ग़ाज़ा पट्टी में लगभग 90 प्रतिशत आबादी अपने घरों से विस्थापित हो गई है. भारी संख्या में लोगों को इसराइल के सैन्य हमलों से बचने के लिए बार-बार विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा है. कुछ लोगों को तो 10 बार या उससे भी अधिक बार विस्थापित होना पड़ा है.
ग़ाज़ा का अधिकांश हिस्सा मलबे में से भरा हुआ है, जबकि इसराइली हवाई हमलों और सैन्य अभियानों ने घरों, स्कूलों और अस्पतालों सहित लगभग 60 प्रतिशत इमारतों को क्षतिग्रस्त या नष्ट कर दिया है.
इसराइली सेना की लगातार हवाई बमबारी ने, ग़ाज़ा में स्वास्थ्य सेवा को तबाही के निकट धकेल दिया है, कूड़े-कचरे को ठिकाने लगाने वाली अपशिष्ट प्रणाली ध्वस्त हो गई है, जिससे गम्भीर पर्यावरणीय और स्वास्थ्य जोखिम पैदा हो गए हैं, और जल प्रणाली में भारी कटौती हुई है.
ग़ाज़ा में यूएन न्यूज़ के संवाददाता ने, मध्यवर्ती इलाक़े नुसीरात में शरण लिए विस्थापित लोगों के साथ बातचीत की, जो अपने बचे हुए घरों में वापस लौटने और अपने जीवन को फिर से पटरी पर लाने की उम्मीद कर रहे हैं.
एक महिला उम्म मोहम्मद हनून, गम्भीर मानवीय परिस्थितियों के बावजूद, अपने परिवार के साथ उत्तरी ग़ाज़ा की अल-करामा बस्ती में वापिस लौटने के लिए दृढ़ संकल्पित हैं. जबकि उन्हें ख़बर मिली है कि ड्रोन हमले में उनका घर नष्ट हो गया है.
उनका कहना है, “मेरी योजना मलबे को हटाने, अपनी ज़मीन पर एक तम्बू लगाने और वहाँ फिर से बसने की है.”
“मुझे बस अपने घर को देखने की चाह है. मुझे उम्मीद है कि ग़ाज़ा को फिर से वैसा ही बनाया जाएगा जैसा वह था, और हमारा जीवन पहले जैसा ही हो जाएगा.”
‘हम इससे बेहतर जीवन के हक़दार हैं’
ग़ाज़ा शहर से विस्थापित एक बच्चे समी अबू तहून ने युद्धविराम समझौते की ख़बर मिलने के बाद कहा, “मैं एक कारण से ग़ाज़ा शहर वापस जाना चाहता हूँ, और वह है अपने पिता से मिलना.”
इस किशोर ने कहा कि युद्ध के कारण उसे जब ग़ाज़ा पट्टी के उत्तरी भाग में से विस्थापित होने के लिए मजबूर होना पड़ा था, तब से उसने अपने पिता को नहीं देखा है. “जब हमने अपना घर छोड़ा था, तो मैंने जीवन में कुछ बहुत ज़रूरी खो दिया – मेरे पिता.”
“जब मेरी माँ ने मुझसे इबादत करने के लिए कहा, तो मैंने इनकार कर दिया. मैं तब तक इन्तेज़ार करना चाहता था, जब तक कि मुझे अपने पिता के साथ इबादत करने का मौक़ा नहीं मिले.”
‘मौत और विनाश की अति’
समी की तरह ही एक अन्य फ़लस्तीनी व्यक्ति अयमन अबू रदवान कहते हैं, “हम अब अपने भविष्य के बारे में सोचना चाहते हैं. बहुत हो गए मौत और विनाश.”
उन्हें ग़ाज़ा शहर में अपना घर छोड़कर मध्य ग़ाज़ा में एक फटे हुए तम्बू में रहने के लिए मजबूर होना पड़ा है.
“हम अब थक चुके हैं. हमने गर्मियों के मौसम की पूरी गर्मी सहन की है और सर्दियों की ठंड व पाले को सहन किया है. बच्चे मौत के मुँह में जा रहे हैं. हर रात, ठंड से काँपते हुए, दो सप्ताह के बच्चे की चीख़ों से मेरी नींद खुल जाती है.”
