राजस्थान में, रंग-बिरंगे कपडों से सजी महिलाओं का एक समूह, खेजरी के पेड़ की छाँव में बैठकर, जल और उसकी महत्ता पर, दिल को छू देने वाला एक गीत गा रहा है.
उनके रंग-बिरंगे कपड़े, फ़लौदी ज़िले के बाप ब्लॉक में स्थित उनके गाँव की नदी को पुनर्बहाल व संरक्षित करने के उनके दृढ़ संकल्प का प्रतीक हैं.
महिलाओं द्वारा गाया जा रहा गीत इस जीवनदायक जल स्रोत को, तहे दिल से दिया गया सम्मान है.
गीत के बोल इस प्रकार हैं “मैं अपने घड़े में पानी भर रहीं हूँ, घड़ा इतना भारी है कि उठाना भी मुश्किल है. यह तालाब एक सागर की तरह है. यह तालाब किसने खोदा? मेरे भाई और मेरे पिता ने खोदा.”
इस गीत के बोल, पुरुषों के तालाब खोदने के प्रयासों और पानी लेकर आने की महिलाओं की ज़िम्मेदारी बयान करते हैं.
40 वर्ष की लैला ख़ातून के नेतृत्व में, इस समूह का मिशन है, पारम्परिक रूप से ‘नदी’ या ‘तालाब’ के नाम से जाने जाने वाले उस जलाशय को बहाल करने का, जो कभी उनके गाँव के लिए जीवनदायक होता था.
पिछले तीन दशकों में फ़लौदी गाँव के सूखे ग्रामीण इलाक़े में, गाँववालों ने वर्षा के रुझान में बदलाव आते देखा है.
किसी ज़माने में पहले से ही अनुमान लगने योग्य, समानता से आने वाली वर्षा, अब बहुत अनियमित हो गई है, जिससे बहुत से गाँव सूखे की चपेट में आ गए हैं तो कई अन्य तीव्र वर्षा से परेशान हैं.
यह बदलाव, जलवायु परिवर्तन की देन है, जिससे उनकी आजीविकाओं व प्रकृति से उनके सम्बन्धों पर गहरा असर पड़ा है.
देश के कई अन्य हिस्सों की ही तरह, फ़लौदी में मानसून से पहले होने वाली बूँदा-बाँदी कम होती जा रही है, लेकिन मानसून की बारिश बहुत बढ़ गई है, जिससे पूरे साल यह जलाशय पानी से भरा रहने लगा है.
तालाब की सफ़ाई का बीड़ा
जल सहेली, लैला ख़ातून बताती हैं, “यह जलाशय, गाँव वालों की जीवनरेखा है, ख़ासतौर पर गर्मी, सूखे और कम बारिश के समय में. हमने इस तालाब को साफ़ करने का बीड़ा उठाया, और उसके लिए शारीरिक श्रम व निष्कर्षण उपकरणों का इस्तेमाल किया.”
इस तालाब की पुनर्बहाली से, न केवल भूमि बहाल हुई है, बल्कि इससे गाँव वालों के बीच सूखा-निरोधी प्रथाओं की समझ भी बढ़ी है.
ये ‘जल सहेली’ जल स्रोतों को बहाल करने पर ही नहीं थमतीं. वो अपने साथी गाँववालों को, अपना साझा लक्ष्य हासिल करने के लिए एकजुट भी करती हैं – यानि घरेलू जल सुरक्षा की प्राप्ति.
इसके अलावा वो जल संरक्षण की पैरोकार भी बन गई हैं, और अपने समुदाय को इस अमूल्य संसाधन को संरक्षित करने की अहमियत के बारे में जागरूक करती हैं.
उनके ये प्रयास बेकार नहीं गए. पुनर्बहाल किए गए तालाब ने गाँव को एक नया जीवन दिया है और उनके घरों के लिए अविरल पानी की आपूर्ति सुनिश्चित की है. उनके अथक प्रयासों के कारण उन्हें एक और उपाधि दी गई है – ‘जल योद्धा’ की.
इन गाँव वालों के लिए मौसम के रुझान में बदलाव आँकड़े मात्र नहीं, बल्कि एक ऐसी सच्चाई है, जो जलवायु कार्रवाई की तात्कालिक आवश्यकता को रेखांकित करती है. एक समय भरोसे का पात्र रही वर्षा, आज एकदम अप्रत्याशित हो गई है, जिससे उनके जीवन पर अकल्पनीय प्रभाव पड़ा है.
जलवायु परिवर्तन की दर्दनाक सच्चाई के बीच, गाँव वालों ने अपने पारम्परिक ज्ञान का सहारा लिया.
उन्होंने अपने पारम्परिक जल संचयन प्रणालियों को बहाल किया, जो इस परिवर्तनशील समय में सबसे भरोसेमंद विकल्प हैं. जैसे-जैसे तापमान बढ़ रहा है और भूजल के स्तर में उतार-चढ़ाव नज़र आ रहा है, सूखे का जोखिम मुँह बाँए खड़ा नज़र आता है. लेकिन ये गाँव वाले निश्चिंत हैं.
जल सहेलियों ने पारम्परिक जल संसाधनों की अहमियत को पहचानते हुए और फ़लौदी में वर्षा में बढ़ोत्तरी का फ़ायदा उठाते हुए, 2021 में ‘उन्नति’ नामक ग़ैर-सरकारी संस्था की मदद से, स्थानीय तालाब को बहाल किया था.
गाँववालों ने भी एकजुट होकर, धन इकट्ठा किया और दशकों पुराने इस तालाब को बहाल करने में मदद की. जलाशय की पुनर्बहाली के लिए सरपंच और गाँववालों ने मिलाकर 15 लाख रुपए की धनराशि एकत्र की और उसके रख-रखाव के लिए मार्गदर्शिका तैयार की.
भारत में यूनीसेफ़ के WASH CCES विशेषज्ञ रुषभ हेमानी कहते हैं, “राजस्थान का यह समुदाय, जल सुरक्षा के लिए पारम्परिक जल स्रोतों के संरक्षण में अग्रणी भूमिका निभा रहा है. इसमें ख़ासतौर पर महिलाओं ने अहम योगदान दिया है.”
भारत सरकार के ‘जल जीवन मिशन’ के तहत, भारत में यूनीसेफ़ ने पारम्परिक जल स्रोतों की पुनर्बहाली में सरकार को पूरा समर्थन दिया है.
‘उन्नति’ के नेतृत्व में चल रही इस परियोजना में, यूनीसेफ़ ज्ञान प्रबंधन मुहैया करवा रहा है, और न महिलाओं को सफलतापूर्वक एकजुट करने में लगा है, जो अपने समुदाय को पारम्परिक जल स्रोतों की महत्ता के बारे में जागरूक करने के कार्य में सक्रिय हैं.
सूखा-प्रभावित क्षेत्र में हर एक संवेदनशील बच्चे के लिए जल सुरक्षा का निर्माण कर, जल सहेलियाँ अपनी बच्चों व परिवारों का भविष्य संवारने के लिए सशक्त दृढ़ता से प्रयासों में लगी हैं.
उनकी कहानी, सामुदायिक कार्रवाई की ताक़त का सबूत है कि जब कुछ दृढ़ संकल्पित लोगों का समूह साझा लक्ष्यों को हासिल करने का फ़ैसला करता है, तो अभूतपूर्व बदलाव सामने आते हैं.