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लेबनान संकट: इसराइली हमलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच की मांग

लेबनान संकट: इसराइली हमलों की स्वतंत्र और निष्पक्ष जाँच की मांग

यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय – OHCHR के प्रवक्ता जैरेमी लॉरेंस ने कहा है, “हमें ये ख़बरें मिल रही हैं कि जो 22 लोग मारे गए हैं उनमें 12 महिलाएँ और 2 बच्चे थे.”

प्रवक्ता ने कहा, ”जहाँ हमला किया गया, वो एक चार मंज़िला इमारत थी. इन तथ्यों को ध्यान में रखते हुए हमें, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का सम्मान किए जाने के बारे में असली चिन्ताएँ हैं. साथ ही युद्ध के नियों और लड़ाकों व निहत्थे लोगों में भेद किए जाने, और बल प्रयोग के अनुपात के सिद्धान्तों के बारे में भी चिन्ताएँ हैं.”

“इस मामले में यूएन मानवाधिकार उच्चायुक्त कार्यालय, पूरी घटनना की एक त्वरित, स्वतंत्र और वृहद जाँच की मांग करता है.”

संयुक्त राष्ट्र की शरणार्थी एजेंसी – UNHCR ने बताया है कि जब से सितम्बर में इसराइली सेना ने लेबनान में हिज़बुल्लाह के लड़ाकों के ख़िलाफ़ युद्ध को तेज़ किया है, तब से लेबनान में मारे गए लोगों की संख्या लगभग 2,200 हो गई है.

हिज़बुल्लाह ने भी इसराइल में रॉकेट दागना बन्द नहीं किया है.

मध्य पूर्व के लिए UNHCR के निदेशक रेमा जेमस इमसीस का कहना है कि हालात और भी बदतर होने के साथ ही, हताहतों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.

UNHCR की अधिकारी रेमा ने जिनीवा में पत्रकारों को बताया कि इसराइल के हवाई हमलों में 10 हज़ार से अधिक लोग घायल भी हुए हैं. 

साथ ही इसराइली सेना के बेदख़ली आदेशों से देश की लगभग 25 प्रतिशत आबादी, सीधे रूप में प्रभावित हो रही है.

भीषण संकट

लेबनान की सरकार के अनुसार देश में मौजूदा संकट के कारण विस्थापित लोगों की संख्या लगभग 12 लाख हो गई है.

इस बीच संयुक्त राष्ट्र की राहत समन्वय एजेंसी – OCHA ने आगाह किया है कि सभी प्रभावित लोगों को एक ऐसे संकट का सामना करना पड़ रहा है जो कई दशकों में बहुत भीषण है.

OCHA ने एक ऑनलाइन वक्तव्य में कहा है कि “हिंसा ने, पहले से ही अत्यधिक बोझ का सामना कर रही स्वास्थ्य व्यवस्था को बिखराव के नज़दीक पहुँचा दिया है, जिसके स्वास्थ्य देखभाल सेवाओं पर विनाशकारी प्रभाव पड़े हैं.”

“स्वास्थ्य सेवाओं पर हमले, अन्तरराष्ट्रीय मानवीय क़ानून का उल्लंघन हैं. उन्हें तत्काल रोका जाना होगा.”

UNHCR की अधिकारी रेमा जेमस इमसीस का कहना है कि ये लोग इसराइल के बेदख़ली आदेशों को सुन रहे हैं और उन्हें आनन-फानन में, कोई सामान लिए बिना ही भागना पड़ रहा है.

“उनमें से बहुत से लोगों को तो खुले स्थानों पर ही ठहरना पड़ रहा है, और उन्हें सुरक्षा व सहायता की तलाश करते हुए, खुले स्थानों पर सोने के लिए विवश हैं.”

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