“मुझे उम्मीद है कि हमारी परिस्थितियाँ बेहतर होंगी. हम इससे बेहतर जीवन के हक़दार हैं.”
मोहम्मद अल-क़ूक़ा ग़ाज़ा शहर के पश्चिम में अल-शती शरणार्थी शिविर से विस्थापित हुए थे. उनका कहना है कि यदि युद्धविराम के बाद ग़ाज़ा के लोग अपने घरों को वापिस लौट सकें और ग़ाज़ा पट्टी का पुनर्निर्माण भी हो जाए, तो भी मानसिक पीड़ा जारी रहेगी.
“सबसे बड़ी पीड़ा मनोवैज्ञानिक स्थिति होगी. युद्ध लम्बा चला है, और हमारे परिवारों, हमारे बच्चों ने ऐसी चीज़ें देखी हैं जो उन्हें कभी नहीं देखनी चाहिए थीं.”
यूएन मानवीय सहायता दल सहायता में तेज़ी लाने के लिए मुस्तैद
यदि रविवार को युद्ध विराम समझौता लागू होता है, तो व्यापक रूप से यह अनुमान लगाया जा रहा है कि ग़ाज़ा पट्टी में आने वाली सहायता में ख़ूब तेज़ी आएगी – जो कि समझौते की कथित शर्तों के अनुरूप है.
पूरे युद्ध के दौरान, अत्यन्त आवश्यक सामान वाले मानवीय सहायता क़ाफ़िलों को बार-बार विलम्बित किया गया या उन्हें इसराइली सैन्य चौकियों पर प्रवेश से रोका गया. (दिसम्बर में, समन्वित सहायता मिशनों में से 70 प्रतिशत को, इसराइली अधिकारियों ने अस्वीकार कर दिया).
विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) ने गुरूवार को बताया है कि उसके पास 80 हज़ार टन खाद्य सामग्री है जो ग़ाज़ा के बाहर मौजूद है जो ग़ाज़ा में दाख़िल होने की प्रतीक्षा कर रही है. यह सामग्री दस लाख से अधिक लोगों का पेट भरने के लिए पर्याप्त है.
संयुक्त राष्ट्र की खाद्य सहायता एजेंसी ने हालाँकि ज़रूरतमन्द लोगों तक पहुँचने के लिए, निर्बाध आवाजाही के महत्व को भी रेखांकित किया.
UNRWA का ध्यान आवश्यक स्वास्थ्य सेवा बहाली पर
ग़ाज़ा में इसराइल की लगातार और भीषण बमबारी के परिणामस्वरूप, स्वास्थ्य सेवा प्रणाली बिखर गई है, और 12 हज़ार से अधिक लोग बेहतर चिकित्सा के लिए किसी बेहतर स्थान के लिए भेजे जाने की प्रतीक्षा कर रहे हैं.
विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) और उसके साझीदारों ने बुधवार को, ग़ाज़ा , 12 मरीज़ों को योरोप के अस्पतालों में पहुँचाने में सफलता हासिल की. मगर एजेंसी ने, युद्धविराम लागू होने के बाद, कई अनेक देशों से, ग़ाज़ा के मरीज़ों को, विशेष उपचार दिए जाने का आहवान किया है.
सहायताकर्मी बेहद ख़तरनाक परिस्थितियों में काम कर रहे हैं: अक्टूबर 2023 से लगभग 900 सहायताकर्मी मारे गए हैं, जिनमें फ़लस्तीन शरणार्थियों के लिए संयुक्त राष्ट्र शरणार्थी एजेंसी – UNRWA के 265 कर्मचारी भी हैं.
जोखिमों के बावजूद, UNRWA के 1,000 से अधिक कार्यकर्ता, ग़ाज़ा में स्वास्थ्य केन्द्रों, अस्थाई क्लीनिकों और चिकित्सा केन्द्रों का संचालन जारी रखे हुए हैं, जिनमें प्रतिदिन 16 हज़ार से अधिक स्वास्थ्य परामर्श प्रदान किए जाते हैं. इनमें, अधिकतर स्थानीय स्टाफ़ हैं.