थाई समिति (Inter-Agency Standing Committee/IASC) संयुक्त राष्ट्र प्रणाली में मानवीय सहायता प्रयासों में समन्वय के लिए उच्चतम फ़ोरम है, जिसमें 19 संगठनों के प्रमुख शामिल हैं.

शीर्ष अधिकारियों ने 7 अक्टूबर 2023 को इसराइल पर हुए हमलों और उसके बाद ग़ाज़ा पट्टी में पिछले 11 महीनों में मासूम लोगों की मौतों पर शोक व्यक्त किया गया है. साथ ही, तुरन्त, बिना किसी शर्त के युद्धविराम लागू किए जाने की अपील की गई है.

यूएन एजेंसियों व साझेदार संगठनों के प्रमुखों ने कहा कि ग़ाज़ा में बन्धक बना कर रखे गए लोगों को तुरन्त, बिना किसी शर्त के रिहा किया जाना होगा, और ज़रूरतमन्दों तक मानवीय सहायता पहुँचाने के मार्ग को खुला रखना होगा.

ग़ाज़ा में अब भी 100 से अधिक बन्धक हैं, और जिन्हें पहले रिहा किया गया है, उन्होंने बुरे बर्ताव, यौन हिंसा के आरोप लगाए हैं.

उन्होंने ध्यान दिलाया कि ग़ाज़ा पट्टी में विशाल ज़रूरतों को वहाँ जारी हिंसा के बीच पूरा नहीं किया जा सकता है. स्थानीय स्वास्थ्य मंत्रालय के अनुसार, हिंसक टकराव में 41 हज़ार से अधिक फ़लस्तीनियों की जान गई है, जिनमें अधिकाँश आम नागरिक, महिलाएँ, बच्चे व वृद्धजन हैं, और 95 हज़ार से अधिक लोग घायल हुए हैं.

विकट हालात

एक अनुमान के अनुसार, ग़ाज़ा में गम्भीर रूप से घायल हुए क़रीब 22 हज़ार से अधिक लोगों को लम्बे समय तक पुनर्वास और देखभाल की आवश्यकता होगी.

फ़िलहाल, 20 लाख से अधिक लोग रोज़मर्रा के जीवन में ज़रूरी सामग्री, भोजन, जल, साफ़-सफ़ाई, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा और ईंधन के बिना जीवन गुज़ारने के लिए मजबूर हैं.

बड़ी संख्या में परिवार, बार-बार जबरन विस्थापन के लिए मजबूर हुए हैं, और एक ऐसे माहौल में जीवन बिता रहे हैं, जहाँ कोई भी स्थान सुरक्षित नहीं है. कुछ हिस्सों में अकाल के हालात की आशंका बरक़रार है, जबकि स्वास्थ्य सेवाएँ दरक चुकी हैं. अब तक स्वास्थ्य देखभाल केन्द्रों पर 500 से अधिक हमले दर्ज किए गए हैं.

इन हालात में मानवीय सहायता केन्द्रों को अनेक बार दूसरे स्थानों पर ले जाने के लिए मजबूर होना पड़ा है. मानवीय सहायता क़ाफ़िलों पर कई बार गोलियाँ चलाई गई हैं, उन्हें अनुमति देने में देरी हुई या फिर उसे नकारा गया है. बड़ी संख्या मे मानवीय सहायताकर्मियों की जान गई है.

वहीं, अन्तर-एजेंसी के वक्तव्य में चिन्ता जताई गई है कि पश्चिमी तट में भी ग़ैरआनुपातिक ढंग से अनावश्यक बल प्रयोग किया जा रहा है, और उसके समानान्तर, बस्तियों के बाशिन्दों द्वारा हिंसक घटनाओं, आवास ध्वस्तीकरण, जबरन विस्थापन और आवाजाही पर पाबन्दियाँ जारी हैं.

मानवतावादी क़ानून का सम्मान

यूएन एजेंसियों और साझेदार संगठनों ने कहा कि इन हालात में सभी फ़लस्तीनियों के भविष्य के लिए ख़तरा है और हालात को बहाल कर पाना अभी सम्भव नहीं है.

अन्तर-एजेंसी अधिकारियों ने क्षोभ जताया है कि अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून का मखौल उड़ाया जा रहा है. “आम नागरिकों की रक्षा की जानी होगी और उनकी आवश्यक ज़रूरतों को पूरा करना होगा.”

साथ ही, अन्तरराष्ट्रीय मानवतावादी क़ानून और मानवाधिकार क़ानून के गम्भीर उल्लंघन मामलों में जवाबदेही तय की जानी होगी.

अन्तर-एजेंसी ने विश्व नेताओं से आग्रह किया है कि उन्हें अपने प्रभाव का इस्तेमाल करते हुए, अन्तरराष्ट्रीय क़ानून और अन्तरराष्ट्रीय न्यायालय के आदेशों के प्रति सम्मान सुनिश्चित करना होगा. उनके अनुसार, दंडमुक्ति की भावना को हटाने के लिए कूटनैतिक दबाव और सहयोग की आवश्यकता होगी.

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