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यूनेस्को: भारत में जैज़ संगीत के ज़रिए एकजुटता का पैग़ाम

यूनेस्को: भारत में जैज़ संगीत के ज़रिए एकजुटता का पैग़ाम

2011 में यूनेस्को ने रचनात्मकता, सम्वाद व अन्तर-सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने वाले एक शैक्षिक उपकरण के रूप में, 30 अप्रैल को अन्तरराष्ट्रीय जैज़ दिवस घोषित किया था. 

तभी से, अन्तरराष्ट्रीय जैज़ दिवस, जैज़ संगीत की भूमिका के वैश्विक उत्सव के रूप में मनाया जाता है. 

इसके पीछे यूनेस्को का उद्देश्य था – सभी तरह के भेदभाव को ख़त्म करने की जैज़ की क्षमता को लेकर जागरूकता बढ़ाना, आपसी समझ व सहिष्णुता को बढ़ावा देना तथा शैली के भीतर कलात्मक नवाचार एवं समावेश को प्रोत्साहित करना.

इस संगीत समारोह में दुनिया भर से आए कई प्रतिभाशाली संगीतकारों ने भाग लिया और विभिन्न देशों में लोकप्रिय जैज़ संगीत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का प्रदर्शन किया. 

नैदरलैंड, फ़्रांस और पोलैंड के संगीतकारों से लेकर, भारतीय कलाकारों के समूह तक, सभी कलाकारों ने जैज़ के एक विविध व गतिशील संगीत अनुभव से रूबरू कराया.

इस अवसर पर यूनेस्को दक्षिण एशिया क्षेत्रीय कार्यालय के निदेशक और भारत में यूनेस्को के प्रतिनिधि टिम कर्टिस ने कहा, “जैज़ कलात्मक स्वतंत्रता, संगीत की खोज और वाद्ययंत्रों, लोगों एवं संस्कृतियों के बीच सम्वाद के मूल सिद्धांतों पर आधारित है.”

“जैज़ दिवस, जैज़ संगीत की परिवर्तनकारी शक्ति, शैक्षिक क्षमता और समावेश, करुणा भाव का संचार करने तथा सहयोग को बढ़ावा देने की क्षमता का जश्न मनाने का एक मौक़ा है.”

इस रंगारंग शाम की शुरुआत संगीत समूह ‘साउंडस्केप्स’ के प्रदर्शन के साथ हुई. नैदरलैंड से फ्रैंक बिल्सन, फ़्रांस से जूलियन पेरेज़ ने, भारतीय कलाकारों करण चित्रा देशमुख और देबस्मिता भट्टाचार्य के साथ भारतीय एवं पश्चिमी संगीत के मिश्रण से समाँ बाँध दिया.

अदभुत संगीत अभिव्यक्ति

प्रसिद्ध जैज़ ड्रमर और संगीतकार तरुण बलानी ने, गिटारवादक सिद्धार्थ गौतम के साथ मिलकर दर्शकों को मंत्रमुग्ध करता संगीत प्रस्तुत किया.

पोलैंड संगीत के दिग्गज कुबा वोजिक और पियोत्र दामसिविक्ज़ के प्रदर्शन ने, जैज़ की नवीन धुनें प्रदर्शित की, जिसमें  स्थानीय संगीत के साथ ध्वनि मिश्रण के ज़रिए संगीत अभिव्यक्ति की सीमाओं को दीगर तराशा गया.

यूनेस्को के कॉन्सर्ट ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया.

गिटारवादक कुबा वोजिक का कहना था, “हमारा लक्ष्य है, विभिन्न संस्कृतियों और परिवेशों से प्रेरणा लेकर संगीत व मानसिक बाधाओं को तोड़ना. हम दोनों देशों के स्थानीय संगीतकारों के साथ मिलकर, विभिन्न संगीत जगतों के बीच मज़बूत सम्बन्ध स्थापित करके, अनूठे कार्यक्रमों पर काम करने का इरादा रखते हैं.”

कार्यक्रम के अन्त में ध्रुव संगारी, साहिल वासुदेव मकरंद सनोन, सुहेल सईद ख़ान, सिराज और अरीना की टीम ने साथ मिलकर संगीत पेश किया. ध्रुव सांगारी की प्रस्तुति में जैज़ संगीत में नई धुनों को मिलाकर, भारतीय संगीत की समृद्ध विरासत का जश्न मनाया गया.

संगीतकार साहिल वासुदेव ने भारत में जैज़ के प्रसार पर विचार रखते हुए कहा, “इस संगीत कार्यक्रम से यह तो स्पष्ट है कि युवा भारतीय संगीतकार प्रयोग करने और जोखिम उठाने के लिए तैयार हैं, जो भारत में बढ़ते जैज़ आन्दोलन का प्रतीक है.”

“ऐसे में अगर इसे बेहतर समर्थन दिया जाए व इसे प्रोत्साहन देने के लिए उपयुक्त तंत्र स्थापित किए जाएँ, तो भारत में मौजूद अविश्वसनीय संगीत प्रतिभा व विरासत को देखते हुए, इसमें प्रगति की काफ़ी सम्भावनाएँ हैं.”

यूनेस्को के जैज़ संगीत समारोह में जैज़ के साथ, भारतीय संगीत का फ़्यूजन देखने को मिला.

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