Manish Tewari: देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस में इन दिनों भगदड़ मची हुई है। पार्टी के बहुत से वरिष्ठ नेता जो कई पीढ़ी से पार्टी से जुड़े हुए हैं। वो अब एक-एक कर पार्टी से बाहर निकल रहे हैं। महाराष्ट्र के पूर्व सीएम अशोक चव्हाण, मिलिंद देवड़ा जैसे कई सीनियर नेता पार्टी को बाय-बाय कर चुके हैं। ये ऐसे नेता है, जो कांग्रेस से कई दशकों से जुड़े हुए थे। इस बीच खबर आ रही है कि कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और आनंदपुर साहिब से सांसद मनीष तिवारी भी बीजेपी में जा सकते हैं। इसके पहले अटकलें लगाई गईं थी कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम कमलनाथ भी कांग्रेस का दामन छोड़ सकते हैं।
कहा जा रहा है कि इस बार मनीष तिवारी आनंदपुर साहिब की जगह बीजेपी के चुनाव चिन्ह पर लुधियाना लोकसभा से चुनाव लड़ना चाहते हैं। बीजेपी सूत्रों ने बताया कि लुधियाना सीट में पार्टी के पास सक्षम उमीदवार है। सीट को लेकर मनीष तिवारी के बीजेपी में शामिल होने को लेकर पेंच फंसा हुआ है।
मनीष तिवारी के ऑफिस ने किया खंडन
वहीं इस मामले में मनीष तिवारी के ऑफिस ने इन अटकलों को सिरे से खारिज कर दिया है। तिवारी के ऑफिस ने एक बयान जारी कर कहा कि उनके बीजेपी में शामिल होने की अटकलों में कोई दम नहीं है। यह फर्जी हैं। मनीष तिवारी अपने निर्वाचन क्षेत्र में हैं और वहां विकास कार्यों की देखरेख कर रहे हैं। कल रात, वह एक कांग्रेस कार्यकर्ता के घर पर रुके थे। दरअसल, लोकसभा चुनाव को लेकर सभी पार्टियां तैयारियों में जुटी हुई है। उम्मीदवारों के नामों की घोषणा भी हो रही है। वहीं दूसरी तरफ नेताओं की ओर से पाला बदलने का सिलसिला भी जारी है। पंजाब से पहले मध्य प्रदेश और महाराष्ट्र से भी इसी तरह की खबरें सामने आई हैं। बताया जा रहा है कि मध्य प्रदेश के पूर्व सीएम और कांग्रेस के बड़े नेता कमलनाथ और उनके बेटे नकुलनाथ बीजेपी का दामन थाम सकते हैं।
जानिए कौन हैं मनीष तिवारी
मनीष तिवारी (Manish Tewari) सांसद होने के साथ-साथ वकील भी हैं। 17वीं लोकसभा में वह पंजाब के आनंदपुर साहिब से कांग्रेस सांसद चुने गए थे। यूपीए सरकार के दौरान वह 2012 से 2014 तक सूचना और प्रसारण मंत्री और 2009 से 2014 तक लुधियाना से सांसद रहे हैं। यूपीए सरकार के दौरान वह कांग्रेस के प्रवक्ता भी रहे हैं। तिवारी 1988 से 1993 तक भारतीय राष्ट्रीय छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। साल 1998 से 2000 तक भारतीय युवा कांग्रेस (I) के अध्यक्ष थे। वे 2004 के लोकसभा चुनाव हार गए लेकिन शिरोमणि अकाली दल के उम्मीदवार को हराकर 2009 में लोकसभा का चुनाव जीता। मार्च 2014 में खराब स्वास्थ्य की वजह से उन्होंने लोकसभा का चुनाव नहीं लड़े थे।