फ़रवरी 2021 में, म्याँमार की सेना ने लोकतांत्रिक ढंग से चुनी गई सरकार को सत्ता से बेदख़ल कर दिया था और राष्ट्रपति विन म्यिन्त, स्टेट काउंसलर आंग सान सू ची समेत सैकड़ों अधिकारियों, राजनैतिक नेताओं को गिरफ़्तार कर लिया था.
इसके बाद, देश भर में सैन्य बलों और अलगाववादियों व विरोधी गुटो के बीच सशस्त्र संघर्ष में तेज़ी आई और ताबड़तोड़ ढंग से हवाई कार्रवाई किए जाने समेत अनेक हिंसक घटनाओं में आम लोग मारे गए हैं.
बताया गया है कि हिरासत में रखे गए बन्दियों की सामूहिक हत्याएँ हुई हैं, उनके शवों को क्षत-विक्षत कर दिया गया. इसके अलावा, बलात्कार किए जाने और जानबूझकर पूरे गाँवों को जला देने की घटनाओं को भी अंजाम दिया गया.
वर्ष 2023 के उत्तरार्ध में, अनेक हथियारबन्द गुटों ने सैन्य नेतृत्व के विरुद्ध एक संयुक्त मोर्चा बनाया, और कई सैन्य ठिकानों पर हमले किए गए हैं, जिनके कारण सेना को पीछे हटना पड़ा है और सैनिकों को आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर होना पड़ा.
मौतों का सिलसिला जारी
म्याँमार के लिए विशेष रैपोर्टेयर टॉम एंड्रयूज़ ने मानवाधिकार परिषद के सदस्य देशों को बताया कि विरोधी गुटों को कुछ सफलताएँ मिली हैं, मगर सैन्य नेतृत्व का ख़तरा अब भी बरक़रार है.
“आम लोगों को जान से मारे जाने की घटनाएँ जारी हैं, जिन्हें परिष्कृत, विदेश से मंगाए गए शक्तिशाली हथियारों के ज़रिये अंजाम दिया जा रहा है.”
पिछले पाँच महीनों के दौरान, आम नागरिकों पर हवाई हमले किए जाने की घटनाओं में पाँच गुना वृद्धि हुई है. देश भर में 27 लाख लोग विस्थापित हैं और 1.86 करोड़ लोगों को मानवीय सहायता की आवश्यकता है, जिनमें क़रीब 60 लाख बच्चे हैं.
मानवाधिकार विशेषज्ञ टॉम एंड्रयूज़ ने कहा कि सैन्य नेतृत्व ने अब जबरन सैनिकों की भर्ती करने का कार्यक्रम शुरू किया है, और कभी-कभी युवाओं को सड़कों से अगवा किया जा रहा है.
“इस वजह से युवजन छिपने के लिए, देश छोड़कर जाने, या फिर प्रतिरोधक बलों में शामिल होने के लिए मजबूर हो रहे हैं.” उन्होंने कहा कि ये वो युवा हैं, जो बर्बरता के इस अभियान में सैन्य बलों में शामिल नहीं होना चाहते हैं.
मौजूदा घटनाक्रम से सर्वाधिक प्रभावितों में अल्पसंख्यक मुसलमान रोहिंज्या समुदाय भी है, जिस पर हमले व उत्पीड़न जारी है.
वर्ष 2017 में राख़ीन प्रान्त में, म्याँमार सैन्य बलों के एक व्यापक अभियान की वजह से लाखों रोहिंज्या लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए पड़ोसी देश बांग्लादेश में शरण ली थी.
म्याँमार से परे भी असर
विशेष रैपोर्टेयर ने आगाह किया कि सैन्य नेतृत्व के कृत्यों से ना केवल म्याँमार की जनता प्रभावित हो रही है बल्कि इनके असर पूरे क्षेत्र व वृहद जगत में देखे जा सकते हैं.
“हताश हो चुके लोगों का जान बचाने के लिए हज़ारों की संख्या में पड़ोसी देशों में जाना जारी है, जबकि सैन्य नेतृत्व के लड़ाकू विमान ने म्याँमार के पड़ोसी देशों के वायुक्षेत्र का उल्लंघन किया है, और सीमा पार जाकर भी बम गिरे हैं.”
टॉम एन्ड्रयूज़ ने बताया कि अन्तरराष्ट्रीय आपराधिक नैटवर्क को म्याँमार में सुरक्षित पनाह मिली है, जोकि विश्व में अब शीर्ष अफ़ीम उत्पादक देश है. यह सायबर घोटालों के लिए एक वैश्विक केन्द्र भी है, जिसमें लाखों लोगों को दास बनाया जाता है और उन्हें पीड़ाएं दी जाती है.
हिंसा को रोकना होगा
उन्होंने सचेत किया कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा सैन्य नेतृत्व के तुष्टीकरण, उसके साथ बातचीत व सम्पर्क के प्रयास किए गए थे, मगर उनसे मदद नहीं मिली है.
इस क्रम में, उन्होंने कहा कि यह ज़रूरी है कि पहले हिंसा को रोका जाए, और इसे वास्तविकता में तब्दील करने के लिए अन्तरराष्ट्रीय समुदाय द्वारा सैन्य नेतृत्व को हथियार नकारे जाने होंगे, ताकि लोगों को जान से मारने का अभियान चलाने के लिए उसके पास धन ना हो.
इसके तहत, उन्होंने सदस्य देशों के गठबंधन की तत्काल बैठक बुलाए जाने की बात कही है, ताकि म्याँमार के लोगों की जीवनरक्षा के इरादे से समन्वित, लक्षित ढंग से प्रतिबन्ध लगाए जा सकें.
बदल रही है स्थिति
इस क्रम में, उन्होंने तीन महत्वपूर्ण क़दमों को रेखांकित किया है, जिनमें ज़रूरतमन्द आबादी तक मानवीय सहायता पहुँचाना, युद्ध अपराधों व मानवता के विरुद्ध अपराधों के लिए दंडमुक्ति की भावना को समाप्त करना और म्याँमार में संक्रमणकालीन प्रयासों में निवेश करना है.
उन्होंने म्याँमार में धनी व विविध आबादी के लिए एक राजनैतिक फ़्रेमवर्क का निर्माण कर रहे लोगों की सराहना की, जिसके तहत शान्ति मार्ग पर बढ़ने के लिए मानवाधिकारों, समानता व न्याय पर बल दिया जाएगा.
टॉम एंड्रयूज़ के अनुसार, म्याँमार में हालात बदल रहे हैं और यह स्थानीय लोगों के साहस व मज़बूती की वजह से तब्दील हो रहे हैं.
उन्होंने कहा कि अन्तरराष्ट्रीय समुदाय को म्याँमार पर ध्यान देना होगा और समन्वित, ठोस क़दमों से इस लम्हे का लाभ उठाया जाना होगा.
मानवाधिकार विशेषज्ञ
विशेष रैपोर्टेयर और स्वतंत्र मानवाधिकार विशेषज्ञ, संयुक्त राष्ट्र की विशेष मानवाधिकार प्रक्रिया का हिस्सा होते हैं.
उनकी नियुक्ति जिनीवा स्थिति यूएन मानवाधिकार परिषद, किसी ख़ास मानवाधिकार मुद्दे या किसी देश की स्थिति की जाँच करके रिपोर्ट सौंपने के लिये करती है.
ये पद मानद होते हैं और मानवाधिकार विशेषज्ञों को उनके इस कामकाज के लिये, संयुक्त राष्ट्र से कोई वेतन नहीं मिलता है.