यूएन के मानवतावादी समन्वयक माथियास श्मेल ने जिनीवा में बताया कि सर्दी के मौसम में रूसी महासंघ ने पूर्ण स्तर पर 2022 में आक्रमण किया था, जिसे एक हज़ार दिन पूरे हो रहे हैं.
“हम इसमें मारे गए 12 हज़ार लोगों के बारे में सोच रहे हैं, जिन्होंने अपनी जान गँवाई है.” अब तक, दो हज़ार से अधिक हमलों में नागरिक प्रतिष्ठानों, स्वास्थ्य केन्द्रों को भीषण नुक़सान पहुँचा है, और 20 लाख से अधिक घर क्षतिग्रस्त हुए हैं.
यूक्रेन में हर 10 में से चार व्यक्तियों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है. बहुमंज़िला इमारतों में रहने वाले लोगों के लिए गम्भीर चुनौती है, जमा देने वाली सर्दी में दिन गुज़ारना, चूँकि ऊर्जा प्रतिष्ठानों पर व्यवस्थागत ढंग से हमले किए गए हैं.
माथियास श्मेल ने बताया कि यूक्रेन में अब तक, 65 फ़ीसदी ऊर्जा उत्पादन क्षमता को बर्बाद कर दिया गया है.
इन हालात में, यूएन सहायता टीम व साझेदार संगठनों द्वारा ज़रूरतमन्दों को लकड़ी, कोयला जैसे ठोस ईंधन, गर्म कपड़े वितरित किए गए हैं लेकिन इमारतों में रहने वाले लोगों के लिए चिन्ताजनक हालात हैं.
यूएन अधिकारी के अनुसार, बहुमंज़िला इमारतों में बड़े पैमाने पर ठोस ईंधन की आपूर्ति किया जाना सम्भव नहीं है. शहरों व नगरों में सामूहिक आश्रय स्थलों पर लोगों के लिए गर्म भोजन, अस्थाई स्नानघर व गर्म पेय की व्यवस्था की जा रही है, मगर यह पर्याप्त नहीं है.
सामूहिक विस्थापन का ख़तरा
माथियास श्मेल ने चेतावनी दी है कि रूसी सैन्य बलों द्वारा यदि फिर से सर्दी के मौसम में ऊर्जा प्रतिष्ठानों को निशाना बनाया गया, तो यह देश के भीतर व अन्य देशों में विस्थापन की वजह बनेगा.
“इसलिए, यह केवल तकनीकी समाधानों के बारे में नहीं है, यह अन्तरराष्ट्रीय समुदाय से आग्रह करने के बारे में भी है कि वे इस युद्ध को रोकने के लिए अपने प्रयास करें.”
संयुक्त राष्ट्र के साथ-साथ राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय संगठनों ने अब तक यूक्रेन में 72 लाख लोगों तक कम से कम एक प्रकार की मदद पहुँचाई है, जोकि 1.8 अरब डॉलर की मानवीय सहायता धनराशि के ज़रिये सम्भव हो पाया है.
अगले वर्ष मार्च महीने तक 18 लाख लोगों की आपात ज़रूरतों को पूरा करने, ठोस ईंधन मुहैया कराने, जल आपूर्ति व्यवस्था को बरक़रार रखने के लिए 50 करोड़ डॉलर की अपील की गई है.
मगर, अग्रिम मोर्चों पर रहे समुदायों व सहायताकर्मियों के लिए हालात बेहद ख़तरनाक हैं. इस वर्ष 9 राहतकर्मियों ने अपना दायित्व निभाते समय अपने प्राणों का बलिदान किया है. मानवतावादी प्रतिष्ठानों को भी हिंसा में नुक़सान पहुँचा है.