उपवास और भोजन, पारम्परिक रूप से रमदान महीने के केन्द्र में होते हैं, मगर इस बार रमदान मानो मध्य पूर्व क्षेत्र में लाखों लोगों के लिए एक बोझ बन गया है.
खाद्य वस्तुओं की क़ीमतों में उछाल जारी है, जबकि आम लोगों की आय में मोटे तौर पर कोई बदलाव नहीं आया है.
वहीं, क़ाबिज़ फ़लस्तीनी इलाक़े समेत कुछ देशों में लम्बे समय से जारी हिंसक टकराव और आर्थिक संकट के कारण, रमदान के महीने में किए जाने वाला उपवास, लाखों लोगों के लिए अब रोज़मर्रा के जीवन में कटु वास्तविकता बन गया है.
पूरे क्षेत्र में चार करोड़ से अधिक लोग अचानक खाद्य असुरक्षा का शिकार हुए हैं, जिनमें 1.17 करोड़ लोग आपात या उससे बदतर स्तर की खाद्य असुरक्षा से पीड़ित हैं. इनमें बहुत से लोग शरणार्थी व शरण की तलाश करने वाले लोग हैं.
यानि, वे अपने और परिवार के लिए पर्याप्त मात्रा में सेहतमन्द आहार का प्रबन्ध कर पाने में सक्षम नहीं हैं.
बढ़ती खाद्य असुरक्षा
7 अक्टूबर को इसराइल पर हमास के हमलों के बाद ग़ाज़ा पट्टी में इसराइली कार्रवाई के बाद उपजे हालात इन्हीं मुश्किलों को बयाँ करते हैं.
मध्य पूर्व, उत्तर अफ़्रीका और पूर्वी योरोप क्षेत्र के लिए WFP की क्षेत्रीय निदेशक कॉरिन फ़्लाइशर ने बताया कि हाल के इतिहास में, ग़ाज़ा पट्टी में बदतरीन खाद्य संकट के साथ रमदान का महीना आरम्भ हुआ है.
ग़ाज़ा युद्ध को शुरू हुए पाँच महीने से अधिक समय बीत चुके हैं और वहाँ की पूरी आबादी को अब खाद्य सहायता की आवश्यकता है.
पाँच लाख से अधिक लोग विनाशकारी स्तर पर भूख और भुखमरी का सामना कर रहे हैं और हर दिन बीतने के साथ अकाल का जोखिम बढ़ रहा है.
उधर, सीरिया में पिछले कई वर्षों से जारी हिंसक टकराव और आर्थिक व जलवायु झटकों के कारण विशाल चुनौतियाँ हैं. फ़रवरी 2023 में आए भूकम्प से हुई क्षति के कारण हालात और जटिल हुए हैं.
सात लाख 80 हज़ार अतिरिक्त लोग खाद्य असुरक्षा की चपेट में आए हैं, जिससे पूरे देश में खाद्य असुरक्षा से पीड़ित लोगों की संख्या बढ़कर 1.29 करोड़ पर पहुँच गई है.
सूडान और यमन भी विश्व में खाद्य असुरक्षा से पीड़ित लोगों की संख्या की दृष्टि से से शीर्ष 10 देशों की सूची में हैं.
महंगाई की मार
पिछले कुछ महीनों में वैश्विक खाद्य क़ीमतों में कुछ गिरावट दर्ज की गई है, मगर जिन देशों में मुद्रा का अवमूल्यन हुआ है और जहाँ महंगाई चरम पर है, उन्हें इससे राहत नहीं मिलेगी.
लेबनान और सीरिया में खाद्य वस्तुओं की मुद्रास्फीति की दर क्रमश: 138 प्रतिशत और 106 प्रतिशत दर्ज की गई. तुर्कीये के लिए यह 70 फ़ीसदी, ईरान में 39 प्रतिशत और मिस्र में 48 फ़ीसदी थी.
मध्य पूर्व क्षेत्र में स्थित अनेक देशों को बजट घाटे, सार्वजनिक कर्ज़ के ऊँचे स्तर, मुद्रा अवमूल्यन और ख़तरनाक स्तर की मुद्रास्फ़ीति से जूझना पड़ रहा है.
मुद्रा कमज़ोर है, क़ीमतें उछाल पर हैं और विदेशी मुद्रा भंडार में गिरावट आ रही है, और हिंसक टकराव व गहराते जलवायु संकट से खाद्य उत्पादन पर भी असर हुआ है.
सप्लाई चेन में व्यवधान
ये देश आयात पर निर्भर हैं, और इसलिए कोविड-19 महामारी, यूक्रेन युद्ध और प्राकृतिक आपदाओं के कारण वैश्विक खाद्य क़ीमतों में आने वाले उतार-चढ़ाव से ये प्रभावित होते हैं.
वर्ष 2024 में, लाल सागर में टकराव बढ़ने की वजह से सप्लाई चेन में व्यवधान दर्ज किया गया, जिससे जहाज़ों के आवागमन की लागत में वृद्धि हुई और खाद्य व ईंधन क़ीमतों में उछाल आने की आशंका बढ़ी.
यूएन खाद्य कार्यक्रम के आँकड़े दर्शाते हैं कि जनवरी 2024 में इस क्षेत्र में वनस्पति तेल और चालव की क़ीमतें विश्व भर में सबसे अधिक थीं, जबकि गेहूँ के मामले में ये दूसरे स्थान पर था.
यूएन एजेंसी का लक्ष्य इस वर्ष तीन करोड़ लोगों तक खाद्य व पोषण सहायता पहुँचाना है, मगर MENA क्षेत्र में खाद्य असुरक्षा से निपटने के लिए फ़िलहाल सहायता धनराशि की क़िल्लत एक बड़ी चुनौती है.
संगठन ने आगाह किया है कि सहायता में कटौती किए जाने से लाखों लोगों पर गम्भीर असर होगा, और भूख व कुपोषण के विरुद्ध लड़ाई में वर्षों की मेहनत से दर्ज की गई प्रगति को धक्का पहुँचेगा.