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राजस्थान में गहलोत का चलेगा जादू या मोदी मैजिक से फिर BJP करेगी क्लीन स्वीप? Exit Poll में मिला हैरान करने वाला जवाब

Rajasthan Exit Poll 2024: राजस्थान में 4 जून के करीब आते ही हर कोई इस बात पर चर्चा कर रहा है कि इस रेगिस्तानी राज्य में भारतीय जनता पार्टी (BJP) और कांग्रेस का कैसा प्रदर्शन रहेगा। मुख्य सवाल यह है कि क्या बीजेपी 2014 और 2019 के चुनावों में राजस्थान में दर्ज की गई क्लीन स्वीप को इस बार भी दोहरा पाएगी। पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट दोनों ने दावा किया है कि कांग्रेस दोहरे अंकों में सीटें हासिल करेगी। केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने पिछले दिनों चुनावी अभियान के दौरान माना था कि राजस्थान में बीजेपी की कुछ सीटें कम होंगी। उनका कहना था कि एक-दो सीटों की कटौती हो सकती है।

एग्जिट पोल के आए नतीजे

News18 Exit Poll के मुताबिक, भारतीय जनता पार्टी (BJP) की अगुवाई वाले NDA को 25 लोकसभा सीटों में से 18 से 23 सीटें मिल सकती हैं। वहीं, कांग्रेस और I.N.D.I.A. गठबंधन को 2 से 7 सीटों पर संतोष करना पड़ सकता है। हालांकि, यह आंकड़े बीजेपी के लिए झटके से कम नहीं है, क्योंकि वह क्लिन स्वीप का सपना देख रही थी।

अपनी सीटें बचाने के लिए बीजेपी ने झोंकी ताकत

अपनी सीटों को बचाने के लिए बीजेपी ने राजस्थान में जोरदार प्रचार करने के लिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अपने शीर्ष नेताओं को चुनावी मैदान में उतारा। पार्टी पीएम मोदी की लोकप्रियता पर भरोसा की और उनकी गारंटी एवं राम मंदिर निर्माण पर जोर दी। जबकि कांग्रेस पर उसके पिछले कार्यकाल के दौरान कथित तुष्टिकरण की राजनीति और भ्रष्टाचार की आलोचना की।

इसके विपरीत, कांग्रेस के अभियान ने अपने न्याय पत्र पर जोर देते हुए महंगाई और बेरोजगारी जैसे आर्थिक मुद्दों पर ध्यान केंद्रित किया। पार्टी ने प्रवर्तन निदेशालय (ED) और केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) जैसी केंद्रीय एजेंसियों के दुरुपयोग के बारे में भी चिंता जताई। इसे लोकतंत्र और संविधान के लिए खतरा बताया।

राजीनितिक विशेषज्ञों का मानना है कि राजस्थान में चुनाव धार्मिक और राष्ट्रवादी विषयों के बजाय स्थानीय मुद्दों, उम्मीदवारों की प्रोफाइल और जातिगत गतिशीलता पर अधिक लड़ा गया। इस वजह से बीजेपी की पारंपरिक अभियान रणनीतियों को कमजोर करने में कुछ हद तक सफल रही।

बीजेपी के भीतर उथल-पुथल से हुआ नुकसान

बीजेपी को दौसा, नागौर, चूरू, सीकर, झुंझुनू, बाड़मेर, बांसवाड़ा, भरतपुर, जालौर, करौली-धौलपुर, कोटा और टोंक सवाई माधोपुर सहित कई प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में कड़ी प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ा। पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे सिंधिया को दरकिनार करना भी बीजेपी के लिए नुकसान साबित हो सकता है।

पिछले विधानसभा चुनावों में बीजेपी ने राजे के बजाय पीएम मोदी के नेतृत्व में चुनाव लड़कर परंपरा को तोड़ दिया और जीत हासिल की। ​​तब से, राजे और उनके समर्थकों को हाशिए पर रखने की कोशिशें की जा रही हैं, जो विधानसभा चुनावों, मंत्रिमंडल गठन और लोकसभा टिकट आवंटन के दौरान टिकट वितरण में स्पष्ट दिखाई दी।

जानकारों का कहना है कि राजे इस बात से बहुत नाराज हैं और इसलिए उन्होंने चुनाव प्रचार से खुद को दूर कर लिया था। उन्होंने सिर्फ झालावाड़ सीट पर ध्यान केंद्रित किया, जहां उनके बेटे दुष्यंत सिंह चुनाव लड़ रहे हैं।

