इस विषय में पेश किए प्रस्ताव के पक्ष में 12 सदस्य देशों ने मत डाले, एक सदस्य ने विरोध में मतदान किया, जबकि दो सदस्य देशों ने मतदान में हिस्सा नहीं लिया.
इस नतीजे की वजह से यूएन सुरक्षा परिषद में लाए गए प्रस्ताव का मसौदा पारित नहीं हुआ.
इसे स्वीकृति मिलने की स्थिति में फ़लस्तीन को एक पूर्ण सदस्य देश के रूप में शामिल किए जाने के विषय पर यूएन महासभा में 193 सदस्य देशों द्वारा मतदान का मार्ग प्रशस्त हो सकता था.
15 सदस्य देशों वाली सुरक्षा परिषद में किसी प्रस्ताव के मसौदे को पारित होने के लिए कम से कम नौ मतों की ज़रूरत होती है, साथ ही किसी स्थाई सदस्य देश – चीन, फ़्राँस, रूस, ब्रिटेन, अमेरिका – द्वारा अपने वीटो अधिकार का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए.
गुरूवार को पेश किए गए प्रस्ताव का मसौदा सुरक्षा परिषद के इतिहास में सबसे संक्षिप्त मसौदों में से एक के रूप में देखा गया.
इसके अनुसार, संयुक्त राष्ट्र में शामिल होने के लिए फ़लस्तीन के आवेदन (S/2011/592) को जाँचने के बाद, सुरक्षा परिषद की यूएन महासभा के लिए अनुशन्सा थी कि फ़लस्तीन को संयुक्त राष्ट्र में सदस्यता दी जाए. इस प्रस्ताव को अमेरिका ने वीटो कर दिया.
पूर्ण सदस्यता के लिए अनुरोध
ग़ाज़ा में जारी लड़ाई के बीच, फ़लस्तीन ने 2 अप्रैल को यूएन महासचिव के पास एक पत्र भेजा, जिसमें संगठन की सदस्यता के लिए फ़लस्तीनी आवेदन पर नए सिरे से विचार किए जाने का अनुरोध किया गया था.
इस सिलसिले में, फ़लस्तीन ने पहली बार 2011 में आवेदन दाख़िल किया था.
फ़लस्तीन के नवीनतम अनुरोध के बाद, यूएन प्रमुख ने इस पत्र को सुरक्षा परिषद को सौंप दिया.
वर्ष 2011 में सुरक्षा परिषद ने इस अनुरोध पर विचार किया था, मगर एक राय ना होने की वजह से, यूएन महासभा के लिए सिफ़ारिश नहीं भेजी गई थी. यूएन चार्टर के अनुसार, महासभा के 193 सदस्य देशों द्वारा इस विषय में मतदान किया जाना ज़रूरी है.
कुछ ही दिन पहले, सुरक्षा परिषद ने फ़लस्तीन के नवीनतम अनुरोध को, नए सदस्य देशों की भर्ती के लिए समिति के पास भेजा था, जिसकी 8 व 11 अप्रैल को इस मुद्दे पर बैठक हुई.
वर्ष 2012 के बाद से ही फ़लस्तीन, संयुक्त राष्ट्र का स्थाई पर्यवेक्षक राष्ट्र रहा है, जबकि उससे पहले फ़लस्तीन को यूएन महासभा में पर्यवेक्षक का दर्जा हासिल था.
संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता के लिए फ़लस्तीन के आवेदन पर अधिक जानकारी यहाँ उपलब्ध है.