यूक्रेन में पूर्ण स्तर पर जारी युद्ध के दो वर्ष 24 फ़रवरी को पूरे हो रहे हैं, जिसमें विशाल पैमाने पर बमबारी व मिसाइल हमलों से विध्वंस हुआ है और जान-माल की हानि हुई है.
एक अनुमान के अनुसार, यूक्रेन से अब तक 65 लाख लोगों ने दुनिया के कई देशों में शरण ली है, जबकि 37 लाख लोग मजबूरन अब भी, देश की सीमाओं के भीतर विस्थापित हैं. युद्धग्रस्त देश में गम्भीर मानवीय हालात हैं और क़रीब 40 प्रतिशत आबादी को मानवीय सहायता व संरक्षण की ज़रूरत है.
‘Lives on Hold: Intentions and perspectives of refugees, refugee returnees and internally displaced peoples from Ukraine’ शीर्षक वाला यह सर्वेक्षण, इस वर्ष जनवरी व फ़रवरी महीने में 9,900 यूक्रेनी शरणार्थियों, घरेलू विस्थापितों और घर लौटने वाले परिवारों के साथ इंटरव्यू पर आधारित है.
सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले 65 फ़ीसदी यूक्रेनी शरणार्थियों और 72 प्रतिशत विस्थापितों ने एक दिन फिर अपने घर लौटने की इच्छा जताई, मगर देश में पसरी चुनौतियों के कारण उनके अनुपात में गिरावट आई है.
असुरक्षा, एक बड़ी वजह
सर्वेक्षण में हिस्सा लेने वाले विस्थापितों ने यूक्रेन में पसरी असुरक्षा का हवाला देते हुए कहा कि यह उनके घर वापिस लौटने में सबसे बड़ी बाधा है.
इसके अलावा, आर्थिक अवसरों और घरों का अभाव समेत अन्य कारण भी उनकी घर वापसी में बाधक हैं.
यूएन शरणार्थी एजेंसी के लिए एक अहम प्राथमिकता यूक्रेन में घरों की मरम्मत कराना है ताकि लोग अपने घरों में रह सकें. अब तक, साढ़े 27 हज़ार घरों की मरम्मत की गई है.
यूक्रेन लौटने वाले जिन शरणार्थियों के साथ बातचीत की गई है, उनमें क़रीब 55 फ़ीसदी ने बताया कि उनकी अपेक्षा के विपरीत यहाँ रोज़गार के लिए कम ही अवसर उपलब्ध हैं.
सर्वे में हिस्सा लेने वाले यूक्रेनी शरणार्थियों में से 59 प्रतिशत का मानना है कि युद्ध जारी रहने की वजह से उनकी लौटने की इच्छा नही हैं.
मेज़बान देशों में चुनौतियाँ
मगर शरणार्थियों को आशंका है कि उन्हें शरण देने वाले मेज़बान देशों में रोज़गार अवसरों, क़ानूनी दर्जे समेत अन्य चुनौतियों के कारण, उन्हें घर लौटने के लिए मजबूर किया जा सकता है.
इससे पहले की रिपोर्टों में कहा गया था कि वृद्धजन और विकलांगजन समेत जिन शरणार्थियों की विशिष्ट आवश्यकताएँ या निर्बलताएँ हैं, वे भी विकल्पों के अभाव में वापिस लौटने की सोच रहे हैं.
ऐसे शरणार्थियों की संख्या बढ़ी है जो अब छोटी अवधि के लिए यूक्रेन की यात्रा कर रहे हैं, मुख्य रूप से अपने परिवारजन से मिलने और अपनी सम्पत्तियों का निरीक्षण करने के लिए. पिछले वर्ष यह आँकड़ा 39 प्रतिशत था जोकि अब बढ़कर 50 फ़ीसदी हो गया है.
यूएन शरणार्थी एजेंसी ने कुछ अवधि के लिए शरणार्थियों के यूक्रेन यात्रा पर जाने के मामलों में, मेज़बान देशों से लचीले तौर-तरीक़े अपनाने का आग्रह किया है.
उसके अनुसार, यह ज़रूरी है कि तीन महीने से कम अवधि की यात्राओं की वजह से, शरणार्थियों को मिला क़ानूनी दर्जा व उससे सम्बद्ध अधिकार प्रभावित ना हों.
साथ ही, तब तक शरणार्थियों के संरक्षण व आवश्यकताओं का ख़याल रखा जाना होगा जब तक वे स्वेच्छा से सुरक्षा और गरिमा के साथ अपने घर लौटने के लिए तैयार ना हों.
परिवारजन से फिर मिलने की आस
यूक्रेन युद्ध से उपजे शरणार्थी संकट को कुछ हद तक परिवारों के अलग होने के रूप में देखा जाता है, जिसमें अधिकाँश पुरुष सदस्यों को यूक्रेन में रुकना पड़ा, कुछ सदस्यों को बिना किसी समर्थन के देश छोड़कर जाने के लिए मजबूर होना पड़ा.
यह अध्ययन बताता है कि अपने घर हमेशा के लिए लौटने वाले लोगों के लिए एक बड़ी वजह परिवारों से फिर मिलना व एक साथ रहना है. यूक्रेन में जब तक युद्ध जारी रहेगा तब तक शरणार्थियों, घरेलू विस्थापितों और लड़ाई के अग्रिम मोर्चे पर रहने वाले लोगों के लिए तत्काल समर्थन की ज़रूरत बनी रहेगी.
यूएन शरणार्थी एजेंसी का मानना है कि युद्ध-प्रभावित लोगों में मज़बूत सहनसक्षमता और अनेक इलाक़ों में पुनर्बहाली के प्रयास किए जा रहे हैं, मगर इनके लिए समर्थन जारी रखा जाना होगा.
संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी ने यूक्रेन के भीतर विस्थापितों और अन्य देशों में शरण लेने वाले लोगों की सहायता के लिए 99.3 करोड़ डॉलर की अपील जारी की है, मगर फ़िलहाल इसकी 13 प्रतिशत धनराशि का ही प्रबन्ध हो पाया है.
संगठन ने आगाह किया है कि यदि ज़रूरी रक़म की जल्द प्राप्ति नहीं हुई तो यूक्रेन और अन्य पड़ोसी देशों में अति-आवश्यक गतिविधियों में कटौती करने के लिए मजबूर होना पड़ सकता है.
यूएन एजेंसी ने ज़ोर देकर कहा है कि यूक्रेन में हर दिन, युद्ध के प्रभावों से जूझ रहे लोगों को नहीं भुलाया जाना होगा और निरन्तर समर्थन व एकजुता को व्यक्त किया जाना आवश्यक है.