गुटबाजी के अलाावा राजनीतिक मूड भी नहीं भांप पाई

इसके अलावा, बीजेपी के भीतर कई गुटों में नाराजगी थी। इसके अलावा, बीजेपी कई निर्वाचन क्षेत्रों में राजनीतिक मूड को भांपने में भी विफल रही। चूरू सीट इसका एक बड़ा उदाहरण है, जहां बीजेपी को इस चुनाव में पहली बार बगावत का सामना करना पड़ा। वरिष्ठ नेता राजेंद्र राठौर से टकराव के कारण पार्टी ने अपने मौजूदा सांसद राहुल कस्वां का टिकट काट दिया और पैरालंपिक एथलीट देवेंद्र झाझरिया को अपना उम्मीदवार बनाया। इस फैसले से नाराज कस्वां ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़ने का फैसला किया। नतीजतन, चूरू सीट BJP के लिए एक बड़ी चुनौती बन गई है, जो संभावित रूप से पार्टी की संभावनाओं के साथ-साथ राजेंद्र राठौर के भविष्य को भी तय करेगी।

इसी तरह, सूत्रों से पता चलता है कि लोकसभा चुनाव के लिए बाड़मेर-जैसलमेर से टिकट मांगने वाले निर्दलीय विधायक रविंद्र सिंह भाटी को बीजेपी ने मौका नहीं दिया। नतीजतन, भाटी ने निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा और केंद्रीय कृषि मंत्री कैलाश चौधरी के लिए एक बड़ी चुनौती पेश की। यह अनुमान लगाया जा रहा है कि इस निर्वाचन क्षेत्र में बीजेपी की संभावनाएं धूमिल हैं, जहां चौधरी तीसरे स्थान पर भी रह सकते हैं। जबकि उम्मेदराम बेनीवाल कांग्रेस से चुनाव लड़ रहे हैं।

इसके अलावा, कोटा सीट पर राजे के करीबी और प्रभावशाली गुर्जर नेता प्रहलाद गुंजल को हाशिए पर धकेलने में BJP ने कोई कसर नहीं छोड़ी। जवाब में गुंजल ने कांग्रेस के टिकट पर चुनाव लड़कर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को कड़ी चुनौती दी। इसी तरह चित्तौड़गढ़ विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने प्रदेश अध्यक्ष सीपी जोशी से दुश्मनी के चलते चंद्रभान आक्या का टिकट काट दिया। आक्या ने निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर विधानसभा चुनाव जीता। हालांकि आक्या ने न तो खुद लोकसभा चुनाव लड़ा और न ही अपने किसी समर्थक को मैदान में उतारा।

“400 पार” का नारा का कितना असर?

उपमुख्यमंत्री दीया कुमारी और नागौर की उम्मीदवार ज्योति मिर्धा उन नेताओं में से थीं जिन्होंने 400 सीटें मिलने पर बड़े संवैधानिक बदलावों पर चर्चा की। इससे अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदायों में सरकारी नौकरियों में आरक्षण में संभावित कटौती को लेकर डर पैदा हो गया।

सूत्रों से पता चलता है कि इन समुदायों के सरकारी कर्मचारियों ने हर गांव में अपने लोगों को इस चिंता के बारे में चेतावनी दी। नतीजतन, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय, मुसलमानों के साथ-साथ बड़े पैमाने पर BJP से दूर होते दिख रहे हैं। यह बदलाव बांसवाड़ा सीट पर स्पष्ट है।

एक और उल्लेखनीय पहलू यह है कि कांग्रेस के भीतर आंतरिक मतभेद, खासकर गहलोत-पायलट की दरार, इस चुनाव के दौरान खुलकर सामने नहीं आई। कांग्रेस पार्टी ने इस एकता का लाभ उठाया है।

क्या कहते हैं आंकड़े?

-पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी और कांग्रेस के बीच जीत का अंतर 24.41% वोट था।

– 2019 में बीजेपी ने 59.01% वोट शेयर हासिल किया, जबकि कांग्रेस ने 34.6% वोट हासिल किए।

– बीजेपी के मतदाता आधार को देखते हुए यह संभावना नहीं है कि कांग्रेस के सीटों की संख्या में पर्याप्त वृद्धि देखने को मिलेगा।

– फिलहाल, हमें 4 जून तक इंतजार करना होगा।

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4 जून पर टिकी सभी की निगाहें

लोकसभा चुनाव 2024 समाप्त होने के बाद अब सियासत की नजरें 4 जून पर टिकी हुई है। 4 जून को चुनावी रिजल्ट आने के बाद सियासत में कई बड़े बदलाव होने के कयास लगाए जा रहे हैं। माना जा रहा है कि कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियों अपनी-अपनी संगठनों में काफी बदलाव करेंगी। यह सब 4 जून को आने वाले चुनाव परिणाम पर निर्भर होगा। इसको लेकर कई नेताओं पर गाज भी गिर सकती है। इस बीच सियासी गलियारों में कांग्रेस और भाजपा दोनों के प्रदेश अध्यक्ष सहित कई बड़े बदलाव को लेकर कयास लगाए जा रहे हैं।

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